मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 'आपसी सहमति' से तलाक के मामले में कूलिंग ऑफ पीरियड को माफ किया, 14 महीने से अलग रह रहे थे पति और पत्नी
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-बी (2) के तहत 14 साल से अलग रह रहे जोड़े के लिए आपसी सहमति देने के लिए निर्धारित 6 महीने की "कूलिंग ऑफ" अवधि को रद्द कर दिया।
संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए, कोर्ट ने फैमिली कोर्ट, इंदौर के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसने याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी द्वारा कूलिंग ऑफ अवधि को माफ करने के लिए संयुक्त आवेदन को खारिज कर दिया था।
याचिकाकर्ता का यह मामला था कि याचिकाकर्ता और प्रतिवादी की शादी 2020 में हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार संपन्न हुई थी। दंपति ने 2021 में अलग रहना शुरू किया, जिसके बाद उन्होंने अधिनियम की धारा 13 बी के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन किया।
इसके बाद, दंपति ने एक और आवेदन दायर किया, जिसमें अदालत से छह महीने की कूलिंग ऑफ अवधि को माफ करने का अनुरोध किया गया था, जैसा कि अधिनियम की धारा 13 बी (2) तहत प्रावधान किया गया था, जिसे फैमिली कोर्ट इंदौर ने अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर, 2017 (8) एससीसी 746 में निर्णय का हवाला देते हुए खारिज कर दिया था।
अमरदीप सिंह मामले में निर्धारित 4 शर्तें इस प्रकार हैं: (i) युगल डेढ़ साल से अलग रह रहे हैं; (ii) पार्टियों को फिर से मिलाने के लिए मध्यस्थता/सुलह के सभी प्रयास विफल हो गए हैं; (iii) पार्टियों ने गुजारा भत्ता, बच्चे की कस्टडी या किसी अन्य लंबित मुद्दों सहित अपने मतभेदों को वास्तव में सुलझा लिया है; और (iv) प्रतीक्षा अवधि केवल उनकी पीड़ा को बढ़ा रही हो।
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि वह एक शॉर्ट नोटिस पर भारत छोड़ने वाला था और चूंकि दोनों पक्षों ने पहले ही अपने विवादों को सुलझा लिया है, इसलिए कूलिंग ऑफ अवधि को माफ कर दिया जाना चाहिए था। याचिकाकर्ता ने अमित कुमार बनाम सुमन बेनीवाल, 2021 एससीसी ऑनलाइन एससी 1270 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि फैमिली कोर्ट ने छूट के उनके आवेदन को खारिज करने में गलती की और अमरदीप सिंह मामले में फैसले की गलत व्याख्या की।
याचिकाकर्ता का मामला था कि अमित कुमार मामले में कोर्ट ने अमरदीप सिंह मामले में निर्णय की व्याख्या की थी और यह माना था कि अमरदीप सिंह मामले में जिन शर्तों को एक अदालत द्वारा कूलिंग ऑफ अवधि को माफ करने से पहले संतुष्ट किया जाना चाहिए, अनिवार्य नहीं थे और यह कि कूलिंग ऑफ अवधि को माफ करने के लिए सभी शर्तों को पूरा करने की आवश्यकता नहीं थी।
तदनुसार, याचिकाकर्ता ने इस बात पर जोर दिया कि कूलिंग ऑफ अवधि की छूट पर निर्णय लेते समय हाईकोर्ट अन्य परिस्थितियों को भी ध्यान में रखते हुए अपने विवेक का प्रयोग कर सकता है।
जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की एकल पीठ ने प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, इंदौर के फैसले को रद्द करते हुए एक आदेश पारित किया और छह महीने की कूलिंग ऑफ अवधि को माफ करने के लिए पार्टियों द्वारा दायर संयुक्त आवेदन की अनुमति दी।
कोर्ट ने अमित कुमार के फैसले पर भरोसा किया और देखा कि चूंकि दोनों पक्ष पहले से ही 14 महीने से अधिक समय से अलग रह रहे थे, क्योंकि प्रतिवादी-पत्नी द्वारा दायर कोई भी मामला याचिकाकर्ता-पति के खिलाफ लंबित नहीं था और चूंकि पत्नी पहले ही स्थायी गुजारा भत्ता प्राप्त कर चुकी थ, कूलिंग ऑफ अवधि की छूट कानून में अच्छी तरह से स्थापित थी।
केस टाइटल: वैभव पंचोली बनाम प्रिया
साइटेशन: 2022 की विविध याचिका संख्या 4135
कोरम: जस्टिस सुबोध अभ्यंकर