मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जीएसटी अधिकारियों द्वारा तलाशी और जब्ती के दौरान वकील की मौजूदगी का आग्रह ठुकराया
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) अधिनियम की धारा 67 के तहत एक मीठी सुपारी विनिर्माण संयंत्र की तलाशी और जब्ती के दौरान वकील की मौजूदगी संबंधी एक याचिकाकर्ता की अर्जी गत शुक्रवार को खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति वंदना कासरेकर की खंडपीठ ने कहां कि याचिकाकर्ता अपने अनुरोध के समर्थन में कोई भी 'सांविधिक प्रावधान या किसी कानूनी अधिकार' का हवाला देने में असफल रहा है।
इस मामले में याचिकाकर्ता के विनिर्माण संयंत्र यूनिट को कथित तौर पर कर चोरी के मामले में सील कर दिया गया था और उसे संयंत्र परिसर में तलाशी और जब्ती की प्रक्रिया के दौरान उपस्थित रहने के लिए नोटिस जारी किया गया था।
याचिकाकर्ता ने आशंका व्यक्त की थी कि तलाशी और जब्ती की प्रक्रिया निष्पक्ष तरीके से नहीं हो सकती तथा अधिकारी उसे जबरन आरोपों के इकबालिया बयान के लिए मजबूर कर सकते हैं। इसीलिए उसने तलाशी एवं जब्ती प्रक्रिया के दौरान अपने वकील की मौजूदगी की अनुमति मांगी थी।
बेंच ने इस बात को ध्यान में रखते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि याचिकाकर्ता ने अपने अनुरोध के समर्थन में न तो किसी सांविधिक प्रावधान का और न ही किसी कानूनी प्रावधान का हवाला दिया था। बेंच ने 'पूलपंडी एवम् अन्य बनाम अधीक्षक, केंद्रीय उत्पाद एवं अन्य (1992) 3 एससीसी 259,' मामले में शीर्ष अदालत के उस फैसले पर भरोसा जताया था , जिसमें यह कहा गया था कि तलाशी प्रक्रिया और सीमा शुल्क कार्यालय की कार्रवाई के अंतर्गत किसी व्यक्ति से पूछताछ के दौरान वकील की मौजूदगी की मंजूरी कतई नहीं दी जा सकती है।
शीर्ष अदालत ने उस फैसले में कहा था :
"जिस व्यक्ति से सीमा शुल्क विभाग को महत्वपूर्ण सूचना हासिल करनी हो, उस आरोपी की मर्जी के हिसाब से यदि सब कुछ किया जाता है तो सीमा शुल्क अधिनियम और ऐसे ही अन्य कानूनों के तहत जांच की प्रक्रिया का उद्देश्य निष्फल हो जाएगा। यदि संबंधित अधिकारियों को लगता है कि जांच के वास्तविक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए संबंधित आरोपियों को कानूनी मशीनरी के साथ असहयोग के लिए प्रोत्साहित करने वाले व्यक्तियों या माहौल से अलग रखना चाहिए, तो ऐसे सहयोग से वंचित रखने के कानूनी उद्देश्य को लेकर आपत्ति दर्ज नहीं करायी जा सकती।"
मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता ने यह भी कहा था कि जीएसटी कानून की धारा 67 के तहत जांच, तलाशी एवं जब्ती के लिए दो तटस्थ स्थानीय गवाहों की आवश्यकता होती है, लेकिन प्रतिवादी अपने 'मनमाफिक गवाहों' के सामने तलाशी लेना चाहते हैं।
खंडपीठ ने, हालांकि, इस दलील को दरकिनार कर दिया, क्योंकि प्रतिवादी-अधिकारियों ने आश्वस्त किया था कि "कानून के दायरे में दो तटस्थ गवाह तलाशी के लिए रखे जायेंगे और कानून के दायरे में प्रक्रिया का अक्षरश: पालन किया जायेगा।"
बेंच ने याचिका खारिज करते हुए कहा,
"मौजूदा मामले में तलाशी ली जानी है और प्रतिवादियों के वकील ने कोर्ट को आश्वस्त किया है कि उपरोक्त प्रावधानों का पूरी तरह पालन किया जायेगा, इसलिए फिलहाल इस बारे में कोई दिशानिर्देश देने की आवश्यकता नहीं है।
याचिकाकर्ता के वकील का एक और अनुरोध है कि यह तलाशी अधिवक्ता की मौजूदगी में होनी चाहिए, लेकिन याचिकाकर्ता के वकील अपने मुवक्किल के अनुरोध के पक्ष में कोई सांविधिक प्रावधान या इस तरह के किसी कानूनी अधिकार का उल्लेख करने में असफल रहे हैं।"
केस का ब्योरा :
केस का शीर्षक : सुभाष जोशी एवं अन्य बनाम जीएसटी खुफिया महानिदेशक (डीजीजीआई) एवं अन्य
केस नं. : रिट याचिका संख्या 9184/2020
कोरम : न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति वंदना कासरेकर
वकील : सीनियर एडवोकेट सुनील जैन एवं एडवोकेट कुशाग्र जैन (याचिकाकर्ता के लिए), एडवोकेट प्रसन्ना प्रसाद (प्रतिवादी के लिए)