लखनऊ गोमती रिवर फ्रंट 'स्कैम'| इलाहाबाद हाईकोर्ट ने परियोजना सलाहकार को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया

Update: 2022-12-19 11:57 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते लखनऊ स्थित गोमती रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट के पूर्व सलाहकार को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। उन पर परियोजना के कार्यान्वयन में भारी भ्रष्टाचार करने और बड़े पैमाने पर अनियमितताओं का आरोप है।

जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने आरोपी-आवेदक आरोपी-आवेदक बद्री श्रेष्ठ के खिलाफ आरोप, उपलब्ध सबूत और भ्रष्टाचार की भयावहता को देखते हुए उन्हें अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया।

जस्टिस एसके सिंह की पीठ ने आदेश में कहा,

"मेरा विचार है कि इतने बड़े पैमाने के आर्थिक अपराध बिना किसी कुटिल योजना और उसके निष्पादन के नहीं किए जा सकते थे। यह बखूबी स्थापित है कि आर्थिक अपराध में एक अलग वर्ग शामिल है और ऐसे मामले में जमानत को एक अलग दृष्टिकोण के साथ देखे जाने की जरूरत है। जमानत देते समय, न्यायालय को आरोपों की प्रकृति, अपराध की गंभीरता और आरोपों के समर्थन में साक्ष्य की प्रकृति को ध्यान में रखना होगा।

ऐसे आर्थिक अपराध, जिनकी जड़े गहरी और जिनमें सार्वजनिक धन की भारी हानि शामिल है, उन्हें गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है, और इसे गंभीर अपराध माना जाए, क्योंकि ये पूरे देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता हैं।"

उल्लेखनीय है कि गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का 'ड्रीम' प्रोजेक्ट' था। प्रोजेक्ट का उद्देश्य एक डायाफ्राम वॉल का निर्माण करके और दोनों किनारों पर भूनिर्माण और अवरोधक नालियों का निर्माण करके नदी को चैनलाइज़ करना था।

वर्ष 2017 में, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने परियोजना के कार्यान्वयन में भारी भ्रष्टाचार की शिकायतें मिलने के बाद गोमती रिवरफ्रंट के सौंदर्यीकरण परियोजना की जांच के आदेश दिए थे।

सीबीआई का मामला था कि आरोपी-आवेदक/बद्री श्रेष्ठ मैसर्स केके स्पन पाइप्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ निष्पादन कार्य को हासिल करने में मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक था। उक्त कंपीन सिंचाई विभाग के साथ पंजीकृत भी नहीं थी।

इसके अलावा, पहले से ही तय ज्यादा लागत 285.69 करोड़ रुपये के खिलाफ, मैसर्स केके स्पन पाइप्स प्राइवेट लिमिटेड को 337.32 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया, जबकि इस सबंध में कैबिनेट से लागत वृद्धि के लिए कोई अनुमोदन प्राप्त किए बिना।

यह भी आरोप लगाया गया कि आरोपी जाली दस्तावेजों के आधार अन्य आरोपियों को अवैध रूप से काम दिलाने की साजिश में सक्रिय रूप से शामिल था।

इन आरोपों के मद्देनजर सिंगल जज बेंच ने आरोप पत्र और आरोपी आवेदक के खिलाफ उपलब्ध सबूतों पर विचार करते हुए, आरोपी आवेदक की प्रस्तुतियों की उसके खिलाफ मामले में शामिल होने का कोई सबूत उपलब्ध नहीं था, में कोई सार नहीं पाया।

केस टाइटलः बद्री श्रेष्ठ बनाम यूपी राज्य, प्रधान गृह सचिव, लखनऊ के माध्यम से और अन्‍य [Criminal Misc. Anticipatory Bail Application U/S 438 CR.P.C. No.2102 of 2022]

केस साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (एबी) 533

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