जब पति या पत्नी का कोई दोष नहीं और वह शादी जारी रखने के लिए तैयार हो तो जानबूझकर आनाकानी के कारण लंबे समय तक साथ ना रहना तलाक का आधार नहीं : केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को एक उल्लेखनीय फैसले में वैवाहिक क्रूरता और माफ किए गए वैवाहिक अपराधों के पुनः प्रवर्तन (revival) के दायरे पर कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं।
जस्टिस ए मोहम्मद मुस्ताक और जस्टिस सोफी थॉमस की एक खंडपीठ ने एक महिला की अपील को खारिज कर दिया, जिसमें फैमिली कोर्ट के एक आदेश को उलटने की मांग की गई थी। फैमिली कोर्ट ने तलाक की उसकी याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें पाया गया था कि वह खुद पर किसी भी प्रकार की वैवाहिक क्रूरता को साबित करने में विफल रही है।
कोर्ट ने कहा,
"यह सच है कि वैवाहिक जीवन में 'क्रूरता' को आकर्षित करने के लिए, किसी भी शारीरिक हिंसा की आवश्यकता नहीं है। क्रूरता मानसिक या शारीरिक हो सकती है। हालांकि जब शारीरिक क्रूरता के विशिष्ट आरोप होते हैं तो आरोप लगाने वाला व्यक्ति सिद्ध करने के लिए बाध्य होता है।"
कोर्ट ने कहा कि जब दूसरा पक्ष उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों का पुरजोर विरोध कर रहा है तो किसी तरह के पुख्ता सबूत की उम्मीद की जाती है, खासकर तब जब इसे पेश करने का मौका हो।
मामले में कोर्ट के अन्य महत्वपूर्ण निष्कर्ष
1. क्रूरता की अवधारणा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न होती है; वर्षों की अवधि में कुछ अलग-थलग उदाहरणों को क्रूरता नहीं माना जाएगा।
2. जब पति या पत्नी अपनी शादी को भंग करने के लिए आम सहमति पर पहुंचने में असमर्थ होते हैं तो न्यायालय केवल कानून और प्रक्रिया के अनुसार ही कार्य कर सकता है। उनका विवाह केवल तभी भंग किया जा सकता है, जब वे वैधानिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
3. एक परिवार अलग-अलग व्यक्तिगत हितों का मिश्रण है; वैवाहिक जीवन में पति और पत्नी के अधिकारों और कर्तव्यों को परिभाषित करना और उनका सीमांकन करना कठिन है।
4. कोई भी वैवाहिक अपराध क्षमादान से नहीं मिटता है; यह पुनः प्रवर्तित हो सकता है और विवाह के विघटन के लिए कार्रवाई का कारण बन सकता है यदि अपराधी पति या पत्नी गलती करने वाले पति या पत्नी द्वारा दिखाई गई उदारता का अनुचित लाभ उठाता है और वैवाहिक कूकृत्य करता है।
5. एक पक्ष द्वारा दायर किए गए मामलों के लंबित होने या जानबूझकर आनाकानी के कारण साथ में न रहने की लंबी अवधि तलाक का आधार नहीं है, जब दूसरे पक्ष को दोष नहीं पाया जा सकता है और वह वैवाहिक जीवन जारी रखने के लिए तैयार है।
पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता ने दावा किया था कि ससुराल में 12 साल तक रही, जिस दरमियान दहेज के लिए पति और ससुराल वालों ने उसे वैवाहिक क्रूरता का शिकार बनाया। उसने आरोप लगाया कि उसे उच्च शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति नहीं दी गई और पति ने उसकी उपेक्षा की।
अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि जब उसके पिता ने क्रूरता के बारे में पूछताछ करने की कोशिश की तो उसे वैवाहिक घर छोड़ देने के लिए कहा गया। इसके बाद से वह 2011 से एक फ्लैट में अलग रह रही है।
उसने का कहा कि उसके दोस्तों और परिवार के हस्तक्षेप के बाद प्रतिवादी भी जल्द ही उसके साथ फ्लैट में रहने लगे। हालांकि, एक महीने के भीतर, प्रतिवादी ने कथित तौर पर बेटे को याचिकाकर्ता से दूर करने की धमकी देकर फ्लैट छोड़ दिया।
इसके बाद उसने तलाक, सोने के गहने वापस करने, बच्चे की कस्टडी और उसके खिलाफ घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत एक याचिका दायर की।
फिर भी, परिवार और दोस्तों के समझाने के बाद, वह एक बार फिर साथ रहने के लिए सहमत हुई और सभी मामलों को वापस ले लिया। प्रतिवादी 2015 के बाद से उसके साथ फिर से रहने लगा।
अपीलकर्ता का मामला है कि साथ रहने के बाद भी उनके बीच कोई मानसिक एकता या शारीरिक अंतरंगता नहीं थी और अब वे दो साल से अलग रह रहे हैं। उसने तर्क दिया कि उनकी शादी अपरिवर्तनीय रूप से टूट गई थी।
तदनुसार, उसने क्रूरता के आधार पर तलाक के लिए फैमिली कोर्ट का रुख किया, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया। इससे व्यथित होकर वह हाईकोर्ट पहुंची।
अपीलकर्ता की ओर से पेश हुए, वरिष्ठ अधिवक्ता सुमति दंडपाणी ने अधिवक्ता मिल्लू दंडपाणी की सहायता से तर्क दिया कि हालांकि पिछली तलाक की याचिका में कथित क्रूरताओं को माफ कर दिया गया था, फिर भी चूंकि प्रतिवादी ने उसके प्रति अपना दुर्व्यवहार जारी रखा, यह पुनः प्रवर्तित होगा और वह पहले की याचिका के आग्रह के आधार पर तलाक की डिक्री पाने की हकदार है।
प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ता दिनेश आर. शेनॉय और ए. जोसेफ जॉर्ज पेश हुए और सभी आरोपों से इनकार किया।
इस मामले में, अपीलकर्ता अपनी याचिका में किसी भी प्रकार की वैवाहिक क्रूरता साबित करने में विफल रही थी और क्रूरता को पुनः प्रवर्तित करने के लिए माफ कर दी गई वैवाहिक गलतियों की पुनरावृत्ति होनी चाहिए, जो क्रूरता के बराबर होती है। चूंकि उसकी याचिका या अपील में ऐसा कुछ नहीं मिला, इसलिए बेंच ने अपील खारिज कर दी।
केस शीर्षक: डॉ उत्तरा बनाम डॉ शिवप्रियन
सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (केरल) 75