लोकसभा ने गुजरात के तीन आयुर्वेद संस्थानों को मिलाकर राष्ट्रीय महत्व का संस्थान बनाने का विधेयक पास किया
लोकसभा ने वृहस्पतिवार को इंस्टीच्यूट ऑफ़ टीचिंग एंड रिसर्च इन आयुर्वेद विधेयक, 2020 को ध्वनिमत से पास कर दिया।
इस विधेयक को आयुष मंत्री श्रीपाद येस्सो नाइक ने पेश किया जिसमें तीन निम्न संस्थानों को आपस में मिलाने का प्रावधान है। ये संस्थान हैं -
· इंस्टिट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट टीचिंग एंड रिसर्च इन आयुर्वेद, जामनगर;
· श्री गुलाबकुनवेरबा आयुर्वेद महाविद्यालय, जामनगर; और
· इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ आयुर्वेदिक फ़ार्मासयूटिकल साइंसेज़, जामनगर;
इन तीनों को मिलाकर अब एक राष्ट्रीय महत्व का संस्थान बनाने का प्रावधान है। प्रस्तावित संस्थान का नाम होगा इंस्टीच्यूट ऑफ़ टीचिंग एंड रिसर्च इन आयुर्वेद और यह गुजरात आयुर्वेद यूनिवर्सिटी, जामनगर में स्थित होगा।
संस्थान की संरचना
इस विधेयक के अनुसार इस संस्थान में निम्न 15 सदस्य होंगे :
· आयुष मंत्री
· आयुष मंत्रालय के सचिव और आयुर्वेद के तकनीकी प्रमुख
· गुजरात सरकार के स्वास्थ्य विभाग के सचिव
· संस्थान के निदेशक
· सेंट्रल काउन्सिल फ़ोर रीसर्च इन आयुर्वेद के महानिदेशक
· आयुर्वेद के तीन विशेषज्ञ जिन्हें शिक्षा, उद्योग और शोध में विशेषज्ञता हासिल है।
· संसद के तीन सदस्य
संस्थान के कार्य
यह संस्थान आयुर्वेद में स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई उपलब्ध कराएगा। आयुर्वेद की विभिन्न शाखाओं में संस्थान शोध की सुविधा उपलब्ध करेगा और आयुर्वेद कॉलेज और अस्पताल को सभी सुविधाओं से पूरी तरह लैश करेगा और इनमें सहायक कर्मचारियों और नर्सों की व्यवस्था होगी।
संसदीय बहस
इस विधेयक पर हुए बहस में कांग्रेस के सदस्य शशि थरूर ने आयुर्वेद में साक्ष्य आधारित शोध के विश्वसनीय डॉक्युमेंटेशन की बात कही। "साक्ष्यों पर आधारित शोध और रिपोर्टिंग के लिए इसका डॉक्युमेंटेशन अवश्य ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का होना चाहिए…ताकि आयुर्वेदिक इलाज को मज़बूत किया जा सके," उन्होंने कहा।
उन्होंने आयुर्वेद की प्रैक्टिस करनेवालों को पर्याप्त क़ानूनी सुरक्षा उपलब्ध कराने पर बहस की माँग की। उन्होंने आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को विरासत बताया और कहा कि
"कई पीढ़ियों से आयुर्वेद की प्रैक्टिस करनेवालों और इस संसाधन को सुरक्षित रखनेवालों को व्यापक सुरक्षा उपलब्ध कराने की कोई व्यापक व्यवस्था हमारे पास नहीं है…हमारे कई आदिवासी समुदाय अपनी आजीविका के लिए इन परंपरागत तरीक़ों पर निर्भर करते हैं, उनकी पहचान और इसको हड़पने से उनके अधिकारों पर असर होगा…हमारे ज्ञान की सुरक्षा की बात को टाला नहीं जा सकता लेकिन इसे इस विधेयक में नज़रंदाज़ किया गया है।"
अब इस विधेयक को राज्यसभा में पेश किया जाएगा।