सीआरपीसी धारा 498ए के तहत दर्ज आपराधिक शिकायत के बारे में भली नीयत में पति के सीनियर को लिखा गया पत्र आपराधिक मानहानि का गठन नहीं करता है: कलकत्ता हाईकोर्ट

Update: 2022-03-27 13:08 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट

कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा है कि पति के सीनियर को भली नीयत से पत्र लिखकर पति के खिलाफ प्रताड़ना के आरोप में दर्ज अपराधिक मामले में बारे में जानकारी देना आईपीसी की धारा 499 के तहत आपराधिक मानहानि नहीं होगी।

मौजूदा मामले में पत्नी (याचिकाकर्ता) ने 24 मई 1997 को इंडियन ओवरसीज बैंक के प्रबंधक को पत्र लिखकर बताया था कि उसके पति, जो ओवरसीज बैंक के सहायक प्रबंधक थे, उसने उसे प्रताड़ित किया और उसे वैवाहिक घर से बाहर निकाल दिया।

पति के खिलाफ धारा 498ए सीआरपीसी (क्रूरता) के तहत एक आपराधिक मामला शुरू किया गया है, जिसके बाद उसे गिरफ्तार किया गया और बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया। याचिकाकर्ता ने पत्र के साथ आदेश की प्रमाणित प्रति संलग्न की थी और प्रबंधक से ऐसी कार्रवाई करने का अनुरोध किया था, जो तथ्यों और परिस्थितियों के तहत उचित समझी जाए।

जस्टिस आनंद कुमार मुखर्जी ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अपने पत्र में उन तथ्यों का जिक्र किया, जिसमें कथित यातना की घटनाओं की जानकारी थी। उन्होंने कहा कि 'तथ्यों का बढ़ाव-चढ़ाव' नहीं था और याचिकाकर्ता ने पत्र के माध्यम से अपने पति के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई की मांग नहीं की थी।

अदालत ने कहा, "विचाराधीन पत्र विपरीत पक्ष की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए किसी लांछन के बजाय तथ्य का बयान था।" 


जस्टिस मुखर्जी ने कहा कि याचिकाकर्ता और उसके पति के बीच वैवाहिक मतभेद इस हद तक थे कि पत्नी को अपनी नाबालिग बेटी के साथ अपने पति का घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।

यह मानते हुए कि याचिकाकर्ता के लिए ऐसी दमनकारी परिस्थितियों में अपने पति के वरिष्ठ अधिकारियों को ऐसा पत्र लिखने का सहारा लेना पड़ा, अदालत ने टिप्पणी की,

"यह घटना अपने आप में एक विवाहिता, जिसका एक बच्‍चा है, उस पर अपमान और आक्रोश का ढेर लगा देगी। ऐसी दमनकारी परिस्थितियों में यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता विरोधी पक्ष के आधिकारिक प्रमुखों को ऐसा पत्र लिखने का सहारा लेती। याचिकाकर्ता पत्नी को अपनी और अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए देश के कानून का सहारा लेने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। उसे अपनी शिकायत व्यक्त करने का अधिकार होना चाहिए क्योंकि उसकी मानवीय गरिमा खतरे में थी।"

आगे यह मानते हुए कि मानहानि के अपराध के तत्व पत्र की सामग्री से आकर्षित नहीं होते हैं क्योंकि वे धारा 499 आईपीसी के तहत निर्धारित आठवें अपवाद के अंतर्गत आते हैं। यह भी नोट किया गया कि किसी व्यक्ति द्वारा अपने हितों की रक्षा के लिए सद्भाव में किया गया कोई भी पत्र मानहानि के बराबर नहीं होगा क्योंकि धारा 499 आईपीसी के तहत नौवां अपवाद व्यक्ति द्वारा अपने या अन्य के हितों की सुरक्षा के लिए अच्छे विश्वास में लगाए गए आरोपों की रक्षा करता है।

कोर्ट ने आगे कहा कि आईपीसी की धारा 499 के तहत पांचवां अपवाद यह निर्धारित करता है कि किसी व्यक्ति के आचरण के संबंध में न्यायालय द्वारा तय किए गए किसी मामले के गुण-दोष पर एक राय व्यक्त किए जाने पर एक प्रतिनिधित्व मानहानि की श्रेणी में नहीं आता है।

यह भी ध्यान में रखा गया कि पत्र 24 मई, 1997 को पति के वरिष्ठों को भेजा गया था, जबकि पति द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक मानहानि के लिए केवल 8 जून, 2009 को शिकायत दर्ज की गई थी, जो कि तब कार्रवाई कारण पैदा हुआ उसके बारह साल बाद है।

आगे यह भी माना गया कि पति द्वारा सीआरपीसी की धारा 200 के तहत दायर शिकायत, जिसमें याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक मानहानि के अपराध का आरोप लगाया गया है, धारा 468 सीआरपीसी के तहत सीमा के कानून द्वारा वर्जित है।

सीआरपीसी की धारा 469(1)(ए) के अनुसार, आईपीसी की धारा 500 के तहत किसी अपराध में संज्ञान लेने की सीमा इसकी शुरुआत की तारीख से तीन साल है। नरेश चंद जैन बनाम यूपी राज्य और अन्य इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले और रवींद्र नाथ पाल बनाम रतिकांत पॉल और अन्य में कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने कहा कि मानहानि के अपराध के लिए एक मामला प्रकाशन की तारीख से तीन साल के भीतर दायर किया जाना चाहिए।

इस प्रकार, न्यायालय ने पति द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ मानहानि के अपराध के लिए दर्ज की गई शिकायत को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह सीमा से वर्जित है और इस प्रकार इस तरह की कार्यवाही को जारी रखने से न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।

केस शीर्षक: मलंचा मोहिनता बनाम दीपक मोहिनता

केस सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (Cal) 91

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