वाहन मालिक के कानूनी उत्तराधिकारी एमवी एक्ट की धारा 163ए के तहत मुआवजे की मांग नहीं कर सकते, जहां बीमा पॉलिसी केवल तीसरे पक्ष को कवर करती है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2022-08-24 06:21 GMT

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि यदि बीमा पॉलिसी मालिक को कवर नहीं करती है और केवल तीसरे पक्ष को कवर करती है तो मालिक या दावा करने वाले उससे संबंधित किसी अन्य व्यक्ति की मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 163-ए के तहत याचिका सुनवाई योग्य नहीं हो सकती है।

जस्टिस पंकज जैन की पीठ ने कहा कि 1988 की अधिनियम की धारा 146 के तहत वाहन के उपयोग से पहले उसके मालिक के लिए वैधानिक रूप से यह जरूरी होता है कि वह तीसरे पक्ष के जोखिम के खिलाफ बीमा कराये। वाहन मालिक के कवर के संबंध में ऐसा कोई आदेश निर्धारित नहीं है। हालांकि, बीमाकर्ता और बीमाधारक वैधानिक पॉलिसी के विस्तार के लिए करार कर सकते हैं।

इस प्रकार, यह मंतव्य था कि क्या बीमाकर्ता का कर्तव्य केवल तीसरे पक्ष के नुकसान की क्षतिपूर्ति करना है या यहां तक कि मालिक/चालक की भी क्षतिपूर्ति करना है, यह प्रश्न पॉलिसी की शर्तों पर निर्भर करेगा और जहां पॉलिसी केवल एक वैधानिक पॉलिसी है, तो वैसी स्थिति में बीमाकर्ता एमवी अधिनियम की धारा 163-ए के तहत केवल तीसरे पक्ष को क्षतिपूर्ति करने के लिए उत्तरदायी होगा।

"जहां पॉलिसी केवल एक वैधानिक पॉलिसी है, जाहिर है कि वह 'धनराज' (सुप्रा) मामले में निर्धारित कानून के तहत आएगी और बीमाकर्ता केवल तीसरे पक्ष को क्षतिपूर्ति करने के लिए उत्तरदायी होगा और मालिक को 1988 के अधिनियम की धारा 163ए के तहत याचिका जारी रखने से रोक दिया जाएगा। हालांकि, जहां पॉलिसी एक व्यापक पॉलिसी है और अनुबंध करने वाले पक्ष 1988 के अधिनियम की धारा 146 की अनिवार्य आवश्यकता से परे जाने के लिए सहमत हुए हैं और बीमाकर्ता मालिक का बीमा करने के लिए सहमत है और इस तरह के अनुबंध के लिए इसने प्रीमियम स्वीकार कर लिया है तो यह 'धनराज मामले' (सुप्रा) में निर्धारित कानून से प्रभावित नहीं होगा।"

'धनराज बनाम न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड' मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि मालिक से संबंधित व्यक्ति को चोट के लिए प्रीमियम नहीं देने की स्थिति में, बीमाकर्ता का मालिक को मुआवजे का भुगतान करने का कोई वैधानिक या संविदात्मक दायित्व नहीं बनता है।

कोर्ट वर्तमान मामले में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण, झज्जर द्वारा पारित निर्णय के खिलाफ बीमाकर्ता की अपील पर विचार कर रही थी।

एक अज्ञात वाहन द्वारा टक्कर मारने से कार चला रहे संजय की मौत के कारण उसके कानूनी वारिस ने एमवी अधिनियम की धारा 163-ए के तहत दावा याचिका दायर की गई थी। वाहन मालिक और बीमाकर्ता को प्रतिवादी के रूप में शामिल किया गया था और ट्रिब्यूनल ने 4,95,200/- रुपये का मुआवजा दिया था, जिसमें प्रतिवादियों को संयुक्त रूप से और अलग-अलग भी जिम्मेदार ठहराया गया था। बीमाकर्ता ने उक्त पुरस्कार के खिलाफ अपील दायर की थी।

कंपनी की प्राथमिकी दलील यह थी कि मृतक वाहन का चालक/उधारकर्ता था और 'तीसरा पक्ष' नहीं था, ऐसे में 1988 अधिनियम की धारा 163-ए के तहत वर्तमान याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

हाईकोर्ट ने नोट किया कि 'निंगम्मा एवं अन्य बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड' मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में वाहन मालिक की तुलना में ड्राइवर की एक अलग स्थिति है।

हालांकि, मौजूदा मामले में, विवादित बीमा पॉलिसी एक कंप्रिहेंसिव (व्यापक) पॉलिसी थी और इसमें मालिक के साथ-साथ चालक को भी कवर किया गया था।

"रिकॉर्ड पर मौजूद पॉलिसी स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि प्रीमियम का भुगतान मालिक के साथ-साथ चालक के बीमा के लिए भी किया गया था। इस प्रकार, वर्तमान मामले में अपीलकर्ता द्वारा याचिका की स्वीकार्यता के संबंध में उठाए गए सवाल को मेरिट न होने के आधार पर खारिज कर दिया गया है। अब तक जैसा कि ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए मुआवजे की मात्रा को लेकर याचिका का संबंध है, यह अब कानून का तय सिद्धांत है कि धारा 163-ए के तहत देयता सीमित नहीं है।"

तद्नुसार अपील खारिज कर दी गई।

केस शीर्षक: नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम रूपा और अन्य

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