वकीलों की हड़ताल: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य बार काउंसिल के खिलाफ अवमानना का मामला दर्ज किया
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य में वकीलों की हड़ताल जारी रखने पर राज्य बार काउंसिल के अध्यक्ष और उसके अन्य निर्वाचित सदस्यों के खिलाफ अवमानना मामला शुरू किया है।
अदालत ने कहा कि स्टेट बार काउंसिल ने इस मुद्दे को हल करने के बजाय बिना किसी उचित कारण के टकराव का रास्ता चुना है।
ग्वालियर पीठ ने निर्वाचित सदस्यों को नोटिस जारी कर पूछा कि वकीलों को न्यायिक कार्य से दूर रहने के लिए मजबूर करने के कारण उन पर अदालत की आपराधिक अवमानना का मुकदमा क्यों नहीं चलाया जाना चाहिए, जो राज्य में न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप और बाधा बन रहा है।
जस्टिस अतुल श्रीधरन ने आदेश में ये भी कहा,
"कोर्ट के समक्ष उपस्थित होने के लिए एक वकील को रोकने के लिए किसी भी व्यक्ति द्वारा किए गए किसी भी प्रयास से उन्हें आईपीसी की धारा 341 के तहत अपराध के लिए मुकदमा चलाने के लिए उत्तरदायी बनाया जाएगा।"
हड़ताल में शामिल वकील उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के प्रशासनिक आदेश का विरोध कर रहे हैं, जिसमें जिला अदालतों को तीन महीने के भीतर 25 पुराने मामलों का निस्तारण करने का निर्देश दिया गया है।
उच्च न्यायालय की जबलपुर पीठ ने पहले इस मामले में स्वत: संज्ञान लेकर जनहित याचिका दायर की थी और अधिवक्ताओं से कहा था कि वे अपने न्यायालय के काम में तुरंत भाग लें।
अदालत ने आगे कहा कि मुख्य न्यायाधीश ने अपनी ओर से बार के सदस्यों के सुझाव मांगे थे, लेकिन इसके बजाय स्टेट बार काउंसिल के अध्यक्ष और निर्वाचित सदस्यों ने अनावश्यक रूप से हड़ताल की घोषणा करके मामले को तूल दिया।
अदालत ने कहा,
"राज्य बार काउंसिल ने मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से इस मुद्दे को हल करने और पूरी तरह से यह जानने के बजाय कि न्यायिक पक्ष में चुनौती देने का विकल्प है।“
अदालत ने कहा कि बार के सदस्य अपनी अनिच्छा के बावजूद काम से दूर रहने के लिए मजबूर हैं, और राज्य बार काउंसिल की स्वेच्छाचारी कार्रवाई के समान रूप से पीड़ित हैं, जैसा कि मुकदमेबाज हैं।
कोर्ट ने रजिस्ट्री को अवमानना का केस रजिस्टर करने के लिए कहते हुए कहा, "मध्य प्रदेश राज्य बार काउंसिल के अध्यक्ष और उसके निर्वाचित सदस्यों की ओर से की गई कार्रवाई धारा 2 (सी) (ii) या (iii) के तहत परिभाषित आपराधिक अवमानना है।"