वकीलों की हड़ताल: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने काम से दूर रहने के लिए प्रस्ताव जारी करने के बार काउंसिल के अधिकार पर टिप्पणी करने से इनकार किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के क़ानून और निर्णयों के विपरीत वकीलों की हड़ताल का आह्वान करने वाले प्रस्ताव जारी करने के लिए यूपी बार काउंसिल के अधिकार पर कोई टिप्पणी करने से परहेज किया।
जस्टिस क्षितिज शैलेन्द्र ने मामले में सकारात्मक न्यायिक हस्तक्षेप के बावजूद हापुड जिले में वकीलों पर पुलिस लाठीचार्ज को लेकर वकीलों की हड़ताल जारी रहने पर निराशा व्यक्त की।
हाईकोर्ट ने 4 सितंबर को घटना का स्वत: संज्ञान लिया था और पुलिस को इस मुद्दे पर वकीलों की एफआईआर दर्ज करने और जांच करने का निर्देश दिया था। पिछले शनिवार को वकीलों की शिकायतों को दूर करने के लिए एक न्यायिक समिति गठित करने के लिए एक विशेष बैठक आयोजित की गई थी।
हालांकि अगले ही दिन बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश ने एक प्रस्ताव पारित कर कहा कि वकील अगले दो दिन यानी सोमवार और मंगलवार को काम से दूर रहेंगे। कोर्ट ने वर्चुअल सुनवाई के लिए वीसी लिंक उपलब्ध कराने के बावजूद वकील की गैर मौजूदगी दर्ज की। आज भी कामकाज बंद रहा। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन, इलाहाबाद और अवध बार एसोसिएशन, लखनऊ दिन-प्रतिदिन काम से विरत रहने का प्रस्ताव पारित कर रहे हैं।
इसी पृष्ठभूमि में न्यायालय ने बुधवार को निम्नलिखित कार्रवाइयां सूचीबद्ध की हैं जो वह कर सकता है:
“ (i) अभियोजन के अभाव में वर्तमान मामले को खारिज करना।
(ii) इसे "सूचीबद्ध मामलों" के ओशन में फेंक देना जहां वर्षों तक सुनवाई की उम्मीदें नगण्य नहीं तो काफी धूमिल होंगी।
(iii) सुप्रीम कोर्ट के क़ानून और निर्णयों के विपरीत प्रस्ताव जारी करने के लिए राज्य बार काउंसिल की शक्ति, अधिकार और क्षमता के साथ वर्तमान हड़ताल की वैधता के संबंध में टिप्पणियां करना।
(iv) हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के रुख और कृत्य पर टिप्पणी करना, जो एक स्वतंत्र निकाय और सोसायटी रजिस्ट्रशन एक्ट, 1860 के तहत रजिसटर्ड सोसायटी है, जो अपने विवेक के अनुसार कार्य करने में सक्षम है, लेकिन दुर्भाग्य से बिना कानून की मंजूरी वाले निरर्थक संकल्प इसमें लिप्त है।
हालांकि न्यायालय ने वादियों के नुकसान के लिए कोई भी आदेश पारित करने में न्यायिक संयम बरतने का फैसला किया, " जिन्होंने न्याय की संस्था में भरोसा और विश्वास जताया है और इसके परिणामस्वरूप आगे अराजकता या टकराव भी हो सकता है।"
न्यायालय ने नए मामलों को भविष्य की तारीख के लिए स्थगित करते हुए कहा,
“अदालत, बहुत भारी मन से इस मामले को न्याय के हित में इस आशा और विश्वास के साथ स्थगित करती है कि वकील न केवल बड़े पैमाने पर समाज की दुर्दशा, संकट और शिकायत को समझेंगे, बल्कि अपने स्वयं के कल्याण को भी समझेंगे- जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, देश की सर्वोच्च अदालत के निर्णयों का सम्मान करते हुए मामले पर बहस करने के लिए जल्द ही पेश होंगे।''