वकीलों को हर छोटी-छोटी बात के लिए हाईकोर्ट नहीं जाना चाहिए, ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण जरूरीः दिल्ली हाईकोर्ट के जजों ने कहा
लंबे समय से लंबित मामलों के मुद्दे पर ‘‘न्यायिक परिप्रेक्ष्य’’ देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस जसमीत सिंह और जस्टिस अमित शर्मा ने शुक्रवार को बैकलॉग को कम करने के तरीके सुझाए।
न्यायाधीश दिल्ली हाईकोर्ट महिला वकील फोरम द्वारा आयोजित ‘‘कॉफी वार्तालाप’’ में अपने विचार प्रकट कर रहे थे। इस आयोजन की चर्चा का विषय था ‘‘Role Of Bar In Reducing Arrear - Judicial Perspective’’।
हाईकोर्ट के वरिष्ठ और युवा वकीलों की एक सभा को संबोधित करते हुए जस्टिस सिंह ने लंबित मामलों से निपटने के लिए आधुनिकीकरण की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए अपना संबोधन शुरू किया।
उन्होंने कहा कि ट्रायल कोर्ट रिकॉर्ड (टीसीआर), जो कि आपराधिक पुनरीक्षण मामलों या अपीलों में हाईकोर्ट के लिए आवश्यक है, डिजिटल रूप में होना चाहिए और सुनवाई के पहले दिन ही अदालतों के साथ-साथ वकीलों को भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
न्यायाधीश ने कहा,“मैं क्रिमिनल रोस्टर में बैठा हूं। हमारे पास आपराधिक पुनरीक्षण/रिविजन है जहां ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड जरूरी है। कल्पना करें कि जिस दिन मामला सूचीबद्ध होगा, उस दिन आपके पास टीसीआर होगा, आप इतनी काफी सारी तारीखें सहेज लेंगे। यह एक सकारात्मक मूवमेंट है कि टीसीआर डिजिटल रूप में होना चाहिए। वहीं मेरे अनुसार, ट्रायल कोर्ट का जो भी रिकॉर्ड है, वह अदालतों और वकीलों के पास उस दिन उपलब्ध होना चाहिए, जिस दिन मामला सूचीबद्ध होता है।’’
जस्टिस सिंह ने आगे सुझाव दिया कि वकीलों को ‘‘अपने मुवक्किलों के साथ वास्तविक होना चाहिए’’ और उन्हें ‘‘मामले की सफलता के वास्तविक चांस’’ के बारे में बताना चाहिए।
उन्होंने कहा,‘‘वकीलों को अपने ग्राहकों के साथ वास्तविक होना चाहिए। कम से कम युवा वकीलों की वित्तीय स्थिरता के बारे में कुछ तो होना चाहिए ताकि मुवक्किल को इस बारे में उचित जानकारी हो कि उनका मामला क्या है। यदि वकील आर्थिक रूप से सुरक्षित है, तो वकील को अपने मुवक्किल को मामले में सफलता की वास्तविक संभावना बतानी चाहिए।’’
उन्होंने आगे कहा कि दलीलों में, वकीलों को जज की निंदा नहीं करनी चाहिए, बल्कि फैसले की निंदा करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि ‘‘न्यायाधीश सराहना करने में विफल रहे आदि’’के बजाय ‘‘निर्णय विफल हो गया ...’’ जैसे शब्दों का उपयोग किया जाना चाहिए।
जस्टिस सिंह ने कहा,‘‘ये मेरे सुझाव हैं। बेशक वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) को हर किसी को प्रोत्साहित करना चाहिए। हम सभी उम्मीद करते हैं कि यह नीचे आएगा क्योंकि आंकड़े बहुत बड़े हैं।’’
‘‘तीन स्थगन नियम’’ पर उनकी राय के बारे में पूछे जाने पर, जस्टिस सिंह ने कहाः ‘‘तीन स्थगन नियम आगे का रास्ता है, लेकिन यह सभी मामलों में नहीं दिया जा सकता है। यदि आप इसके बारे में बहुत अधिक आत्मसंतुष्ट हो जाते हैं, तो आप देखते हैं कि आंकड़े आपके सामने हैं। कहीं रेखा के नीचे, संतुलन बनाना होगा।’’
न्यायाधीश ने यह भी कहा कि आपराधिक रोस्टर पर नौ महीनों बिताने के बाद भी उन्हें एक बार भी अपील सुनने का मौका नहीं मिला।
जस्टिस सिंह ने कहा,
“मैं नौ महीने से क्रिमिनल रोस्टर में हूं। मेरे पास एक बार में एक भी अपील सुनने का समय नहीं है... मेरी गति या जो भी हो, मैं अपना रोस्टर, अपनी सूची समाप्त करने में सक्षम नहीं हूं।’’
दूसरी ओर, जस्टिस शर्मा ने वकीलों को सुझाव दिया कि वे ट्रायल कोर्ट में उपायों का इस्तेमाल करें और सीधे हाईकोर्ट न जाएं।
उन्होंने कहा,“जब मैंने क्रिमिनल साइड में पटियाला हाउस कोर्ट में अपनी प्रैक्टिस शुरू की थी, मुझे याद नहीं है कि वकील जमानत के लिए हाईकोर्ट जाते थे। इसी तरह मुझे प्रशिक्षित किया गया है। हर छोटी-छोटी बात के लिए आप हाईकोर्ट के चक्कर न लगाएं। वहां ट्रायल कोर्ट हैं, जिम्मेदार अधिकारी हैं। वहां सेशन जज हैं,जो समान रूप से सक्षम है।’’
जस्टिस शर्मा ने यह भी कहा कि वकीलों का कर्तव्य है कि वे अपने मुवक्किलों को समझाएं कि विशेष रूप से जब तथ्य उनके पक्ष में नहीं हैं, तो हाईकोर्ट जाना उपयुक्त विकल्प नहीं हो सकता है।
इसके अलावा, उन्होंने कहा कि वैवाहिक मामलों में मध्यस्थता का पता लगाया जाना चाहिए और यह आर्थिक अपराध के मामलों में भी संभव है जहां निजी पक्ष शामिल हैं।
आयोजन समिति के सदस्यों का विवरण
संचालकः एडवोकेट सुगंधा अग्रवाल और बंदना कौर ग्रोवर
समन्वयक और वोट ऑफ थैंक्सः एडवोकेट छवि और हरदीप कौर
अन्य समन्वयकः एडवोकेट स्नेह सोमानी, अक्षय.आर और एडवोकेट ममता