कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के मंत्रियों, विधायकों के खिलाफ 61 आपराधिक मामलों पर कार्रवाई न करने के फैसले पर रोक लगाई

Update: 2020-12-21 10:14 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार को बीएस येदियुरप्पा की अगुवाई वाली सरकार के 31 अगस्त की तारीख वाले सरकारी आदेश पर रोक लगा दी, जिसके तहत निर्वाचित प्रतिनिधियों और मंत्रियों के खिलाफ 61 मामलों आपराधिक मामलों में मुकदमा वापस लेने का फैसला किया गया था।

मुख्य न्यायाधीश अभय एस ओका और न्यायमूर्ति विश्वजीत शेट्टी की खंडपीठ ने आदेश दिया:

"हम निर्देश देते हैं कि 31 अगस्त, 2020 के आदेश के आधार पर आगे कोई कदम नहीं उठाया जाएगा।"

अदालत 31 अगस्त के आदेश को चुनौती देते हुए पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज, कर्नाटक द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मांग की गई थी कि निर्वाचित प्रतिनिधियों और मंत्रियों के खिलाफ 61 मामलों में आपाराधिक मुकदमा वापस लेने का राज्य सरकार के फैसले पर रोक लगाई जाए। राज्य सरकार ने सीआपीसी की धारा 321 के तहत 61 मामलों में अभियोजन न चलाने की सहमति प्रदान की थी।

अदालत ने राज्य सरकार को याचिका पर अपना जवाब 22 जनवरी, 2021 तक दर्ज करने का निर्देश दिया है और मामले को 29 जनवरी, 2021 को आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया है।

पिछली सुनवाई पर अदालत के आदेश में देखा गया था कि:

"कोई भी अदालत अभियोजन से वापस लेने के लिए इस तरह के निर्णय से बाध्य नहीं है। भले ही सीआरपीसी की धारा 321 के तहत एक आवेदन किया गया हो, न्यायालय फिर भी यह देखने के लिए स्वतंत्र है कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं और न्यायालय के पास प्रार्थना को अस्वीकार करने की शक्ति है।"

याचिका के अनुसार, अभियोजन से मुक्त किए जा रहे मामलों में राज्य के कानून मंत्री जेसी मधुस्वामी, पर्यटन मंत्री सीटी रवि और कृषि मंत्री बी सी पाटिल शामिल हैं। होसपत विधायक आनंद सिंह के खिलाफ 2017 से एक मामला भी वापस लेने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एडवोकेट क्लिफ्टन डी 'रोजारियो ने तर्क दिया था कि यह फैसला कानून के शासन के खिलाफ था।

अदालत ने पहले एसके शुक्ला और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया था, जिसमें यह देखा गया है कि भले ही सरकार सरकारी वकील को किसी मामले के अभियोजन से हटने का निर्देश दे, बाद में मामले के तथ्यों पर अपने विवेक से या तो निर्देशों से सहमत हो सकते हैं और न्यायालय में वापसी से पहले याचिका दायर कर सकते हैं या मुकदमा चलाने के लिए असहमत हो सकते हैं और अभियोजन पक्ष के लिए एक अच्छा मामला पाया जाता है तो केस वापस लेने की याचिका दायर करने से इनकार कर सकते हैं। निर्णय ने यह भी कहा कि लोक अभियोजक असहमत होने की स्थिति में उसे संक्षिप्त विवरणी लौटानी होगी। यह आगे कहा गया है कि लोक अभियोजक राज्य सरकार के आदेशों पर एक पोस्ट बॉक्स की तरह काम नहीं कर सकता है और उसे निष्पक्ष रूप से कार्य करना होगा क्योंकि वह न्यायालय का एक अधिकारी भी है।

Tags:    

Similar News