आरटीआई अधिनियम | सूचना आयोग पीआईओ द्वारा जानकारी देने में देरी करने की ओर से आंखें नहीं मूंद सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट ने जुर्माना लगाया

Update: 2022-08-01 12:45 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सूचना आयोग शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी को प्रस्तुत करने में जन सूचना अधिकारी द्वारा की गई अनुचित देरी को बिना सजा के नहीं जाने दिया जा सकता।

जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की एकल पीठ ने कहा कि सदोष देरी को कानून पर प्रहार के रूप में देखा जाना चाहिए।

अदालत बेंगलुरु में संलग्न ब्लॉक शिक्षा कार्यालय से जुड़े पीआईओ द्वारा कर्तव्य की अवहेलना के लिए आरटीआई की धारा 20 के तहत अनुकरणीय दंड की मांग वाली रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसके द्वारा मांगी गई जानकारी लगभग दो साल की देरी से उपलब्ध कराई गई, जबकि उसकी वैधानिक अपील का निपटारा राज्य सूचना आयोग द्वारा किया गया था। याचिकाकर्ता की शिकायत यह थी कि विषय अपील को "अनौपचारिक रूप से" बंद नहीं किया जा सकता, पीआईओ ने उक्त देरी के लिए कुछ नहीं किया। उसने इस देरी की ओर से आंखें मूंद लीं।

याचिकाकर्ता ने कहा,

"प्रतिवादी-आयोग वैधानिक अर्ध न्यायिक निकाय होने के नाते महाराजा या मुगल की तरह कार्य नहीं कर सकता, इसके कार्य सार्वजनिक कानून के रूप में होते हैं।"

कोर्ट ने कहा कि सूचना देने में हर दिन की देरी के लिए आरटीआई अधिनियम की धारा 20 में 250 रुपये का जुर्माना लगाया गया है; उप-धारा (1) 25,000 रुपये की अधिकतम जुर्माना राशि निर्धारित करती है।

तदनुसार, कोर्ट ने पीआईओ को याचिकाकर्ता को 25,000 रुपये के जुर्माने के साथ-साथ दस हजार रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

कोर्ट ने कहा,

"भ्रष्टाचार और गलत कामों का मुकाबला करने में सूचना तक पहुंच भी महत्वपूर्ण कारक है। खोजी पत्रकार और प्रहरी नागरिक समाज संगठन गलत कामों को उजागर करने और इसे जड़ से खत्म करने में मदद करने के लिए सूचना तक पहुंचने के अधिकार का उपयोग कर सकते हैं। यह कानून उस मौलिक आधार को दर्शाते हैं जिसे सरकार और उसके अधिकारी द्वारा लोगों की सेवा करने के लिए जरूरी माना जाता है। हालांकि, सूचना के अधिकार की व्यापक मान्यता में कई और व्यावहारिक विचार हैं।"

इसके अलावा कोर्ट ने कहा,

"सूचना तक पहुंच के अधिकार को मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा के प्रावधानों के तहत भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के एक तत्व के रूप में मान्यता दी गई है। इसे उक्त साधन में जानकारी प्राप्त करने के अधिकार के रूप में समझा जाता है।"

अधिनियम की धारा 20 के मद्देनजर, न्यायालय ने कहा,

"आरटीआई अधिनियम की धारा 20 की उप-धारा (1) का पहला प्रावधान ऑडी अल्टरम पार्टेम को अधिनियमित करता है, इसलिए जुर्माना लगाने से पहले गलती करने वाले व्यक्ति को सुना जाना चाहिए। दूसरा प्रावधान नकारात्मक पहलू को लागू करता है, यह प्रवाधान गलती करने वाले अधिकारी को यह साबित करने के लिए कि उसने समय पर जानकारी प्रस्तुत करने या प्रस्तुत नहीं करने में यथोचित और परिश्रम से काम किया है, साबित करने के लिए कहता है। दूसरा प्रावधान स्वयं संसद द्वारा कानून के अनुसार सूचना के अधिकार के महत्व को दर्शाता है। याचिकाकर्ता की अपील को दूसरे प्रतिवादी पर जुर्माना लगाए बिना बंद करने का कोई कारण है, जिसने नोटिस के बावजूद अप्रतिनिधित्व रहने का विकल्प चुना है।"

केस टाइटल: सिजो सेबेस्टैन बनाम कर्नाटक सूचना आयोग और अन्य

केस नंबर: 2022 की रिट याचिका नंबर 4913

साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर) 298

आदेश की तिथि: 26 जुलाई, 2022

उपस्थिति: सिजो सेबस्टेन याचिकाकर्ता के रूप में; एडवोकेट शरथ गौड़ा जी बी, आर वन के लिए

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