कर्नाटक हाईकोर्ट ने देवगौड़ा के मानहानि के मुकदमें में अतिरिक्त सबूत पेश करने के लिए, मुकदमें को फिर से खोलने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया

Update: 2021-01-19 09:12 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्यसभा सदस्य और भारत के पूर्व प्रधान मंत्री एच डी देवगौड़ा द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया है। दरअसल, उनके खिलाफ शुरू की गई मानहानि के मुकदमें में सुनवाई के चरण में नए सबूतों को जोड़ने के लिए मांग की गई थी जिसे सिविल कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया गया था। इसके बाद एच डी देवगौड़ा द्वारा सिविल कोर्ट के फैसले को खारिज करने की मांग करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका डाली गई थी।

न्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि,

"मानहानि के मुकदमों को यथासंभव तेजी से चलाने की जरूरत है। प्रतिष्ठा चाहे वह व्यक्तिगत हो या व्यावसायिक, किसी भी व्यक्ति के लिए पवित्र है।"

आगे कहा कि,

"सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि प्रतिष्ठा का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का एक पहलू है। सार्वजनिक स्मृति बहुत कम होने के नाते, प्रतिष्ठा की चोट के निवारण की गति तेज है। यह विचार और आदर्श रूप से बोल रहा है वो भी सार्वजनिक स्मृति से पहले। मानहानि के मुकदमों में, शायद ही हुए नुकसान के लिए प्रर्याप्त मुआवजा (धन के रूप में) मिल पाता है।

विलंबित न्याय इसे और भी बदतर बना देता है। इसलिए इस तरह के मामलों की सुनावाई जल्दी से खत्म होनी जरूरी है। अनिश्चित काल तक इस तरह के मामलों को घसीटे जाने की अनुमति दी नहीं जानी चाहिए। अगर किसी मामले को अनिश्चित काल तक खींचा जाता है तो यह कोर्ट के फैसले को भी नियंत्रित कर सकता है। इससे कोर्ट के फैसले को चुनौती देने का भी समय कम बचेगा।

देवगौड़ा द्वारा 17 नवंबर, 2020 के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें सिविल कोर्ट ने मंत्री की उस मांग को खारिज कर दिया था जिसमें मंत्री ने मांग की थी कि इस मामले को फिर से खोला जाए, कुछ नए सबूत जोड़ने की अनुमति दी जाए।

नंदी इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर एंटरप्राइज लिमिटेड ने 27 जून 2012 को देवेगौड़ा के खिलाफ मुकदमा दायर किया था। वादी ने दस करोड़ रुपये का नुकसान का दावा किया था। लिखित वक्तव्य 13.08.2012 को दायर किया गया था। इस मुकदमे का यह कहते हुए विरोध किया गया था कि वर्षों पहले के मामले में फंसाया जा रहा है। वादी के साक्ष्य 06.02.2019 को पूरे हो गए थे और इस मामले से जुड़े बचाव साक्ष्य 26.02.2019 को पोस्ट किया गया था।

हालांकि, याचिकाकर्ता (देवेगौड़ा) और उनके वकील अनुपस्थित रहे और इसलिए उनके सबूतों को शून्य मान लिया गया। जब मामले को सुनवाई के लिए लगभग एक साल बाद कोर्ट के समक्ष लाया गया, उसके बाद मामले के चरण को फिर से खोलने के लिए वापस आवेदन किया गया।

कोर्ट ने देवेगौड़ा द्वारा उनके आवेदन के साथ दायर तथ्यों के ज्ञापन के माध्यम से सुनवाई की और ट्रायल कोर्ट के आदेश पर विचार किया और कहा कि,

"नीचे के कोर्ट के न्यायाधीश ने अपने विवेक का उपयोग कारण और न्याय के नियमों के अनुसार किया है। इस तरह के आदेश को लागू कर दिया गया, जिसमें अनुच्छेद 227 द्वारा संवैधानिक रूप से निहित एक सीमित पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए एक रिट कोर्ट के द्वारा गहरा परीक्षण नहीं होता है।"

आगे कहा गया कि,

"जज की यह राय कि याचिकाकर्ता को मुकदमें के कार्यवाही में घसीटा गया है। ऐसा ऑर्डर शीट में दर्शाया गया है। इस तरह के मामलों में कोई संदेह करने का कोई कारण नहीं है कि रिट कोर्ट नीचे के न्यायालयों के विद्वान न्यायाधीशों के साथ राय देने की दौड़ नहीं कर सकता है। "

कोर्ट ने अब इस मुकदमे के न्यायाधीश से नौ महीने के भीतर निपटाने का अनुरोध किया है, अन्यथा पक्षों की सभी सामग्री को खुला रखा गया है।

मामले का विवरण:

मामले का शीर्षक: एच डी देवगौड़ा बनाम नंदी इन्फ्रास्ट्रक्चर कोरियर एंटरप्राइज लिमिटेड

केस नंबर: रिट पिटिशन नंबर. 725 of 2021

आदेश की तिथि: 15 जनवरी 2021

कोरम: जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित

प्रस्तुति: याचिकाकर्ता के ओर अधिवक्ता प्रभाष जी आर

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