रेप केस में आरोपियों के पक्ष में डीएनए टेस्ट रिपोर्ट अंतिम सत्य नहीं, डॉक्टर से क्रॉस एग्जामिनेशन जरूरी: कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2022-10-10 07:17 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि डीएनए टेस्ट रिपोर्ट का बलात्कार के मामले में आरोपी के पक्ष में आना कोई ठोस सबूत (Gospel Truth) नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप उसके खिलाफ कार्यवाही समाप्त हो जाएगी।

जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने आपराधिक कार्यवाही के खिलाफ आरोपी की याचिका खारिज करते हुए कहा:

"यदि आरोपी के खिलाफ डीएनए टेस्ट रिपोर्ट पॉजीटिव आती है तो यह उसके खिलाफ आगे की कार्यवाही के लिए ठोस सबूत का गठन करेगा। यदि रिपोर्ट निगेटिव आती है तो अन्य सामग्रियों का वजन और रिकॉर्ड पर सबूत की पुष्टि के लिए उस पर विचार किया जाना चाहिए। इसलिए यह ऐसा ठोस सबूत नहीं बनाता है, जिसके परिणामस्वरूप मामले में आरोपी-याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही समाप्त की जा सके।"

अदालत ने मध्य प्रदेश के सुनील बनाम राज्य में टिप्पणी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया।

मैसूर में दर्ज मामले में याचिकाकर्ता पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376(2)(i)(n) और पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) की धारा 5(j)(ii), 5(l) और 6 के तहत कथित तौर पर पिछले साल 12 साल की बच्ची का यौन शोषण करने के अपराध का आरोप लगाया गया।

बाद में पता चला कि लड़की गर्भवती है। पुलिस ने जब चार्जशीट दाखिल की तो डीएनए जांच रिपोर्ट तैयार नहीं आई थी।

इसके बाद डीएनए रिपोर्ट आरोपी के पक्ष में आई, क्योंकि उसकी राय थी कि भ्रूण का डीएनए नमूना आरोपी के नमूने से मेल नहीं खाता। इसके बाद उसने अपने खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग वाली याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

जांच - परिणाम:

पीठ ने डीएनए रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि डीएनए टेस्ट याचिकाकर्ता के पक्ष में सामने आया है। हालांकि, इसमें कहा गया कि यह आरोपी को कथित अपराधों के लिए पूरी तरह से दोषमुक्त नहीं करेगा।

अदालत ने कहा,

"टेस्ट के कारण पितृत्व संदेह में हो सकता है। कथित कार्य बिल्कुल नहीं हुआ, यह अनुमान नहीं हो सकता कि याचिकाकर्ता के पक्ष में डीएनए नमूना आने के कारण निकाला जा सकता है। अन्यथा दी गई डीएनए नमूना रिपोर्ट के विश्लेषक का भी साक्ष्य के माध्यम से पुष्टि की जानी है। इस न्यायालय के समक्ष डीएनए नमूना रिपोर्ट पेश करने का मतलब यह नहीं होगा कि इसे डॉक्टर के टेस्ट या क्रॉस एक्जामिनेशन के बिना सत्य के रूप में लिया जाना चाहिए, जिसने इस तरह की राय दी है।"

इसके बाद पीठ ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज पीड़िता के बयान पर गौर किया और कहा,

"अगर 12 साल का बच्चा मजिस्ट्रेट के सामने जो बयान देता है, उस पर ध्यान दिया जाता है तो वे सभी अक्षम्य कृत्य तब याचिकाकर्ता का हिस्सा है जब तक कि अन्यथा साबित न हो।"

इसमें कहा गया,

"डीएनए टेस्ट याचिकाकर्ता को बच्चे के पिता के रूप में बाहर कर देगा, लेकिन पीड़िता ने अपने सीआरपीसी की 164 के तहत दिए बयान में जो कहा है, उसे खारिज नहीं कर सकता। याचिकाकर्ता ने जबरन उसके साथ यौन कृत्य किया। पीड़िता की गवाही पर यकीन न करने का कोई कारण नहीं है, जैसा कि उक्त बयान में कहा गया है।"

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों के संबंध में डीएनए टेस्ट को निर्णायक सबूत नहीं कहा जा सकता। इसमें कहा गया कि डीएनए टेस्ट को पुष्ट साक्ष्य के रूप में सबसे अच्छा इस्तेमाल किया जा सकता है।

अदालत ने कहा,

"योग्यता नहीं होने के कारण आपराधिक याचिका खारिज की जाती है।"

केस टाइटल: एबीसी बनाम स्टेट बाय टी.एन.पुरा पुलिस स्टेशन

केस नंबर: आपराधिक याचिका नंबर 6789/2022

साइटेशन: लाइव लॉ (कर) 395/2022

आदेश की तिथि: 15 सितंबर, 2022

उपस्थिति: मंजुनाथ वी, याचिकाकर्ता के वकील, के.एस.अभिजीत, एचसीजीपी फॉर आर1 के लिए

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