बेंगलूरु में झुग्गियां ढहाने की कार्रवाई पर रोक, कर्नाटक हाईकोर्ट ने दी अंतरिम राहत
कर्नाटक हाईकोर्ट ने बुधवार को अंतरिम राहत के जरिए करियम्मना अग्रहार, देवराबिसनहल्ली, कुंदलहल्ली और बेल्लांदुरु के इलाकों में झुग्गियों ढहाने और उनमें रहने वालों को बाहर निकालने की ब्रुहत बेंगलूरु महानगर पालिके और बेंगलुरु पुलिस की कार्रवाई पर रोक लगा दी।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में बेंगलुरु में कई झुग्गियों को ढहा दिया गया था, जिससे कई लोग विस्थापित हो गए। अधिकारियों का कहना था कि इन झुग्गियों में रहने वाले अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं।
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) की ओर से दाखिल एक याचिका की सुनवाई में कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अभय ओका और जस्टिस हेमंत चंदनगौदार की खंडपीठ ने कहा-
"क्या किसी बाहरी ताकत ने ये झुग्गियां ढहाई हैं?"
खंडपीठ ने ये टिप्पणी बीबीएमपी के वकील द्वारा अदालत में दी गई उस जानकारी के बाद कि जिसमें बताया गया था कि निगम के अधिकारियों ने झुग्गियां नहीं ढहवाई हैं। वहीं राज्य के वकील ने कहा कि अवैध झुग्गियों को हटाने के लिए निगम ने पुलिस सुरक्षा की मांग की थी, जिस आधार पर पुलिस ने अपनी महज एक टीम को मौके पर भेजा था।
पीयूसीएल की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि बीबीएमपी और पुलिस की कार्रवाई सामूहिक आपराधिकता का कार्य है जो एक समुदाय के खिलाफ भेदभाव करती है, क्योंकि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (डी) (ई) का उल्लंघन करता है।
कोर्ट ने उत्तरदाताओं को 30 जनवरी तक अपनी आपत्तियां दर्ज करने और आदेश की मूल फाइलें पेश करने का निर्देश दिया। पुलिस और बीबीएमपी के सहायक कार्यकारी अभियंता को सुनवाई की अगली तारीख के लिए नोटिस जारी किया गया।
जिस एजेंसी की झुग्गियों को ढहाने और रहवासियों को बेदखल करने की कार्रवाई का आदेश दिया, कोर्ट ने उस एजेंसी का पता लगाने के लिए सिटी कमिश्नर को जांच करवाने का आदेश दिया है। इस संबंध में कोई जानकारी अभी उपलब्ध नहीं है।
याचिका में दावा किया गया है कि इंस्पेक्टर, मराठाहल्ली पुलिस स्टेशन द्वारा जारी किए गए नोटिस और सहायक कार्यकारी अभियंता, बीबीएमपी, मराठाहल्ली सब-डिविजन के पत्र के आधार पर झुग्गियों से लोगों को निकाला गया है।
उस नोटिस और पत्र में दावा किया था कि उपरोक्त इलाकों में अवैध बंगलादेशी अप्रवासी नागरिक रह रहे हैं। दावे का आधार कुछ व्हाट्सएप वीडियो थे।
याचिका में कहा गया है कि ऐसे नोटिस स्पष्ट रूप से मनमाने और गैर-कानूनी हैं। झुग्गियों में रह रह लोग उत्तरी कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा और बिहार के प्रवासी हैं और कमजोर सामाजिक-आर्थिक स्थिति के कारण उनका शोषण किया जा रहा है।
प्रतिवादियों द्वारा झुग्गियों को ढहाना, वहां रहने वालों को बाहर निकालाना, बिना किसी अधिकार क्षेत्र के की गई मनमानी कार्रवाई है, और उन नागरिकों के जीवन, आश्रय और आजीविका के मौलिक अधिकारों का हनन है।
याचिका में कहा गया है कि " भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को आश्रय की गारंटी दी गई है। अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त अधिकार केवल कानून द्वारा स्थापित उचित प्रक्रिया के माध्यम से ही छीना जा सकता है, जो कि मौजूदा मामले में नदारद है। उक्त संपत्तियों के विध्वंस के सबंध में किसी भी वैधानिक प्राधिकरण द्वारा कोई भी आदेश जारी नहीं किया गया था।
याचिका में आगे कहा गया है कि "पांचवें प्रतिवादी ने 11 नवंबर 2020 को जारी संदिग्ध पुलिस नोटिस में कहा है कि उस जमीन का मालिक, जिस पर बस्तियां बनाई गई थीं, गैरकानूनी ढंग से 'बांग्लादेशी अवैध प्रवासियों' को आश्रय प्रदान कर रहा है।"
याचिका में दलील दी गई है कि अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय का अधिकार, किसी भी व्यक्ति की नागरिकता, राष्ट्रीयता और भारतीय राज्य में प्रवासी के रूप में किसी कानूनी स्थिति की पर ध्यान दिए बिना , सभी व्यक्तियों को है, सभी व्यक्तियों का मौलिक अधिकार है।
याचिका में एक उचित रिट, ऑर्डर, या निर्देश जारी करने की मांग की गई है, जिसके जरिए पांचवे प्रतिवादी द्वारा 11 नवंबर 2020, को जारी 'पुलिस नोटिस' को गैर-कानूनी, बिना अधिकार व अधिकार क्षेत्र के जारी किया हुआ और निवासियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला मानते हुए रद्द किया जा सके।
याचिका में 18 नवंबर 2020 को 7वें प्रतिवादी द्वारा जारी नोटिस को भी अवैध, बिना अधिकार या अधिकार क्षेत्र के और निवासियों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन करने वाला मानते हुए रद्द करने की मांग की गई है।
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