कर्नाटक हाईकोर्ट ने बांग्लादेश की 'अवैध प्रवासी' महिला को सीएए को ध्यान रखते हुए जमानत दी
कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार को एक 'अवैध प्रवासी' बांग्लादेशी ईसाई महिला को नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के प्रावधानों के मद्देनजर जमानत दे दी।
अर्चोना पूर्णिमा प्रमाणिक बांग्लादेशी नागरिक हैं और ईसाई हैं। उन पर आरोप था कि उन्होंने अवैध रूप से भारत में प्रवेश किया था और बाद में पैन कार्ड, आधार कार्ड जैसे भारतीय दस्तावेज प्राप्त कर लिए और इन दस्तावेजों के बल पर उन्होंने धोखाधड़ी से भारतीय पासपोर्ट प्राप्त किया।
वह नवंबर 2019 से गिरफ्तार थीं और हिरासत में थीं। उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 465, 471, 468, फॉरेनर्स एक्ट, 1946 की धारा 5, 12 और 14 और नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 3 (1) (सी) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।
हाईकोर्ट के समक्ष अपनी जमानत अर्जी में उन्होंने दलीली दी थी कि नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 2 के अनुसार, जिसे नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 में संशोधित किया गया, उन्हें गैरकानूनी प्रवासी नहीं माना जा सकता है और उनके खिलाफ शुरू की गई सभी कार्यवाहियों नागरिकता अधिनियम की लागू होने के साथ ही समाप्त हो जाएंगी, इसलिए यदि उन्हें उपरोक्त प्रावधानों के अनुसार नागरिकता के लिए आवेदन करने की आवश्यकता है, तो उनकी उपस्थिति बहुत जरूरी है।
जस्टिस जॉन माइकल कुन्हा ने सशर्त जमानत देते हुए कहा-
नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के जरिए संशोधित नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 2 में यह प्रावधान है कि 31 दिसंबर 2014 या उससे पहले भारत में प्रवेश कर चुके, अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय के व्यक्तियों को पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 की धारा 3 की उपधारा (2) के क्लॉज (सी) से और फॉरेनर्स एक्ट, 1946 के प्रावधानों या उस पर किए गए किसी भी नियम या आदेश के प्रावधानों से, केंद्र सरकार द्वारा छूट दी गई है। नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के कारण उसे अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।
जज ने कहा-Karnataka HC Grants Bail To Bangladeshi 'Illegal Migrant' Woman Taking Note Of CAA Provisions
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मामले में आरोप हैं कि याचिकाकर्ता ने अपने पहचान से जुड़े दस्तावेज, जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड और पासपोर्ट को धोखाधड़ी प्राप्त किया है और इन दस्तावेजों के आधार पर वह भारत का नागरिक होने का दावा करती रही हैं।
याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि सभी दस्तावेजों को विधिवत तरीके से प्राप्त किया गया है। नागरिकता संशोधन अधिनियम के मद्देनजर और यह देखते हुए कि इस बात के प्रथमादृष्टया सुबूत है कि याचिकाकर्ता 2002 में अपने पति और बच्चे के साथ भारत में रह रही है, जब तक कि याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप को ट्रायल के जरिए स्थापित नहीं किया जाता, याचिकाकर्ता जमानत पाने का हकदार है।
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