ED समन के खिलाफ सीनियर एडवोकेट को राहत, हाईकोर्ट ने कार्रवाई पर लगाई रोक

Update: 2025-09-03 05:50 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार (1 सितंबर) को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा जारी समन पर एडवोकेट अनिल गौड़ा को अंतरिम राहत दी।

अदालत ने ED को निर्देश दिया कि जब तक अंतरिम राहत पर आदेश पारित नहीं हो जाते, तब तक एडवोकेट के खिलाफ कोई जबरन या जल्दबाजी में कार्रवाई न की जाए।

जस्टिस सचिन शंकर मागदुम ने कहा कि दोनों पक्षों की ओर से विस्तृत दलीलें पेश की गई हैं और रिकॉर्ड में मौजूद आपत्तियों व दस्तावेजों का गहन अध्ययन आवश्यक है।

अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि मुख्य मुद्दा क्या ED वकीलों को PMLA की धारा 50 के तहत समन भेज सकती है, यह मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।

याचिका में ED की कार्यवाही को पूरी तरह अवैध अधिकार क्षेत्र से बाहर और राजनीतिक प्रतिशोध प्रेरित बताया गया। याचिकाकर्ता ने कहा कि वे विधायक के.सी. वीरेंद्र के अधिवक्ता और कानूनी सलाहकार हैं और ED का उद्देश्य विपक्षी नेताओं की आवाज दबाना है।

याचिका के अनुसार, ED ने 10-15 साल पुराने चार FIR के आधार पर कार्रवाई की, जिनमें मुख्य आरोप क्रिकेट सट्टेबाजी और जुए से संबंधित हैं। इनमें कई मामलों में बरी या रद्दीकरण हो चुका है। याचिकाकर्ता का नाम या आरोपपत्र में उल्लेख तक नहीं है।

याचिका में कहा गया कि विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत संघ (2023) फैसले के अनुसार अपराध की आय का कोई अस्तित्व ही नहीं है।

सीनियर एडवोकेट विकास पाहवा ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही वकीलों को उनके पेशेवर परामर्श के आधार पर समन भेजने पर चिंता जताई है। ऐसे में याचिकाकर्ता द्वारा विधायक को दी गई कानूनी राय संरक्षित है।

वहीं एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अरविंद कामथ ने इसका विरोध करते हुए कहा कि ED ने समन एडवोकेट की वकील भूमिका में नहीं बल्कि उनकी व्यावसायिक कंपनियों में भागीदारी के आधार पर जारी किए।

याचिकाकर्ता ने 24 अगस्त, 2025 के समन को निरस्त करने और ED की समूची कार्यवाही को अवैध घोषित करने की मांग की है। वैकल्पिक रूप से, उन्होंने अनुरोध किया कि ED उन्हें PMLA की धारा 50 के तहत जबरन बयान देने के लिए बाध्य न करे, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन होगा।

टाइटल: अनिल गौड़ा बनाम प्रवर्तन निदेशालय

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