'केवल इस आधार पर पूरे परिवार को हत्या के गंभीर अपराध के लिए कलंकित नहीं किया जा सकता कि शादी के दो महीने के भीतर वैवाहिक घर में पत्नी की मौत हो गई': बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2021-04-15 07:47 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले में मृत पत्नी के पति और ससुराल वालों को बरी किया। इस मामले में कोर्ट ने देखा कि शादी के दो महीने के भीतर पत्नी ने आत्महत्या कर ली थी। यह देखते हुए कोर्ट ने कहा कि केवल इस आधार पर पूरे परिवार (ससुराल वालों) को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत हत्या के गंभीर अपराध के लिए कलंकित नहीं किया जा सकता कि शादी के दो महीने के भीतर वैवाहिक घर में पत्नी की मृत्यु हो गई।

न्यायमूर्ति एनआर बोरकर और न्यायमूर्ति साधना एस जाधव की खंडपीठ ने 29 जून 2012 के सेशन कोर्ट के फैसले को पलटा, जिसमें पति और परिवार के अन्य सदस्यों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498-ए, 302, 304-बी, धारा 34 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और धारा 4 के तहत दोषी ठहराया गया था।

बेंच ने देखा कि  पत्नी (लड़की) के माता-पिता ने जल्दीबाजी में विवाह कर दिया क्योंकि उन्हें उनकी बेटी के लिए एक अच्छा लड़का मिल गया था। लड़की के माता-पिता का यह फैसला लड़की की इच्छा और उसकी शिक्षा के खिलाफ था। न्यायालय ने यह भी कहा कि आत्महत्या तनाव की स्थिति में की गई थी।

सचिन और मेघा की शादी 28 जुलाई 2010 को हुई और वे एक संयुक्त परिवार में रहते थे। शादी के दो महीने बाद सितंबर 2010 में मेघा को उनके बेडरूम के अंदर पंखे से लटका पाया गया। उसके पिता द्वारा पुलिस स्टेशन में एक रिपोर्ट दर्ज कराई गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उनकी बेटी ने उनसे शिकायत की थी कि सचिन को शादी में सोने की अंगूठी नहीं मिलने के कारण वह पत्नी साथ दुर्व्यवहार और उत्पीड़न करता है और पत्नी को खाना तक ठीक से नहीं दिया जाता है।

अभियोजन पक्ष ने लगभग 9 गवाहों पेश किए जबकि बचाव पक्ष ने 4 गवाहों पेश किए।

अपीलकर्ता ने कहा कि यह स्पष्ट और पुख्ता सबूत कि दोनों परिवारों के सदस्यों के बीच दहेज या गहने को लेकर कोई विवाद नहीं था। इसके अलावा यह भी तर्क दिया गया कि मेघा ने अपनी शादी के 2 महीने के भीतर आत्महत्या कर ली। इसका मतलब यह है कि मेघा की शादी उसकी इच्छा के खिलाफ जा कर की गई थी।

दूसरी ओर अभियोजन पक्ष ने कहा कि मेघा ने मेंटल डिप्रेशन के चलते आत्महत्या की जो कि आरोपी व्यक्तियों को पता है। यह भी प्रस्तुत किया गया कि मेघा ने कुछ दिन पहले ही अपने पिता और भाई से की गई शिकायत की थी कि शादी के समय परिवार को अच्छी तरह से सम्मान नहीं देने और सोने की अंगूठी की मांग को पूरा नहीं करने के कारण उसके साथ बुरा व्यवहार किया जा रहा है।

अदालत ने मामले के तथ्यों और गवाहों को सुनने के बाद कहा कि चिकित्सकीय रिपोर्ट के मुताबिक मेघा की मौत का कारण फांसी लगाने से हुई है और इसलिए आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या के अपराध का दोष सिद्ध नहीं होता है। कोर्ट ने न्यूरोलॉजिस्ट के उस बयान पर भी ध्यान दिया, जिसके पास मेघा इलाज कर रही थी। उसने कहा कि वह 2005 से मानसिक तनाव से जुझ रही थी और एक संवेदनशील लड़की थी।

कोर्ट ने अवलोकन किया कि,

"इसलिए भारतीय दंड संहिता ( आईपीसी) की धारा 498 ए के तहत दोषी ठहराए जाने के लिए कोई मामला नहीं बनता है। मौजूदा मामलों में केवल इस आधार पर पूरे परिवार (ससुराल वालों) को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत हत्या के गंभीर अपराध के लिए कलंकित नहीं किया जा सकता कि शादी के दो महीने के भीतर वैवाहिक घर में पत्नी की मृत्यु हो गई। कानूनी रूप से सबूत के अभाव में नैतिक दोष नहीं हो सकता है।"

कोर्ट ने इस मामले में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113 बी पर भी ध्यान दिया। हालांकि न्यायालय ने कहा कि यह एक प्रतिशोधी अनुमान है और सभी उचित संदेह से परे मामले को साबित करने के लिए अभियोजन को अनुपस्थित नहीं करता है।

कोर्ट ने कहा कि,

"आसपास की परिस्थितियों को भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है। वर्तमान मामले में यह नहीं कहा जा सकता है कि उसकी मृत्यु संदिग्ध परिस्थितियों में हुई है। यह शादी के दो महीने के भीतर आत्महत्या का मामला है। अभियोजन पक्ष किसी भी उत्पीड़न को साबित करने में विफल रहा है। दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत अपराध उचित संदेह से परे साबित नहीं होते हैं। "

हाईकोर्ट ने सेशन कोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि,

"यह प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है कि मृतक मेघा अपनी शिक्षा जारी रखना चाहती थी। हालांकि एक अच्छा रिश्ता मिलने पर मेघा के माता-पिता ने जल्दबाजी में शादी करा दी, लेकिन वह शादी से खुश नहीं थी। इन सब वजहों से डिप्रेशन में आ कर आत्महत्या कर ली। ये सभी तथ्य दिखाते हैं कि अपीलकर्ता / आरोपी बरी होने के योग्य है।"

इसी तरह के एक मामले में इस महीने की शुरुआत में दिल्ली की एक अदालत ने मृतक पत्नी के पति और ससुराल वालों को बरी कर दिया था। इस मामले में भी पत्नी ने शादी के एक महीने के भीतर आत्महत्या कर ली थी। पति और ससुराल वालों पर दहेज के लिए क्रूरता, दहेज हत्या और आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगा था। कोर्ट ने कहा था कि शादी के कुछ ही महीनों में वैवाहिक घर में पत्नी द्वारा आत्महत्या करने का यह मतलब नहीं है कि पति और ससुराल वालों द्वारा महिला को इस हद तक प्रताड़ित किया गया कि वह आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो गई।

कोर्ट ने आगे कहा कि, यदि एक दुल्हन / लड़की अपनी शादी के कुछ दिनों या महीने के भीतर अप्राकृतिक परिस्थितियों में आत्महत्या कर लेती है, तो कानून लड़के के परिवार के खिलाफ अनुमान लगाता है, लेकिन यह उस लड़की की अति संवेदनशीलता नहीं दिखाता है जिसने इस पवित्र रिश्ते को समय नहीं दिया।

शीर्षक: सचिन रामचंद्र टेके बनाम महाराष्ट्र राज्य

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