झारखंड हाईकोर्ट ने प्रशासनिक सेवा कैडर में आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए जेपीएससी आवंटन के फैसले को बरकरार रखा

Update: 2023-11-24 07:42 GMT

हाल के एक फैसले में, झारखंड हाईकोर्ट ने झारखंड प्रशासनिक सेवा कैडर में पदों के लिए आरक्षित श्रेणी के तहत विशेष विचार की मांग करने वाली उम्मीदवारों द्वारा दायर कई अपीलों को खारिज कर दिया। अपीलें समान मामलों में हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश द्वारा पारित सामान्य आदेश के खिलाफ दाखिल की गई थीं।

अदालत ने एकल न्यायाधीश के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि याचिकाकर्ता 2016 के विज्ञापन संख्या 23 के तहत झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) द्वारा जारी विज्ञापन की शर्त संख्या 3 में उल्लिखित विशेष विषय स्नातक की आवश्यकता को पूरा नहीं करते हैं। इसके बावजूद, जेपीएससी ने उनकी उम्मीदवारी रद्द ना करने का फैसला किया, बल्कि उनके आवेदनों पर विचार करते हुए उन्हें योग्यता के आधार पर आरक्षित श्रेणी में रखा।

जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस नवनीत कुमार की पीठ ने कहा,

“हमने जेपीएससी के फैसले की जांच अनुसूचित जाति वर्ग के उम्मीदवारों के हित के उद्देश्य और इरादे के आलोक में की है और चूंकि उन उम्मीदवारों ने विज्ञापन की शर्त संख्या 3 के तहत दिए गए नोट के अनुसार विशेष विषय में स्नातक नहीं किया है , इसलिए, यदि उन परिस्थितियों में, जेपीएससी ने उनकी उम्मीदवारी को रद्द करने के बजाय आरक्षित श्रेणी के तहत उम्मीदवारी पर विचार करने और उन्हें आरक्षित श्रेणी में रखने का निर्णय लिया है, जिस योग्यता और आधार पर वे झारखंड प्रशासनिक सेवा कैडर में हैं, उसे अनुचित नहीं कहा जा सकता।”

पीठ ने कहा,

“यहां फिर से यह उल्लेख करने की आवश्यकता है कि खंड -8 के मद्देनज़र, जिसके आधार पर झारखंड राज्य के कार्मिक विभाग का नीतिगत निर्णय लिया गया है, रिट याचिकाकर्ताओं के लिए यह आधार लेना उपलब्ध नहीं है कि कोई भी अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत प्रदान किया गया बताया गया है क्योंकि राज्य ने अनुच्छेद 16(4) के तहत निहित सक्षम प्रावधान के तहत ऐसे उम्मीदवार के लिए कोई नीतिगत निर्णय नहीं लिया है जिसे आरक्षित श्रेणी के तहत माना जाए और ऐसे मामले में, यदि जेपीएससी द्वारा आरक्षित श्रेणी के तहत खुली श्रेणी के उम्मीदवारों के बराबर अंक प्राप्त करने वाले उक्त उम्मीदवार को स्थानांतरित ना करने का निर्णय लिया गया है, तो इसे त्रुटि से ग्रस्त नहीं कहा जा सकता है।"

तथ्य

मामले के तथ्यात्मक संदर्भ के आलोक में, झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) ने विभिन्न सेवाओं और श्रेणियों के लिए राज्य की मांग के अनुसार 326 रिक्तियों को भरने के लिए 2016 का विज्ञापन संख्या 23 जारी किया।

इस मामले में याचिकाकर्ता आरक्षित वर्ग से थे और उन्होंने अपनी ही श्रेणी के उम्मीदवारों की तुलना में अधिक अंक हासिल किए। हालांकि, उनके बेहतर प्रदर्शन के बावजूद, उन्हें ओपन मेरिट (यूआर) श्रेणी के उम्मीदवारों के बराबर माना गया और उन्हें झारखंड सूचना सेवा, योजना सेवा और वित्त सेवा कैडर में पद आवंटित किए गए।

अदालत के समक्ष याचिकाकर्ताओं की मुख्य चिंता यह थी कि भले ही उन्होंने झारखंड प्रशासनिक सेवा कैडर में अंतिम चयनित उम्मीदवारों से बेहतर प्रदर्शन किया था, फिर भी उन्हें आरक्षित श्रेणी के हिस्से के रूप में मान्यता दिए जाने के बजाय खुली श्रेणी (यूआर) के तहत विभिन्न सेवाएं आवंटित की गईं।

उनकी शिकायत उनकी कड़ी मेहनत और खुली श्रेणी के बराबर अंक प्राप्त करने के कारण गलत व्यवहार किए जाने के कथित अन्याय के इर्द-गिर्द है। यह तर्क दिया गया कि उन्हें उनकी संबंधित आरक्षित श्रेणी के तहत माना जाना चाहिए, खासकर यह देखते हुए कि झारखंड प्रशासनिक सेवा कैडर के मामले में अनुसूचित जाति और अन्य आरक्षित श्रेणियों के उम्मीदवार, जिन्होंने याचिकाकर्ताओं से कम अंक प्राप्त किए थे, उन्हें झारखंड प्रशासनिक सेवा कैडर में पद आवंटित किए गए थे।

चूंकि उनकी परेशानी का समाधान नहीं हुआ, याचिकाकर्ताओं ने इसके निवारण की मांग करते हुए रिट याचिकाएं दायर कीं। रिट याचिकाओं की सुनवाई एकल न्यायाधीश द्वारा की गई और विज्ञापन के खंड 8 के तहत निर्धारित शर्तों पर विचार करते हुए, जो कार्मिक प्रशासनिक सुधार और राजभाषा विभाग द्वारा जारी कार्यकारी निर्देशों के साथ-साथ शीर्ष न्यायालय की विभिन्न घोषणाओं पर आधारित थी, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 16 (4) के अनुसार विचार किया गया था , एकल न्यायाधीश ने रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया था। जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान अपील दाखिल की गई।

फैसला

पीठ ने पाया कि रूल्स ऑफ एग्जीक्यूटिव के तहत, कार्मिक प्रशासनिक सुधार और राजभाषा विभाग नियम बनाने के लिए नोडल विभाग है और एक बार जब वे तैयार हो जाते हैं, तो संविधान के अनुच्छेद 166(3) के तहत उक्त नियम के मद्देनज़र अन्य विभागों द्वारा भी इसका पालन किया जाना चाहिए।

इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने पाया कि राज्य ने 31.10.2011 को एक नीतिगत निर्णय लिया था, जिसमें कहा गया था कि जिन उम्मीदवारों ने खुली-श्रेणी के उम्मीदवारों के बराबर अंक प्राप्त किए हैं, उन्हें खुली श्रेणी के तहत माना जाएगा। इस नीति ने अन्य आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को आरक्षण का लाभ उठाने की अनुमति दी।

कोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि याचिकाकर्ताओं ने खुली श्रेणी में अंतिम चयनित उम्मीदवार के बराबर अंक हासिल किए थे और उनके पास विज्ञापन की शर्त संख्या 3 में उल्लिखित आवश्यक शैक्षणिक योग्यताएं थीं। यह जानकारी न्यायालय के समक्ष एक सारणीबद्ध चार्ट में प्रस्तुत की गई थी, जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि याचिकाकर्ताओं ने खुली-श्रेणी के उम्मीदवारों के बराबर प्रदर्शन किया था।

इसके अलावा, न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि याचिकाकर्ता स्नातक के लिए विज्ञापन की शर्त संख्या 3 में निर्दिष्ट अपेक्षित योग्यताओं को पूरा करने पर, समकक्ष अंकों के कारण उनकी उम्मीदवारी को खुली श्रेणी के तहत माना गया था, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें संबंधित सेवा कैडर आवंटित किया गया था।

कोर्ट ने पाया कि रिट याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि उन्हें एक प्रतिकूल स्थिति में डाल दिया गया था क्योंकि जिन उम्मीदवारों ने उनसे कम अंक प्राप्त किए थे, उन्हें झारखंड प्रशासनिक सेवा कैडर आवंटित किया गया था, और रिट याचिकाकर्ताओं को अन्य आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों की तुलना में अधिक अंक प्राप्त हुए थे, को झारखण्ड वित्त सेवा, झारखण्ड योजना सेवा एवं झारखण्ड सूचना सेवा आवंटित कर नुकसान वाली स्थिति में डाल दिया गया।

मनीष कुमार शाही बनाम बिहार राज्य, (2010) 12 SCC 576 में शीर्ष न्यायालय के फैसले पर भरोसा करते हुए, न्यायालय ने कहा, "रिट याचिकाकर्ता बिना किसी आपत्ति के उपस्थित हुए और उक्त स्थिति को देखने के बाद भी, चयन की प्रक्रिया में भाग लिया और जब चयन प्रक्रिया समाप्त हो गई तो वे अब वे चयन की पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं, लेकिन उन्हें पलटने की इजाजत नहीं दी जा सकती।'

न्यायालय ने रेखांकित किया कि निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए भर्ती प्रक्रियाओं को भर्ती नियमों, विनियमों या नीतिगत निर्णयों का पालन करना चाहिए। इस मामले में, झारखंड राज्य ने परिपत्र संख्या 12165 दिनांक 31.10.2011 के तहत एक नीतिगत निर्णय पेश किया था, जिसका विज्ञापन में खंड 8 के रूप में विधिवत उल्लेख किया गया था। इस नीति के आधार पर चयन प्रक्रिया आयोजित की गई थी, और न्यायालय ने निर्णय लेने की प्रक्रिया में त्रुटि का कोई निष्कर्ष नहीं निकाला।

खंड 8 इस प्रकार पढ़ा जाता है: एक उम्मीदवार जो आरक्षित श्रेणी के अंतर्गत है, उसने खुली श्रेणी के अंतर्गत आने वाले उम्मीदवार के बराबर अंक प्राप्त किए हैं, ऐसे उम्मीदवार की उम्मीदवारी को खुली श्रेणी के तहत उम्मीदवार माना जाएगा, यदि उसने किसी भी छूट के आधार पर आरक्षित श्रेणी के तहत उम्मीदवारी स्वीकार नहीं की है।

यह नोट किया गया कि उम्मीदवारों को झारखंड लोक सेवा आयोग द्वारा स्थापित मानदंडों के आधार पर कैडर आवंटित किया गया था, और उन्होंने शर्त संख्या 8 को चुनौती नहीं दी थी, जो चयन प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग था। इसलिए, न्यायालय ने इस सिद्धांत को बरकरार रखा कि जिन उम्मीदवारों ने चयन प्रक्रिया में सक्रिय रूप से और निर्विवाद रूप से भाग लिया था, वे बाद में इसे चुनौती नहीं दे सकते, क्योंकि अपीलकर्ताओं ने विज्ञापन की शर्त संख्या 8 को चुनौती नहीं दी थी जबकि वे ऐसा कर सकते थे।

अदालत ने यह भी कहा कि, झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) की ओर से दायर जवाबी हलफनामे के अनुसार, अन्य उम्मीदवार जिन्होंने रिट याचिकाकर्ताओं की तुलना में कम अंक हासिल किए थे, उन्हें झारखंड प्रशासनिक सेवा कैडर में आवंटित किया गया था, क्योंकि एक विषय के रूप में इन उम्मीदवारों के पास इतिहास विषय था , जो उन्हें विज्ञापन की शर्त संख्या 3 के अनुसार योजना सेवा कैडर के लिए अयोग्य बनाता है।

अदालत ने कहा,

“अगर ऐसी परिस्थितियों में जेपीएससी ने इन उम्मीदवारों की उम्मीदवारी पर विचार नहीं किया है, भले ही उन्होंने खुली श्रेणी के उम्मीदवारों के बराबर 600 से अधिक अंक हासिल किए हों, तो क्या इस संदर्भ में यह उचित कहा जा सकता है कि यदि उन्हें खुली श्रेणी के उम्मीदवार के तहत नहीं माना गया तो फिर परिणाम क्या होगा।”

अदालत ने कहा,

“नतीज़ा यह होगा कि उन्हें चयन की प्रक्रिया से बाहर कर दिया जाएगा। आरक्षण का लाभ ओबीसी श्रेणी के उम्मीदवारों को लाभ देने के उद्देश्य से है और जब लाभ बढ़ाने के उद्देश्य से कोई कानून बनाया जा रहा है, तो इसका अर्थ लाभ का विस्तार करना है न कि विधायी इरादे और इसे बनाने के उद्देश्य को विफल करना।"

निष्कर्ष में, न्यायालय ने पुष्टि की कि एकल न्यायाधीश ने खंड 8 और खंड 14 में निर्दिष्ट शर्तों पर विचार किया था, और एकल न्यायाधीश के आदेश में दिए गए कारणों के आधार पर, न्यायालय को विवादित आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला। परिणामस्वरूप, सभी अपीलें खारिज कर दी गईं।

LL साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (Jha) 81

केस: चंदन बनाम झारखंड राज्य और अन्य

केस नंबर: LPA नंबर 231/ 2021

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