जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने अत्यधिक देरी का हवाला देते हुए बर्खास्तगी के खिलाफ सीआरपीएफ कांस्टेबल की याचिका खारिज कर दी, अनुशासित बल के लिए उनकी उपयुक्तता पर सवाल उठाया
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने एक सीआरपीएफ कांस्टेबल की बर्खास्तगी को ये कहते हुए बरकरार रखा है कि उसकी बर्खास्तगी के आदेश को चुनौती देने में छह साल की देरी हुई है। कोर्ट ने अनुशासित बल के लिए उनकी उपयुक्तता पर सवाल उठाया।
जस्टिस मोक्ष काज़मी खजुरिया की एकल पीठ ने कहा,
"याचिकाकर्ता को 2001 के समाप्ति आदेश को कम से कम इस अदालत द्वारा प्रदान किए जाने के बाद चुनौती देनी थी। लेकिन याचिकाकर्ता इस मामले में सोया रहा, लगभग छह साल तक गहरी नींद में रहा और बिना किसी संख्या, तारीख या रसीद के दस्तावेज के याचिका दायर की। देरी को इतने हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, जब याचिकाकर्ता यह स्पष्ट करने में बुरी तरह से विफल रहा हो कि समाप्ति आदेश प्रस्तुत किए जाने के बाद वह इस न्यायालय से संपर्क क्यों नहीं कर सका।"
अनुशासनात्मक प्राधिकरण ने याचिकाकर्ता को छुट्टी खत्म होने के बाद "भगोड़ा" घोषित किया था और घोषित किया था कि वह अनुशासित बल में बनाए रखने के लिए अयोग्य है।
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि उसने अपनी मां की बीमारी के कारण 60 दिन की छुट्टी ली थी, लेकिन इस अवधि के दौरान, उसकी मां और पत्नी का निधन हो गया, जिसके परिणामस्वरूप उसके लिए महत्वपूर्ण भावनात्मक संकट पैदा हो गया, जिससे उपचार की आवश्यकता वाले प्रतिकूल मानसिक लक्षणों का सामना करना पड़ा।
उन्होंने आगे कहा कि विवादित आदेश सीआरपीएफ नियम, 1955 के नियम 27 के अनुसार उन्हें सुनवाई का अवसर दिए बिना या किसी भी गवाह से जिरह करने का अवसर दिए बिना एकपक्षीय आदेश पारित किया गया था।
प्रतिवादियों ने अदालत का दरवाजा खटखटाने में याचिकाकर्ता की ओर से अस्पष्टीकृत देरी का हवाला देते हुए याचिका की विचारणीयता का विरोध किया।
मामले पर निर्णय देते हुए, न्यायमूर्ति काज़मी ने कहा कि याचिकाकर्ता ने कहा है कि 12.07.2000 से 09.09.2000 तक 60 दिनों की छुट्टी उनके पक्ष में दी गई थी, लेकिन उन्होंने अपनी पत्नी और मां की मृत्यु की तारीख का कहीं भी उल्लेख नहीं किया है।
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के अनुसार, उन्हें 2001 के बर्खास्तगी आदेश के बारे में अदालत के एक आदेश के माध्यम से वर्ष 2011 में ही पता चला।
कोर्ट ने कहा, "भले ही यह मान लिया जाए कि याचिकाकर्ता को 2001 से 2011 तक मनोरोग संबंधी समस्या थी। फिर भी उसने इस याचिका को दायर करने के लिए इस अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए 2017 तक छह साल तक इंतजार किया।"
इस प्रकार यह माना गया कि प्रतिवादियों ने आक्षेपित आदेश में सही कहा है कि याचिकाकर्ता सीआरपीएफ जैसे अनुशासित बल में बने रहने के योग्य नहीं है।
केस टाइटल: निसार अहमद शाह बनाम भारत संघ व अन्य।
साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (जेकेएल) 120
याचिकाकर्ता के वकील: अतीब कंठ
प्रतिवादी के वकील: ताहिर शम्सी डीजीएसआई
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