जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने नाबालिग बलात्कार पीड़िता को 30 सप्ताह की गर्भावस्था का मेडिकल टर्मिनेशन करवाने की अनुमति दी

Update: 2023-03-22 04:14 GMT

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में 30 सप्ताह के अवांछित भ्रूण की टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी कराने की अनुमति दी। कोर्ट ने यह देखते हुए उक्त अनुमति दी कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए संवैधानिक न्यायालय को एमटीपी अधिनियम, 1971 की धारा 3 (2) के तहत निर्धारित शक्तियों की तुलना में व्यापक अधिकार प्राप्त हैं। की।

जस्टिस संजय धर ने नाबालिग द्वारा अपने पिता के माध्यम से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश पारित किया, जिसमें नाबालिग की गर्भावस्था को टर्मिनेट करने की मांग की गई।

केस डायरी पर गौर करने के बाद पीठ ने कहा कि 27 फरवरी 2023 को पीड़िता के पिता ने पुलिस में एक रिपोर्ट दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसकी 11 साल की बेटी गर्भवती हो गई है, क्योंकि किसी ने उसके साथ बलात्कार किया। इस रिपोर्ट के आधार पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 363, 376, 506 और पॉक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत एफआईआर दर्ज की गई और जांच शुरू की गई।

पीठ ने आगे कहा कि पीड़िता की मेडिकल जांच की गई, जिससे डॉक्टर्स की राय से पता चला कि यौन संपर्क किया गया और रोगी वर्तमान में सिंगल लाइन अंतर्गर्भाशयी भ्रूण के साथ 30 सप्ताह की गर्भवती है।

जस्टिस धर ने मामले पर निर्णय देते हुए कहा कि वर्तमान मामला पीड़ित लड़की की "दुखद और घिनौनी" कहानी है, जिसे यह कहते हुए 11 साल की उम्र में गर्भवती कर दिया गया कि "वह केवल चौथी कक्षा में पढ़ रही है और उम्मीद कर रही है उसके आगे उज्जवल भविष्य होगा।"

अदालत ने वर्तमान मामले पर लागू होने वाले कानून की व्याख्या करते हुए कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स 2003 के नियम 3बी में स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट है कि यौन उत्पीड़न या बलात्कार या व्यभिचार से बचे लोग भी 24 सप्ताह तक के टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी करने के पात्र हैं। इसके अलावा, 1971 के अधिनियम की धारा 3 की व्याख्या-2 में यह प्रावधान है कि जब बलात्कार के कारण गर्भावस्था होती है तो ऐसी गर्भावस्था के कारण होने वाली पीड़ा को गर्भवती महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर चोट माना जाएगा।

जस्टिस धर ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के सेट का उल्लेख करते हुए कहा कि संवैधानिक न्यायालय इस तथ्य के कारण कि वे व्यापक शक्तियों के साथ निहित हैं, उचित और योग्य मामलों में 24 सप्ताह से अधिक टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी करने की अनुमति दे सकते हैं।

पीठ ने कहा,

"इस प्रकार, संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए इस न्यायालय को अधिनियम, 1971 की धारा 3(2) के तहत निर्धारित शक्तियों की तुलना में व्यापक शक्तियां प्राप्त हुई हैं, जो गर्भावस्था की अवधि अधिकतम 24 सप्ताह से अधिक न होने पर ही टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी की अनुमति देती है।"

पीठ ने पीड़िता की कम उम्र को देखते हुए कहा कि अगर पीड़िता को टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी की अनुमति नहीं दी जाती है, जिसने टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी की इच्छा व्यक्त की है, तो इसका न केवल उसके शारीरिक स्वास्थ्य पर बल्कि गंभीर परिणाम भी होंगे, क्योंकि उसे जीवन भर अवांछित प्रजनन के आघात और कलंक के साथ रहना होगा।

यह उसके हित में नहीं होगा और होने वाले बच्चे के हित में भी नहीं होगा। इन परिस्थितियों में अगर पीड़िता को टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी की अनुमति नहीं दी जाती है तो उसका भविष्य समाप्त हो जाएगा। उन्होंने इसके लिए याचिका भी दायर की है।

जस्टिस धर ने आगे कहा कि क्या इस स्तर पर पीड़िता का टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी मेडिकल रूप से संभव होगा या क्या इससे उसके जीवन को कोई खतरा होगा, ऐसे मुद्दे हैं जिन पर संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों को विचार करना होगा, जिसके बाद उन्होंने यह निर्णय लेने के लिए कि पीड़िता की टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी की जानी चाहिए या नहीं।

अदालत ने कहा,

"अगर मेडिकल बोर्ड की राय है कि नाबालिग पीड़िता की प्रेग्नेंसी को उसके जीवन के जोखिम के बिना टर्मिनेट किया जा सकता है तो प्रिंसिपल, जीएमसी, श्रीनगर यह सुनिश्चित करेगा कि नाबालिग पीड़िता का टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम के प्रावधानों और उसके तहत बनाए गए नियमों और इस उद्देश्य के लिए निर्धारित अन्य सभी नियमों और दिशानिर्देशों के अनुसार, सक्षम डॉक्टरों द्वारा की जाए।"

याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत ने प्रिंसिपल, गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) श्रीनगर को तुरंत स्त्री रोग विशेषज्ञ, बाल रोग विशेषज्ञ, रेडियोलॉजिस्ट या सोनोलॉजिस्ट, मनोचिकित्सक और किसी भी अन्य विशेषज्ञ का मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया, जिसे 21 मार्च को पीड़िता की मेडिकल जांच के लिए आवश्यक समझा जा सकता है।

पीठ ने आगे निर्देश दिया कि यदि टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी के प्रयासों के बावजूद बच्चा जीवित पैदा होता है तो डॉक्टर यह सुनिश्चित करेंगे कि बच्चे की सभी आवश्यक देखभाल की जाए।

सरकार को पीड़िता के टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी के लिए सभी आवश्यक खर्चों को वहन करने का निर्देश देते हुए पीठ ने प्रधान जीएमसी को दस दिनों के भीतर न्यायालय के रजिस्ट्रार न्यायिक के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा। इसके बाद रजिस्ट्रार न्यायिक इस मामले को 31 मार्च को अनुपालन रिपोर्ट देखने के लिए न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध करेंगे।

केस टाइटल: एक्स (माइनर) बनाम यूटी ऑफ जम्मू-कश्मीर व अन्य।

साइटेशन: लाइवलॉ (जेकेएल) 61/2023

याचिकाकर्ता के वकील: मुसवीर मीर और प्रतिवादी के वकील: आसिफा पडरू, एएजी।

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