यदि समझौते के बावजूद आपराधिक कार्यवाही जारी रहती है तो पक्षकारों के साथ अन्याय होगा : जेकेएल हाईकोर्ट ने आरपीसी की धारा 498ए के तहत एफआईआर रद्द की

Update: 2022-03-20 07:00 GMT

J&K&L High Court

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) की धारा 498ए (क्रूरता का अपराध) के तहत दर्ज एक एफआईआर को रद्द करते हुए कहा है कि यदि मामले के पक्षकारों द्वारा समझौता किए जाने के बावजूद, आपराधिक कार्यवाही को जारी रखने की की अनुमति दी जाती है तो यह मामले के पक्षकारों के साथ अत्यधिक अन्याय होगा।

जस्टिस संजय धर की खंडपीठ ने आगे कहा कि इस तरह के मामले में एफआईआर रद्द करने से इनकार करना दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते के परिणाम को नष्ट करने के समान होगा।

अदालत अब्दुल्ला दानिश शेरवानी द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने आरपीसी की धारा 498 ए के तहत उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर (उसकी पत्नी द्वारा दर्ज) और विशेष मोबाइल मजिस्ट्रेट 13 वें वित्त आयोग (उप न्यायाधीश), श्रीनगर की कोर्ट के समक्ष लंबित आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी।

यह प्रस्तुत किया गया कि आपराधिक कार्यवाही की लंबितता के दौरान, दोनों पक्षों के बीच एक समझौता हुआ था और तदनुसार, नवंबर 2018 में पक्षकारों ने एक समझौता विलेख निष्पादित किया था, जिसमें पक्षकारों ने अपने विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाया और उनके बीच लंबित मामलों को वापस लेने का निर्णय लिया क्योंकि वे लंबित मुकदमों में खुद को शामिल किए बिना शांति से रहना चाहते हैं।

आगे यह भी दलील दी गई कि समझौता विलेख में शिकायतकर्ता ने यह कहा था कि वह आक्षेपित एफआईआर पर आगे कोई कार्यवाही नहीं चाहती है।

हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों को ध्यान में रखा और निष्कर्ष निकाला कि हाईकोर्ट के पास विवाह (दहेज या पारिवारिक विवादों से संबंधित) से उत्पन्न होने वाले उन कथित अपराधों के संबंध में आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की शक्ति है जहां गलत कृत्य मूल रूप से निजी या व्यक्तिगत प्रकृति का है और पक्षकारों ने अपने पूरे विवाद को सुलझा लिया है।

तत्काल मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने पाया कि वैवाहिक विवाद के पक्षकारों यानी याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता ने एक समझौता किया है और पक्षकारों ने उस समझौता पर आगे कार्रवाई भी है क्योंकि पक्षकारों ने एक दूसरे के विरुद्ध दर्ज कराये गये मामले और काउंटर मामले वापस ले लिए हैं/कंपाउड किए गए हैं।

इसे देखते हुए, न्यायालय ने याचिका को अनुमति दे दी और एफआईआर व आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए कहा कि,

''केवल इसलिए कि आरपीसी की धारा 498ए के तहत अपराध, जिसके लिए शिकायतकर्ता द्वारा की गई शिकायत के आधार पर याचिकाकर्ता मुकदमे का सामना कर रहा है, गैर-शमनीय (non-compoundable) है, यदि आपराधिक कार्यवाही को समाप्त नहीं किया जाता है, तो यह याचिकाकर्ता के प्रति गंभीर अन्याय होगा और, वास्तव में, यह पक्षकारों के बीच हुए समझौते के परिणाम को नष्ट करने के समान होगा।''

इन परिस्थितियों में, याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखना, कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं होगा।''

केस का शीर्षक- अब्दुल्ला दानिश शेरवानी बनाम जम्मू-कश्मीर का केंद्र शासित प्रदेश व अन्य

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