जब्त वाहनों को थानों में लंबे समय तक धूप, बारिश और उचित रखरखाव के बिना नुकसान की स्थिति में रखने का कोई फायदा नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट ने बुधवार (5 अगस्त) को सुनाये एक आदेश में इस ओर इशारा किया कि जब्त वाहनों को थानों में लंबे समय तक धूप, बारिश और उचित रखरखाव के बिना नुकसान की स्थिति में रखने का कोई फायदा नहीं होता है।
न्यायमूर्ति एस. के. पाणिग्रही की पीठ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किये गए मामले, सुंदरभाई अंबालाल देसाई बनाम गुजरात सरकार 2002 (10) SCC 283 एवं उड़ीसा हाईकोर्ट द्वारा तय किये गए मामले दिलीप दास बनाम उड़ीसा राज्य 2019 (III) ILR-CUT 386 की राय के मद्देनजर, मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता रत्नाकर बेहरा को उनकी जब्त गाड़ी को प्राप्त करने की इजाजत दे दी।
वर्तमान आवेदनकर्ता (रत्नाकर बेहरा) सीआरपीसी की धारा 482 के तहत, वर्ष 2019 के क्रिमिनल रिवीजन नंबर 11 मामले में डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज, मयूरभंज, बारीपदा द्वारा 05-02-2020 को पारित आदेश को चुनौती दी थी, जिसके अंतर्गत क्रिमिनल मिस्सलेनियस केस नंबर 32 में 4-11-2019 को एस.डी.जे.एम., बारीपदा द्वारा सुनाये गए आदेश की पुष्टि की गई थी।
दरअसल, एस.डी.जे.एम., बारीपदा ने Cr.P.C की धारा 457 के तहत मौजूदा याचिकाकर्ता द्वारा ओडिशा आबकारी अधिनियम की धारा 52 (ए) और 62 (1) के तहत अपराधों के संबंध में जब्त वाहन की डिलीवरी के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया था।
क्या था यह मामला?
याचिकाकर्ता उक्त वाहन, TATA ACE पिक अप का पंजीकृत मालिक है। पुलिस ने उक्त वाहन को जब्त कर लिया, क्योंकि इस वाहन से अवैध रूप से बारिपदा शहर के टंकी साही के पास 51.8 लीटर आईएमएफएल ले जाया जा रहा था। पी. आर. संख्या 49/2019-20 में याचिकाकर्ता पर कोई आरोप नहीं लगाया गया था।
आबकारी के निरीक्षक ने अपनी रिपोर्ट में वाहन को जब्त करने की कार्यवाही के संबंध में बात की थी। मौजूदा याचिकाकर्ता ने अपने वाहन में IMFL को अवैध रूप से ले जाने के विषय में अनभिज्ञता जताते हुए 04-10-2019 को अपना बयान दर्ज कराया।
याचिकाकर्ता की यह दलील थी कि याचिकाकर्ता को अपने वाहन में आईएमएफएल के अवैध परिवहन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और संजीप बेहरा नाम के व्यक्ति ने उसके वाहन को बारिपदा से सीमेंट और रॉड के परिवहन के लिए किराए पर लिया था।
उसने यह भी तर्क दिया कि जब्त वाहन के संबंध में जब्ती कार्यवाही शुरू करने के लिए आबकारी अधीक्षक या अधिकृत अधिकारी सक्षम अधिकारी है, लेकिन वर्तमान मामले में, आबकारी के पूर्व निरीक्षक ने अनुचित तरीके से कार्यवाही शुरू की।
अंत में उसकी ओर से यह कहा गया कि वाहन को धूप, बारिश और अन्य बाहरी खतरों के संपर्क में नहीं छोड़ा जाना चाहिए जो वाहन को अपरिवर्तनीय रूप से नुकसान पहुंचा सकते हैं और वाहन सड़ सकता है। इसलिए, याचिका में यह मांग की गयी कि याचिका को अनुमति दी जाए, और वाहन की रिहाई के लिए दिशा-निर्देश जारी किये जाएँ।
अदालत का मत
अदालत ने मामले में प्रथम दृष्टया यह विचार किया कि उक्त वाहन को आईएमएफएल के अवैध परिवहन के आधार पर जब्त कर लिया गया था और वाहन की जब्ती की कार्यवाही आबकारी के पूर्व निरीक्षक द्वारा शुरू की गई है।
हालांकि, एक्साइज के पूर्व निरीक्षक को ओडिशा आबकारी अधिनियम की धारा 71 के तहत सक्षम प्राधिकारी नहीं माना जा सकता है और इसलिए, याचिकाकर्ता के खिलाफ रिकॉर्ड पर लायी गयी सामग्री, अधिनियम के तहत उसके वाहन की डिलीवरी को प्रतिबंधित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
अदालत ने ओडिशा आबकारी अधिनियम की धारा 71 के प्रावधान का आगे भी जिक्र करते हुए कहा कि इस धारा के अनुसार, अन्वेषण अधिकारी को जब्त वाहन को आबकारी अधीक्षक, कलेक्टर [धारा 71 (2)] या प्राधिकृत अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करना होता है।
आबकारी के निरीक्षक को अधिनियम में प्रदत्त जब्ती कार्यवाही शुरू करने का अधिकार नहीं है। इस समबन्ध में अदालत ने उड़ीसा हाईकोर्ट द्वारा तय किये गए मामले, कल्पना साहू एवं अन्य बनाम उडीसा राज्य 2019 (III) ILR-CUT 160 का भी जिक्र किया।
इसके अतिरिक्त अदालत ने अपने आदेश में यह देखा कि,
"कई उच्च न्यायालयों ने यह माना है कि जब्ती कार्यवाही की मात्र शुरुआत होने से वाहन के मालिक को वाहन की डिलीवरी पर रोक नहीं लग जाती है, जहाँ पंजीकृत वाहन के मालिक को दोषी नहीं पाया गया है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कमल जीत सिंह बनाम राज्य 1986 UP Cri. 50, मो. हनीफ बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. 1983 U.P. Cr. 239 और जय प्रकाश शर्मा बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. 1992 AWC 1744 के मामले में यही दोहराया गया है।"
जय प्रकाश शर्मा बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. 1992 AWC 1744 के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह देखा था कि,
"जब्त कार्यवाही की मात्र पेंडेंसी, ट्रक की रिहाई पर कोई रोक नहीं लगाती है। मामले का अभी भी अन्वेषण चल रहा है। पुलिस स्टेशन में पड़ा हुआ ट्रक, अगर रिलीज नहीं किया जाता है, तब वह क्षतिग्रस्त, बर्बाद और जंग खा जाता है, न केवल यह, बल्कि यह अंततः विभिन्न स्पष्ट कारणों के लिए अप्राप्य हो जाएगा।"
वहींं, सुंदरभाई अंबालाल देसाई बनाम गुजरात राज्य 2002 (10) SCC 283 के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह देखा था कि,
"हमारे विचार में, जो भी स्थिति हो, इस तरह के जब्त वाहनों को पुलिस स्टेशनों पर लम्बी अवधि तक रखने का कोई फायदा नहीं है। यह मजिस्ट्रेट के लिए है कि वह उचित समय पर तुरंत उचित आदेश पारित करे और गारंटी के साथ-साथ किसी भी समय आवश्यक होने पर उक्त वाहन की वापसी के लिए सुरक्षा प्रदान करने को कहे।"
इसी मामले में मानीय उच्चतम न्यायलय ने आगे यह भी कहा था कि,
"ऐसे मामले में जहां अभियुक्त, मालिक या बीमा कंपनी या किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा वाहन का दावा नहीं किया जाता है, तो ऐसे वाहन को न्यायालय द्वारा नीलाम करने का आदेश दिया जा सकता है। यदि उक्त वाहन का बीमा, कंपनी के साथ किया गया है तो बीमा कंपनी को न्यायालय द्वारा उस वाहन को कब्जे में लेने के लिए सूचित किया जाए, जिस वाहन पर उसका मालिक या किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा दावा नहीं किया जाता है। यदि बीमा कंपनी कब्ज़ा करने में विफल रहती है, तो वाहन, न्यायालय के निर्देशानुसार बेचे जा सकते हैं। न्यायालय, उक्त वाहन के अपने सामने प्रस्तुति की तारीख से छह महीने के भीतर इस तरह का आदेश पारित करेगा। किसी भी मामले में, ऐसे वाहनों को कब्जे में लेने से पहले, उक्त वाहन की उचित तस्वीरें ली जानी चाहिए और विस्तृत पंचनामा तैयार किया जाना चाहिए।"
दिलीप दास बनाम उडीसा राज्य 2019 (III) ILR-CUT 386 के मामले में उड़ीसा हाईकोर्ट ने भी यह माना था कि चूंकि अभी तक कानून के अनुसार कोई जब्ती की कार्यवाही शुरू नहीं की गई है तो विचाराधीन वाहन को धूप, बारिश के कारण होने वाली क्षति की स्थिति में उचित रखरखाव के बिना नहीं छोड़ा जा सकता है।
इसी के मद्देनजर, न्यायालय ने मौजूदा मामले में आदेश दिया कि दिनांक 05-02-2020 को जिला और सत्र न्यायाधीश, मयूरभंज, बारीपदा द्वारा आपराधिक रिविजन संख्या 11 ऑफ़ 2019 में पारित आदेश को रद्द किया जाता है और याचिकाकर्ता की प्रार्थना को अनुमति दी जाती है।
याचिकाकर्ता को निम्नलिखित शर्तों पर वाहन को ले जाने की इजाजत प्राप्त हुई:
1. याचिकाकर्ता को मामले के अन्वेषण के दौरान और उसके बाद संबंधित अदालत में उक्त वाहन को जरुरत पड़ने पर उपलब्ध कराने का निर्देश दिया जाता है।
2. याचिकाकर्ता को यह निर्देश दिया जाता है कि वह संबंधित अदालत में मुकदमे की पेंडेंसी के दौरान वाहन में कोई बदलाव न करें।
मामले का विवरण:
केस नं: CRLMC NO. 985 OF 2020
केस शीर्षक: रत्नाकर बेहरा बनाम ओडिशा राज्य
कोरम: न्यायमूर्ति एस. के. पाणिग्रही
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