विधायिका को कानून बनाने का निर्देश देना अदालत का काम नहीं : राजस्थान हाईकोर्ट

Update: 2021-11-01 04:40 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने सांसद-विधायकों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता निर्धारित करने के लिए परमादेश रिट जारी करने का अनुरोध करने वाली याचिका को खारिज करते हुए कहा कि, याचिकाकर्ता विधायिका को किसी विशेष मुद्दे पर कानून बनाने का परमादेश चाहता है, लेकिन यह स्थापित सिद्धांत है कि कोर्ट यह नहीं कर सकता है और न ही करेगा।

चीफ जस्टिस अकील कुरैशी और जस्टिस संदीप मेहता की खण्डपीठ ने जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा कि संसद या विधानसभा सहित अन्य सार्वजनिक संस्थाओं के चुनाव के लिए उम्मीदवार की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता क्या होनी चाहिए, यह कोर्ट के विचार का विषय नहीं हो सकता।

युवा अधिवक्ता अब्दुल मन्नान ने जनहित याचिका दायर कर कहा कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 3 से 6 के तहत सांसद और विधायक का चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवारों के लिए स्नातक के रूप में न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता के प्रावधान को सम्मिलित करने के निर्देश दिए जाएं।

साथ ही पंचायती राज (द्वितीय संशोधन) अधिनियम, 2015 और राजस्थान नगर पालिका (दूसरा संशोधन) अधिनियम, 2015 में पूर्व में चुनाव के लिए निर्धारित की गई न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता को पुन: बहाल किया जाए।

पीठ ने कहा कि,

" याचिकाकर्ता ने विशेष कानूनी प्रावधान के लिए विधायिका को परमादेश देने की मांग की है, जो स्थापित सिद्धांतों के अनुसार कोर्ट नहीं कर सकता और न ही करेगा। सार्वजनिक संस्थानों में चुनाव के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता क्या होनी चाहिए, यह किसी भी मामले में कोर्ट के विचार का विषय नहीं हो सकता। "

राज्य विधानसभा ने पहले पंचायतीराज संस्थानों के लिए चुने जाने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तय की थी।

बाद में संशोधन के माध्यम से ऐसी योग्यताएं हटा दी गई। याचिकाकर्ता ने संशोधन को चुनौती नहीं दी है। परिणामस्वरूप याचिका खारिज की जाती है।

(एडवोकेट रजाक के. हैदर, लाइव लॉ नेटवर्क)

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