न्यायिक अधिकारियों पर गैर-जिम्मेदाराना आरोप लगाना 'फैशन' बन गया है, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपये जुर्माना लगाया
Allahabad High Court
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में अदालतों और जजों पर गैर-जिम्मेदाराना आरोप लगाने के 'फैशन' पर आपत्ति दर्ज की। कोर्ट ने कहा कि समाज के हर जिम्मेदार इंसान को ऐसी नापाक प्रथा को हतोत्साहित करना चाहिए, आलोचना करनी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि हम लोकतंत्र के सबसे कुरूप दौर में जी रहे हैं, जहां किसी का किसी संस्थान के लिए कोई सम्मान नहीं है।
ये टिप्पणियां जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ ने एक रिट याचिका को खारिज करते हुए कीं, जिसमें गौतमबुद्ध नगर में तैनात एक न्यायिक अधिकारी के खिलाफ पक्षपात के आरोप लगाए गए थे और संबंधित न्यायिक अधिकारी के खिलाफ जांच की मांग की गई थी।
अदालत ने कहा,
"यह अपवित्र और खतरनाक संकेत है कि सभी लोग गैर-जिम्मेदार तरीके से अदालतों के खिलाफ निराधार आरोप लगा रहे हैं।"
कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 50 हजार का जुर्माना लगाया।
अपने आदेश में, न्यायालय ने इस तथ्य पर पीड़ा और चिंता दर्ज की कि न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ अनुचित, निराधार और बेबुनियाद आरोप लगाए जा रहे हैं।
मामला
मामले में रवि कुमार नामक व्यक्ति ने सिविल जज (जेडी)/एफटीसी-2, गौतमबुद्धनगर के रूप में कार्यारत एक न्यायिक अधिकारी और अदालत से जुड़े पेशकार के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए एक रिट ऑफ सर्टिओरारी (writ of certiorary)दायर की थी।
याचिकाकर्ता इस तथ्य से व्यथित था कि उसके खिलाफ लंबित एक आपराधिक मामले में न्यायिक अधिकारी की साजिश और अभियोजन पक्ष के प्रति उसकी प्रवृत्ति के अनुसार तारीख को आगे बढ़ा दिया गया था।
निष्कर्ष
अदालत ने शुरू में न्यायिक अधिकारी की सत्यनिष्ठा पर की गई तीखी टिप्पणियां करने के याचिकाकर्ता के कृत्य पर आपत्ति जताई।
इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि प्रोविंस ऑफ बॉम्बे बनाम खुशालदास (एआईआर 1950 एससी 222), टीसी बसप्पा बनाम टी नागप्पा (एआईआर 1954 एससी 440) और हरि विष्णु कामथ बनाम अहमद इशाक (एआईआर 1955 एससी 233) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार न्यायिक अधिकारी के खिलाफ अभियोजन शुरू करने के लिए रिट ऑफ सर्टियोरारी जारी नहीं की जा सकती है, न ही न्यायिक अधिकारी के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक/विभागीय कार्रवाई शुरू की जा सकती है।
याचिकाकर्ता के आरोपों पर अदालत ने कहा कि संबंधित पीठासीन अधिकारी और याचिकाकर्ता की शिकायतों के बीच कोई संबंध स्थापित करने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं था, और इसलिए यह याचिकाकर्ता की ओर से न्यायिक अधिकारी को धमकाने के लिए जानबूझकर किए गए प्रयास के अलावा कुछ भी नहीं है।
आदेश में कोर्ट ने यह भी कहा कि बेंच द्वारा पीठासीन अधिकारी के खिलाफ कठोर शब्दों का उपयोग नहीं करने की बार-बार चेतावनी के बावजूद, याचिकाकर्ता पीठासीन अधिकारी के खिलाफ अकारण शब्दों का प्रयोग करता रहा।
अदालत ने कहा कि अगर ट्रायल कोर्ट द्वारा कुछ ऐसा आदेश पारित किया गया था जिससे याचिकाकर्ता असंतुष्ट था तो उसके लिए सही रास्ता हाइकोर्ट में न्यायिक क्षमता में चुनौती देना था।
नतीजतन, अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता पर पचास हजार रुपये का जुर्माना लगाया।
केस टाइटलः रवि कुमार बनाम यूपी राज्य और 2 अन्य [CRIMINAL MISC WRIT PETITION No. - 15459 of 2022]
केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 6