बीएमसी के वकील ने बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर किया गलत हलफनामा, हाईकोर्ट ने तत्काल नए वकीलों को भर्ती करने की सिफारिश की
बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को बृहन्मुंबई महानगरपालिका के पैनल के एक वकील द्वारा गलत तथ्य पेश किए जाने और गलत हलफनामा दाखिल कर कोर्ट को गुमराह किए जाने के बाद कड़ा रुख अख्तियार करते हुए महानगरपालिका से कहा कि वह नगर निगम के जूनियर पैनल 'ए' में सूचीबद्ध होने के इच्छुक वकीलों से आवेदन तुरंत आमंत्रित करे।
जस्टिस एसजे कथावाला और जस्टिस बीपी कोलाबावाला की खंडपीठ ने स्पार्क डेवलपर्स द्वारा दायर एक अवमानना याचिका पर सुनवाई की, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि नगर निगम ने 2 नवंबर, 2017 के हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन नहीं किया है।
उक्त आदेश में कोर्ट ने बीएमसी को डीपी रोड के किनारे बने अवैध ढांचों को गिराने का निर्देश दिया था।
नगर निगम ने 25 नवंबर, 2019 को अपना हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा गया कि 34 अनधिकृत ढांचों में से वह 28 अनधिकृत ढांचों को पहले ही ध्वस्त कर चुका है और सिटी कोर्ट, मुंबई द्वारा पारित एक आदेश के कारण, जिसमें निगम को यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया गया है, 6 ढांचों को ध्वस्त करने में असमर्थ है।
इसके बाद, 8 जनवरी, 2020 को, एडवोकेट जयमाला ओसवाल, निगम की पैनल वकील (इन-हाउस एडवोकेट नहीं) ने कोर्ट को बताया कि सिटी सिविल कोर्ट मुकदमे में नोटिस की सुनवाई कर रही है और कोर्ट ने 15 जनवरी, 2020 को सुनवाई तय की है। उक्त बयान 8 जनवरी को दर्ज किया गया था और उसी के आधार पर हाईकोर्ट ने सिटी सिविल कोर्ट को 15 जनवरी को याचिकाकर्ताओं की सुनवाई करने और आदेश पारित करने को कहा ताकि हाईकोर्ट उक्त याचिका पर निर्णय लेने में सक्षम हो पाए।
हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील रोहन महाडिक ने पीठ को बताया कि 8 जनवरी को निगम के वकील द्वारा दिया गया बयान गलत था, क्योंकि उक्त नोटिस को सिटी सिविल कोर्ट एक अक्टूबर, 2015 को ही निपटारा कर चुका है और 16 जनवरी को कोई सुनवाई तय नहीं की गई है। इसलिए, सिटी सिविल कोर्ट को दिए गए निर्देशों को लागू नहीं किया जा सकता है।
इस प्रकार, पीठ ने कहा-
"प्रत्येक कोर्ट विश्वास के आधार पर कार्य करता है/ संचालित होता है। चूंकि कोर्ट के लिए हलफनामे या परिवाद के हर पन्ने को पढ़ना असंभव है, इसलिए कोर्ट वकीलों द्वारा दिए गए बयानों को यह मानकर स्वीकार करती है, कि कोर्ट के समक्ष बयान दे रहे वकील को कोर्ट के अधिकारी के रूप में अपने जिम्मेदारियों की जानकारी है। इसलिए यह वकीलों पर निर्भर करता है कि कि वो यह सुनिश्चित करें कि कोर्ट के समक्ष शपथ पत्र में गलत तथ्य न रखे जाएं, और ऐसा करने में विफल रहने से अदालत गुमराह होगी, जिससे गलत निर्णय पारित होगा, जैसा कि वर्तमान मामले में किया गया है।"
इसके बाद, पीठ ने निगम द्वारा ऐसे जूनियर पैनल वकीलों को दी गई फीस के बारे में पूछताछ की। पीठ को बताया गया कि नगरपालिका के जूनियर पैनल 'ए' के रूप में सूचीबद्ध अधिवक्ताओं को 50 हजार रुपये प्रति पेशी दी जाती है।
"हालांकि, हमने बार-बार नोट किया है कि कुछ पैनल अधिवक्ताओं द्वारा कोर्ट को दिया गया सहयोग संतोषजनक नहीं है। इसलिए कोर्ट ने चीफ लॉ ऑफिसर से पूछताछ की है कि जूनियर पैनल 'ए' के लिए वकीलों को कैसे चुना जाता है, और निगम उन्हें जानकारियां कैसे देता है। हमें बताया गया है कि नगर निगम जूनियर पैनल 'ए' के लिए वकील चुनने के लिए विज्ञापन जारी करता हैं, जिसमें वकीलों से आवेदन मनाए जाते हैं।
वर्तमान में उनके पास निगम के जूनियर पैनल 'ए' लगभग 50 वकील हैं।
बेंच ने अंततः कहा-
"निगम के कानूनी विभाग के बेहतर कामकाज के मद्देनजर, हम सुझाव देते हैं कि निगम को तुरंत एडवोकेट्स के आवेदन आमंत्रित करने चाहिए जो जूनियर पैनल 'ए' में सूचीबद्ध होने के इच्छुक हैं। पैनल में शामिल वकीलों के लिए प्रति मामला 50 हजार रुपए फीस तय की जाती है। निगम इस संबंध में विज्ञापन जारी करे, जिन्हें हाईकोर्ट के सभी बार रूम/पुस्तकालयों में प्रदर्शित किया जाए और उसके बाद जूनियर पैनल की एक नई सूची तैयार किया जाए, और उन्हें निगम की ओर से कोर्ट में पेश किया जाए। यदि यह तुरंत नहीं किया गया तो समय-समय पर उत्पन्न होने वाली समस्याएं जारी रहेंगी, हमें नगर निगम के आयुक्त को बुलाने और उन्हें वर्तमान स्थिति से अवगत कराने के लिए मजबूर करेगा।"
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