अन्वेषण अधिकारी अग्रिम जमानत मामलों को आवश्यक गंभीरता से नहीं लेते: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य को उचित सहायता सुनिश्चित करने का निर्देश दिया

Update: 2021-01-06 08:00 GMT
Allahabad High Court expunges adverse remarks against Judicial Officer

यह देखते हुए कि अग्रिम जमानत मामले प्रकृति में 'गंभीर' होते हैं और इन्हें प्राथमिकता पर लिया जाना आवश्यक है, क्योंकि वे देश के नागरिकों की स्वतंत्रता से संबंधित होते हैं।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में देखा,

"बड़ी संख्या में ऐसे मामलों में यह पाया गया है कि अन्वेषण अधिकारी/सर्किल अधिकारी ऐसे मामलों को आवश्यक गंभीरता के साथ नहीं लेते हैं और उनके द्वारा बार-बार निर्देश/प्रति शपथपत्र या न्यायालय के समक्ष संबंधित रिकॉर्ड रखने के लिए समय मांगा जाता है।"

दरअसल न्यायमूर्ति विवेक चौधरी की पीठ धारा 376-डी एंड 506 आई.पी.सी. के तहत अपराध के संबंध में दायर एक अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

जब 20 नवंबर 2020 को मामला न्यायालय के समक्ष आया तो A.G.A. ने अदालत को सूचित किया था कि उन्हें निर्देश मिले थे कि वे दस दिनों के भीतर काउंटर हलफनामा दाखिल करेंगे, क्योंकि पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट जो रिकॉर्ड पर नहीं थी उसे न्यायालय के समक्ष रखा जाना आवश्यक था।

तदनुसार, मामला 02 दिसंबर 2020 के लिए तय किया गया था, हालांकि, अगली तारीख पर काउंटर हलफनामा दायर नहीं किया गया और ए.जी.ए. ने फिर से एक सप्ताह के समय के लिए अनुरोध किया।

फिर, जब 14 दिसंबर को मामला न्यायालय के समक्ष आया तो A.G.A. ने कोर्ट के सामने कहा गया कि बार-बार रिमाइंडर भेजे जाने के बावजूद, कोई भी शपथ पत्र दाखिल करने के लिए सामने नहीं आया था।

इस पर, अदालत ने नाराजगी व्यक्त की और कहा,

"वर्तमान मामला एक ऐसा ही उदाहरण है, जहाँ बलात्कार के अपराध के लिए एफआईआर दर्ज की गई है, मेडिकल रिपोर्ट को जरूरी रूप से देखा जाना चाहिए, लेकिन उसे अदालत के सामने नहीं रखा जा रहा है और इस तरह अदालत आगे बढ़ने में सक्षम नहीं है।"

अंत में, A.G.A. को सभी अग्रिम जमानत अर्जी में न्यायालय को उचित सहायता सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी करने के लिए अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) को तत्काल आदेश की प्रति भेजने का निर्देश दिया गया।

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