मरने के कगार पर खड़े कैदियों के लिए ही केवल चिकित्सा आधार पर अंतरिम जमानत एक विकल्प नहीं होना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि गंभीर बीमारियों से पीड़ित कैदी को पर्याप्त चिकित्सा का अवसर दिया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि चिकित्सा आधार पर अंतरिम जमानत देने के लिए विवेक का प्रयोग तब नहीं किया जा सकता, जबकि व्यक्ति अंतिम सांसें गिन रहा हो या ऐसी स्थिति में हो कि जहां से उसके जीवित बचने की संभावना कम हो।
जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा ने कहा कि अपराध कितना भी गंभीर क्यों न हो, इंसान की स्वास्थ्य स्थिति सर्वोपरि है। अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति की स्वास्थ्य संबंधी चिंता का राज्य को ध्यान रखना चाहिए। कोर्ट को उसे गौरे से देखा जाना चाहिए।
अदालत ने अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि कैदियों की चिकित्सा जांच के लिए लंबी तारीखें न दी जाएं और इसके लिए एक प्रभावी और पर्याप्त तंत्र विकसित करने के लिए तत्काल कदम उठाएं।
मामला
अदालत ने विजय अग्रवाल नामक 59 वर्षीय एक व्यक्ति को चिकित्सा आधार पर अंतरिम जमानत देते हुए यह टिप्पणी की, जिसने कहा था कि वह रीढ़ और पीठ से संबंधित विभिन्न स्वास्थ्य बीमारियों से पीड़ित है।
उसे 14 मार्च को गिरफ्तार किया गया था। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उसकी जांच कर रहा है। वह 21 मार्च से न्यायिक हिरासत में है।
अभियुक्त का यह मामला था कि जेल में रहते हुए उसकी हालत खराब हो गई क्योंकि उसे उचित इलाज नहीं मिल पाया। ईडी के वकील ने कहा कि अग्रवाल की पिछली जमानत याचिका को समन्वय पीठ ने 9 सितंबर को खारिज कर दिया था।
ईडी के वकील ने यह भी प्रस्तुत किया कि चिकित्सा आधार पर अंतरिम जमानत देने के लिए आवश्यक परिस्थितियों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। अग्रवाल किसी भी गंभीर बीमारी से पीड़ित नहीं हैं, जिसके लिए तत्काल अस्पताल में भर्ती या आगे के हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
दूसरी ओर, अग्रवाल के वकील ने कहा कि आरोपी बिना किसी सहारे के कुछ कदम ही चल पाता है। अदालत को बताया कि उन्हें "PIVD (प्रोलैप्सड इंटरवर्टेब्रल डिस्क), LCS (लम्बर कैनाल स्टेनोसिस) L-3, L-4, L-5 और L5-S1 डाइग्नोस किया गया है।"
यह प्रस्तुत किया गया कि जेल अधिकारियों ने अग्रवाल का एमआरआई कराने की कोशिश की, इसके लिए 8 दिसंबर, 2023 की तारीख तय की गई थी। जेल अधिकारियों ने उन्हें आगे की जांच के लिए ले गए थे लेकिन उनका कोई न्यूरोसर्जरी एसेसमेंट नहीं किया गया।
वकील ने अदालत को यह भी अवगत कराया कि अग्रवाल जुलाई 2022 से न्यूरोसर्जरी रीव्यू की प्रतीक्षा कर रहे थे, इसलिए चिकित्सा आधार पर अंतरिम जमानत की मांगी की गई, ताकि अग्रवाल अपनी न्यूरोलॉजी चिकित्सा जांच करा सकें।
अदालत ने तिहाड़ जेल अधीक्षक की रिपोर्ट का अवलोकन किया, जिसमें कहा गया था कि अग्रवाल की स्थिति स्थिर थी और डिस्पेंसरी की ओर से उन्हें सभी दवाएं दी जा रही हैं, हालांकि, एसएल ज्वाइंट के साथ एमआरआई एसएल स्पाइन की तारीख अगले साल 8 दिसंबर के लिए निर्धारित की गई थी।
यह भी नोट किया गया कि जीबी पंत अस्पताल ने एमआरआई एलएस स्पाइन के लिए जल्द अप्वाइंटमेंट की तारीख के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया।
पीठ ने कहा,
"... यह अदालत याचिकाकर्ता को सिर्फ एडवांस न्यूरोलॉजिकल टेस्ट के लिए एक साल और इंतजार करने के लिए नहीं कह सकती है।"
यह देखते हुए कि अग्रवाल के खिलाफ आरोप प्रकृति में गंभीर हैं, जस्टिस शर्मा ने स्पष्ट किया कि यह मामले की योग्यता पर नहीं जा रहा है और आरोपों की गंभीरता की जांच पीएमएलए की धारा 45 के तहत प्रदान की गई जुड़वां शर्तों के आलोक में की जाएगी।"
यह देखते हुए कि अग्रवाल दर्दनाक बीमारियों से पीड़ित हैं, जिनके तत्काल निवारण की आवश्यकता है, अदालत ने उन्हें 10 फरवरी, 2023 तक चिकित्सा आधार पर अंतरिम जमानत दे दी।
केस टाइटल: विजय अग्रवाल पारोकर बनाम प्रवर्तन निदेशालय