पिछले 5 वर्षों में एडल्ट होम्स में किशोरों की संख्या और एडल्ट जेलों से जुवेनाइल जस्टिस होम्स में ट्रांसफर किए गए बच्‍चों की संख्या बताएं: दल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा

Update: 2021-12-17 08:28 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली सरकार से कहा कि वह एडल्ट होम्स में मौजूद किशोरों की संख्या और पिछले 5 वर्षों में एडल्ट जेलों से जुवेनाइल जस्टिस होम्‍स में ट्रांसफर किए गए किशोरों की संख्या बताए।

जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप जयराम भंभानी जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के प्रावधानों के कार्यान्वयन के विषय में एक आपराधिक संदर्भ पर सुनवाई कर रहे थे। जु‌वेनाइल जस्टिस बोर्ड के प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट ने कानून के कुछ प्रश्न उठाए थे। यह उन परिस्थितियों के संबंध में था, जब कानून का उल्लंघन करने वाला बच्चा देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता वाला बच्चा भी होता है।

दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष अनुराग कुंडू ने राष्ट्रीय राजधानी से हर साल लापता होने वाले बच्चों के मुद्दे पर प्रकाश डाला, जिसके बाद कोर्ट ने यह निर्णय दिया। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के संबंध में पुलिस आयुक्त द्वारा जारी किया गया स्थायी आदेश जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन है। उन्होंने यह भी बताया कि शहर से औसतन हर साल लगभग 6000 बच्चे लापता हो जाते हैं।

इस पर पीठ ने एडल्ट जेलों में मौजूद किशोरों की संख्या की स्थिति पर सवाल उठाया। इस पर दिल्ली सरकार की ओर से पेश एडवोकेट नंदिता राव ने कोर्ट को अवगत कराया कि उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक संख्या शून्य है।

पीठ ने कहा,

"कितने बच्चों को एडल्ट जेल से बाहर ट्रांसफर किया गया है और जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के समक्ष लाया गया है? डेटा लाएं। क्योंकि मैं करीब से देखना चाहता हूं। इसके व्यवस्थित कारण हो सकते हैं। आयु निर्धारण आदि, वे वहां क्यों पहुंच जाते हैं, जुवेनाइल ज‌स्टिस बोर्डों द्वारा निरीक्षण की आवश्यकता है, क्या ऐसा हो रहा है। हम इसे नीचे ले जाएंगे। कृपया जवाब दें।"

सुनवाई के दरमियान राव ने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्डों को एक निर्देश जारी किया जा सकता है कि दो सप्ताह के भीतर, उन्हें किशोरों के लिए पुनर्वास कार्ड जारी करना होगा।

इस पर कोर्ट ने कहा,

"मैंने जो देखा वह यह है कि इस न्यायालय की एक खंडपीठ ने किशोर न्याय कानून के कुछ पहलुओं पर 2012 में विस्तृत निर्देश जारी किए गए थे। निर्देश एक व्यर्थ अभ्यास प्रतीत होता है। क्या उन्हें लागू किया जा रहा है? आप बहुमूल्य सुझाव देंगे और हम फिर से निर्देश जारी करेंगे, जिनका कोई नतीजा नहीं निकलेगा।"

उधर, दिल्ली हाईकोर्ट लीगल सर्विसेज़ कमेटी की सचिव अनु ग्रोवर बालिगा ने शहर में जिला बाल संरक्षण अधिकारियों की कमी का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि जिला बाल संरक्षण इकाई में प्रत्येक जिले के लिए किशोर न्याय नियम के नियम 85(2) के तहत एक नोडल अधिकारी होना आवश्यक है।

बालिगा ने कहा, "अभी तक दिल्ली में ऐसे केवल 4 अधिकारी हैं और हमारे पास 11 जिले हैं।"

प्रारंभ में न्यायालय को बताया गया कि जिला बाल संरक्षण अधिकारियों के रिक्त पदों को भरने के लिए सरकार द्वारा विज्ञापन प्रकाशित किए गए थे और डीसीपीओ और उनके जूनियर दोनों के लिए साक्षात्कार चल रहे थे। इसलिए न्यायालय ने निर्देश दिया कि शेष 7 डीसीपीओ की कमी को 6 सप्ताह की अवधि के भीतर पूरा किया जाना चाहिए।

इसके अलावा, राव ने शहर में उपलब्ध शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण सुविधाओं, सरकारी या गैर-सरकारी, जो बोर्डों को सर्कूलेट किया जा सकता है, उनके विवरण सहित एक निर्देशिका बनाने का भी सुझाव दिया।

तदनुसार, न्यायालय ने निर्देश दिया कि दिल्ली सरकार, डीएसएलएसए और डीसीपीसीआर के साथ मिलकर ऐसी निर्देशिका तैयार करे और इसे सभी किशोर न्याय बोर्डों को प्रसारित करे। इसमें कहा गया है कि दोनों संगठन उक्त निर्देशिका तैयार करने में सरकार की सहायता भी कर सकते हैं।

कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि प्रत्येक ऑब्जर्वेशन होम यह सुनिश्चित करेगा कि स्थायी कर्मचारी के रूप में या एनजीओ के माध्यम से एक मनोवैज्ञानिक उपलब्ध हो। सुनवाई का समापन करते हुए, कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले में उचित निर्देश देते हुए एक विस्तृत आदेश पारित करेगा।

अब इस मामले की सुनवाई 21 जनवरी को होगी।

केस टाइटल: कोर्ट ऑन इट्स ओन मोशन बनाम राज्य

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