मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए ब्याज पर आयकर लागू नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

Update: 2022-05-06 09:13 GMT

Gujarat High Court

गुजरात हाईकोर्ट की एक बेंच ने माना कि मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 171 के तहत मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) द्वारा दिया गया ब्याज आयकर अधिनियम, 1961 के तहत कर योग्य नहीं है। बेंच में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस निशा एम ठाकोर शामिल थे।

मामले में रिट आवेदक, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, एक बीमा कंपनी है। अहमदाबाद के सिटी सिविल कोर्ट में मोटर दुर्घटना दावा याचिका दायर की गई थी। दावा याचिका को एमएसीटी ने अनुमति दी थी।

बीमा कंपनी ने 26 मार्च, 2019 को आयकर विभाग के पास टीडीएस राशि जमा की और वित्त वर्ष 2017-18 की पहली तिमाही के लिए 26Q के लिए एक करेक्‍शन स्टेटमेंट भी दर्ज किया, जिसके परिणामस्वरूप धारा 201(1ए) आयकर अधिनियम, 1961 के तहत के तहत 69,741 रुपये के ब्याज की मांग की गई।

बीमा कंपनी ने तर्क दिया कि हालांकि अदालत ने स्पेशल सिविल आवेदन में एक अंतरिम आदेश पारित किया था, आयकर विभाग ने एक आदेश पारित किया, जिसके जर‌िए विभाग ने बीमाकर्ता की ओर से दायर आवेदन को खारिज कर दिया, जिसमें टीडीएस राशि देर से जमा करने के लिए ब्याज की छूट की मांग की गई थी।

बीमा कंपनी ने प्रस्तुत किया कि इस मुकदमे ने सार्वजनिक महत्व के कई मुद्दों को उठाया। आयकर अधिनियम की धारा 194ए के तहत ब्याज पर टीडीएस काटने की प्रथा नई नहीं है।

बीमा कंपनी ने बताया कि धारा 194ए में संशोधन के मद्देनजर मुआवजे पर ब्याज के वास्तविक भुगतान से टीडीएस की कटौती करनी होगी। यह दर 10% होगी यदि दावेदारों ने भुगतान से पहले पैन कार्ड प्रस्तुत किया था और यदि पैन कार्ड पेश नहीं किया गया था तो 20% होगा। श्री रावल ने प्रस्तुत किया कि उक्त संशोधन के बावजूद बीमा कंपनियों को अधिकरण के पास ही रा111शि जमा करने के लिए बाध्य किया जा रहा है।

विभाग ने प्रस्तुत किया कि बीमा कंपनी का आयकर विभाग के बजाय सिटी सिविल कोर्ट में टीडीएस जमा करना उचित नहीं था। इस सवाल के संबंध में कोई अस्पष्टता या भ्रम नहीं था कि टीडीएस कहां जमा करना है। मुद्दा यह था कि क्या दुर्घटना के मामले में अवॉर्ड की राशि पर एमएसीटी द्वारा स्वीकृत ब्याज को "ब्याज से आय" कहा जा सकता है या क्या यह कानूनी कार्यवाही में हुई देरी के मुआवजे का एक हिस्सा है।

फिर भी एक और मुद्दा उठाया गया कि क्या मुआवजे की राशि पर दिए गए ब्याज को मूल राशि पर अर्जित ब्याज के बराबर किया जा सकता है और क्या एमएसीटी द्वारा दिया गया ब्याज मुआवजे का हिस्सा नहीं है।

अदालत ने माना कि मोटर दुर्घटना दावा मामलों में दावा याचिका की तारीख से अवॉर्ड पारित होने तक, या अपील के मामले में, इस तरह की अपील में हाईकोर्ट के फैसले तक, कराधान के लिए पात्र क्योंकि यह एक आय नहीं होगी।

यह स्थिति आयकर अधिनियम की धारा 145A के खंड (बी) के कारण नहीं बदलेगी क्योंकि यह वित्त अधिनियम, 2009 द्वारा संशोधित प्रासंगिक समय पर थी, जो प्रावधान अब आयकर अधिनियम की धारा 145B की उप-धारा (1) में जगह पाता है। न तो धारा 145ए का क्लॉज (बी), जैसा कि यह प्रासंगिक समय पर था, न ही धारा 56 की उप-धारा (2) का क्लॉज (viii) ब्याज को कर योग्य बनाते हैं, चाहे प्राप्तकर्ता की आय हो या नहीं।

धारा 194ए के तहत ही केवल स्रोत पर कर की कटौती का प्रावधान है। उक्त धारा में स्रोत पर कर की कटौती का कोई प्रावधान रसीद की करदेयता को नियंत्रित नहीं करेगा। स्रोत पर कर की कटौती का प्रश्न तभी उठेगा जब भुगतान प्राप्तकर्ता की आय की प्रकृति का हो।

कोर्ट ने कहा,

"मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल के निर्णयों के अनुपालन में अपेक्षित राशि जमा करने वाली बीमा कंपनियों या मोटर वाहनों के मालिकों को पूरी राशि ट्रिब्यूनल के पास जमा करनी होगी और मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए ब्याज पर आयकर अधिनियम की धारा 194ए के तहत कर कटौती नहीं करेगा।"

अदालत ने स्पष्ट किया कि अवलोकन और निष्कर्ष मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण या हाईकोर्ट द्वारा दिए गए मुआवजे या बढ़े हुए मुआवजे पर दिए गए ब्याज पर दावा याचिका की तारीख से अवॉर्ड या निर्णय पारित होने तक लागू होंगे।

अदालत ने माना कि दी गई राशि को जमा करने में देरी के लिए भुगतान किया जाने वाला ब्याज मुआवजे का हिस्सा नहीं होगा और इसलिए, ब्याज आय के दायरे में आएगा और सामान्य प्रावधानों के तहत कर योग्य होगा।

केस शीर्षक: ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम मुख्य आयकर आयुक्त (टीडीएस)

सिटेशन: R/Special Civil Application No. 4800 of 2021

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