महिलाएं ज्यादातर मामलों में POCSO/SC-ST एक्ट के तहत झूठी एफआईआर दर्ज करवाकर इसे राज्य से रुपए हड़पने के एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं-इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजकल, ‘‘अधिकतम मामलों’’ में महिलाएं पॉक्सो/एसी-एसटी अधिनियम के तहत झूठी एफआईआर दर्ज करवा रही हैं और इसे राज्य से ‘‘रुपए हड़पने के हथियार’’ के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है,इसलिए इस प्रथा पर रोक लगाई जानी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि इस तरह की झूठी एफआईआर सिर्फ राज्य से रुपए लेने के लिए दर्ज करवाई जा रही हैं और इससे समाज में निर्दाेष व्यक्तियों की छवि खराब हो रही है।
जस्टिस शेखर यादव की पीठ ने बलात्कार के एक आरोपी को अग्रिम जमानत देते हुए कहा, ‘‘यौन हिंसा के इस प्रकार के अपराधों की व्यापक और दैनिक बढ़ती व्यापकता को देखते हुए, मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि यूपी राज्य और यहां तक कि भारत संघ को भी इस गंभीर मुद्दे के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।’’
कथित तौर पर आरोपी ने पीड़िता के साथ रेप की वारदात को साल 2011 में अंजाम दिया था, हालांकि मामले की एफआईआर कथित घटना के करीब 8 साल बाद यानी मार्च 2019 में दर्ज करवाई गई थी।
मामले में अग्रिम जमानत की मांग करते हुए आरोपी ने अदालत का रुख किया, जहां उसके वकील ने तर्क दिया कि एफआईआर दर्ज कराने में की गई इतनी देरी के संबंध में पीड़िता द्वारा कोई प्रशंसनीय स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। यह भी तर्क दिया गया कि केवल आरोपी को परेशान करने के लिए वर्तमान मामले में झूठा फंसाया गया है, जबकि वास्तव में ऐसी कोई घटना नहीं हुई थी जैसा कि एफआईआर में बताया गया है।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि पीड़िता ने स्वयं स्वीकार किया है कि उसने आवेदक के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे, जिसका अर्थ है कि पीड़िता सहमति देने वाली पक्ष है और वह 18 वर्ष की आयु प्राप्त कर चुकी थी। अंत में, यह प्रस्तुत किया गया कि सह-अभियुक्त को पहले ही अदालत द्वारा अग्रिम जमानत दी जा चुकी है और इसलिए वकील ने प्रार्थना करते हुए कहा कि आरोपी को भी वही लाभ दिया जाए।
एफआईआर में निहित आरोपों और आरोपी के वकील द्वारा की गई दलीलों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने पाया कि सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज पीड़िता के बयान में महत्वपूर्ण विरोधाभास है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि एफआईआर में दर्ज किए गए बयान के अनुसार, यह उल्लेख किया गया था कि आवेदक ने वर्ष 2012 में पीड़िता के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे, जबकि सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज कराए गए बयान में पीड़िता ने कहा है कि आवेदक ने वर्ष 2013 में पीड़िता के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे।
अदालत ने मामले की मैरिट पर कोई राय व्यक्त किए बिना और आवेदक के खिलाफ लगाए गए आरोपों की प्रकृति और उसकी पृष्ठभूमि पर विचार करते हुए उसे अग्रिम जमानत दे दी।
इन परिस्थितियों में, न्यायालय ने निर्देश दिया है कि यदि यह पाया जाता है कि पीड़िता द्वारा दर्ज करवाई गई एफआईआर झूठी है, तो जांच के बाद पीड़िता के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 344 के तहत आपराधिक कार्यवाही शुरू की जाए। न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया है कि यदि राज्य द्वारा पीड़िता को कोई मुआवजा दिया जाता है, तो उसे भी पीड़िता से वसूल किया जाएगा।
पिछले महीने, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उस महिला पर 10000 रुपये का जुर्माना लगाया था, जिसने स्वीकार किया था कि उसने 4 पुरुषों के खिलाफ बलात्कार और अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का झूठा आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज कराई थी।
न्यायालय ने यह भी कहा था कि एफआईआर दर्ज कराने और बलात्कार के झूठे गंभीर आरोप लगाने की प्रथा की अनुमति नहीं दी जा सकती है और इस तरह की प्रथा से ‘‘कड़े हाथों’’ से निपटना होगा।
जस्टिस अंजनी कुमार मिश्रा और जस्टिस विवेक कुमार सिंह की पीठ ने आगे टिप्पणी करते हुए कहा था कि, ‘‘आपराधिक न्याय प्रणाली को ऐसी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराकर व्यक्तिगत विवादों को निपटाने के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जो निश्चित रूप से झूठी हैं।’’
केस टाइटल- अजय यादव बनाम यूपी राज्य व 3 अन्य,2023 लाइवलॉ (एबी) 254 (आपराधिक मिश्रित अग्रिम जमानत आवेदन नंबर -7907/2023)
साइटेशन- 2023 लाइव लॉ (एबी) 254
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