''अगर महिला कहती है कि उसने सहमति नहीं दी, तो कोर्ट मान लेता है कि उसने सहमति नहीं दी'': दिल्ली कोर्ट ने रेप के आरोपी ईटी नाउ के एंकर की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज की
दिल्ली की एक अदालत ने राष्ट्रीय राजधानी में 22 वर्षीय एक महिला के साथ बलात्कार करने के मामले में आरोपी मुंबई स्थित ईटी नाउ के एंकर वरुण हिरेमथ की तरफ से दायर अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी है। इस मामले के संबंध में चाणक्यपुरी पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई थी।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संजय खानगवाल ने जमानत अर्जी को खारिज करते हुए कहा कि,
''जहां तक सहमति या सहमति न देने के बारे में सवाल है, अगर महिला अदालत के समक्ष अपने साक्ष्य में बताती है कि उसने सहमति नहीं दी, तो अदालत यह मान लेगी कि उसने सहमति नहीं दी।''
एफआईआर के बारे में
वरुण हिरेमथ को आशंका है कि पुणे की रहने वाली एक 22 वर्षीय महिला की तरफ से चाणक्यपुरी पुलिस स्टेशन, नई दिल्ली में दर्ज एफआईआर के सिलसिले में उसे गिरफ्तार किया जा सकता है। यह प्राथमिकी भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार के लिए सजा), 342 (गलत तरीके से बंधक बनाने की सजा) व 509 (एक महिला की गरिमा का अपमान) के तहत दर्ज की गई है। दिल्ली पुलिस ने उसके खिलाफ एक लुकआउट सर्कुलर जारी किया था, ताकि उसे देश छोड़ने से रोका जा सकें।
उक्त एफआईआर के अनुसार, महिला ने आरोप लगाया था कि पुणे आने के दौरान वरुण हिरेमथ ने उसकी एक जियो-सोशल नेटवर्किंग और ऑनलाइन डेटिंग प्लेटफॉर्म ''टिंडर'' पर मुलाकात की थी और कथित तौर पर उसके साथ यौन संबंध बनाए थे।
तत्पश्चात 19 फरवरी 2021 को जब हिरेमथ दिल्ली आया था तो महिला ने 20 फरवरी 2021 को राष्ट्रीय राजधानी में उससे मिलने का फैसला किया। दोनों खान मार्केट में मिले और उसके बाद वे आईटीसी मौर्य होटल गए।
शिकायत के अनुसार, महिला द्वारा यह आरोप लगाया गया है कि चाणक्यपुरी में स्थित उक्त फाइव स्टार होटल में हिरेमथ ने उसके साथ बलात्कार किया था। हालाँकि, उक्त आरोपों को हिरेमथ ने ''झूठा और तुच्छ'' बताया है क्योंकि एफआईआर 3 दिनों की देरी के बाद दर्ज की गई थी, यानी 23 फरवरी 2021 को।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने पिछले महीने इस एंकर को ट्रांजिट अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था। न्यायमूर्ति पीडी नाइक ने अर्जी को खारिज करते हुए कहा था कि,''अग्रिम जमानत देने के लिए शक्तियों के बारे में कोई विवाद नहीं है। आवेदक पर आईपीसी की धारा 376 के तहत आरोप लगाया गया है। आवेदक उपयुक्त अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। मैं इस मामले में ऐसी राहत देने के लिए इच्छुक नहीं हूं।''
कोर्ट का अवलोकन
कोर्ट ने पाया कि पीड़िता ने अपनी शिकायत के साथ-साथ सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज कराए अपने बयानों में भी विशेष रूप से इस बात से इनकार किया है कि उक्त एक्ट के लिए सहमति दी गई थी। इसे देखते हुए, कोर्ट ने कहा कि,
''जहां तक पीड़िता और अभियुक्त के आचरण को देखते हुए 'नहीं' को 'हां' मानने का सवाल है तो यह मुकदमे का विषय है, तभी पीड़िता को अपनी गवाही दर्ज करने का मौका मिलेगा। लेकिन अग्रिम जमानत अर्जी के इस चरण में, यह अदालत इस मामले के तथ्यों और आईपीसी की धारा 375/376 के तहत किए गए अपराध के अवयवों से अपना ध्यान नहीं हटा सकती है, जिनके तहत यह प्राथमिकी दर्ज की गई है। हालांकि, इस स्तर पर दी गई राय का इस मामले की योग्यता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा''
कोर्ट ने यह भी कहा कि यद्यपि दोनों एक प्रेम संबंध में थे और यौन वार्ता में लिप्त हो रहे थे, लेकिन इससे भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 53ए को देखते हुए वर्तमान चरण पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
कोर्ट ने कहा कि,
''ऐसी परिस्थितियों में, इस स्तर पर साक्ष्य अधिनियम की धारा 114ए के तहत अनुमान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, हालांकि यह मुकदमे के समय होना चाहिए, लेकिन आज तक आईओ द्वारा शिकायत के रूप में एकत्र किए गए सबूत, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम चैट और लिखित प्रतिलेख यह कहने के लिए पर्याप्त है कि यह ऐसा मामला नहीं है जहां ऐसा अनुमान अनुपस्थित प्रतीत होता है।''
आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोपों की प्रकृति, आईओ द्वारा एकत्र किए गए सबूत और अपराध की गंभीरता को देखते हुए, अदालत ने आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया।
अग्रिम जमानत के बारे में
अग्रिम जमानत की अर्जी के अनुसार, यह प्रस्तुत किया गया था कि वरुण हिरेमथ को आशंका है कि जांच एजेंसियों द्वारा उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सकती है। इस अर्जी के तहत उल्लेखित आधारों में से एक इस प्रकार हैः
''क्योंकि पीड़िता/शिकायतकर्ता अपनी पूरी सहमति और इच्छा के साथ होटल के कमरे में गई थी और कमरे के अंदर की घटनाओं के संबंध में याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप पूरी तरह से निराधार और झूठे हैं। ऐसा कहा गया है कि आवेदक ने पीड़िता की सहमति या इच्छा के खिलाफ कोई कार्य नहीं किया था।''
यह स्वीकार करते हुए कि दोनों के बीच संबंध सहमतिपूर्ण और घनिष्ठ था, नौशाद बनाम स्टेट आॅफ एनसीटी आॅफ दिल्ली एंड अदर्स,जमानत आवेदन संख्या 1390/2020 के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा किया गया,जिसमें हाईकोर्ट ने कहा था कि केवल आरोपों के आधार पर सजा के उपाय के रूप में जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता है।
अर्जी में कहा गया है कि,''उपरोक्त उल्लिखित परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में, आवेदक को आशंका है कि जांच अधिकारी उसको गिरफ्तार कर सकता है,इसलिए इस माननीय न्यायालय से संपर्क किया गया है ताकि कोर्ट सीआरपीसी की धारा 438 के तहत शक्तियों का उपयोग करते हुए पुलिस थाना चाणक्यपुरी में 23 फरवरी 2021 को दर्ज एफआईआर नंबर 11 के संबंध में उसकी गिरफ्तारी की स्थिति में उसे जमानत पर रिहा करने का निर्देश दे सकें।''