'यदि पति जेल जाता है तो विवाह निश्चित तौर पर समाप्त हो जाएगा' : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पत्नी के साथ 'साधारण' क्रूरता के आरोपी पति की अग्रिम ज़मानत मंज़ूर की

Update: 2020-08-26 05:00 GMT

MP High Court

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दहेज उत्पीड़न और पत्नी के साथ क्रूरता पूर्ण व्यवहार के आरोपी व्यक्ति को गत शुक्रवार को जमानत पर रिहा करने का आदेश देते हुए कहा कि 'यदि याचिकाकर्ता जेल जाता है तो उनकी शादी निश्चित तौर पर समाप्त हो जायेगी और उसके बाद सुलह का शायद ही कोई मौका बचेगा।'

न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन एक याचिकाकर्ता की दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438 के तहत अग्रिम ज़मानत याचिका पर विचार कर रहे थे। याचिकाकर्ता ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 294, 498-ए और 34 तथा दहेज निषेध कानून की धारा तीन और चार के अंतर्गत अपनी ही पत्नी द्वारा दर्ज प्राथमिकी के तहत गिरफ्तारी की आशंका के मद्देनजर अग्रिम ज़मानत दायर की थी।

एकल पीठ रिकॉर्ड पर यह बात लायी कि याचिकाकर्ता की पत्नी उससे अलग रहती है, जिसने 19 जून 2020 को पति के ही खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करायी है। संबंधित प्राथमिकी में अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने और सेक्स के लिए उत्पीड़ित करने के आरोपों के अलावा ये आरोप भी लगाये गये हैं कि याचिकाकर्ता अपनी पत्नी के साथ गाली-गलौज करता है, पांच तोला सोने की चेन की मांग करता है, साथ ही उसके पिता के नाम की जमीन याचिकाकर्ता अपने नाम करने का दबाव बनाता है, पीड़िता को कमरे में बंद कर देता है और जब वह चिकित्सा सहयोग के लिए कहती है तो उसे यह सुविधा मुहैया नहीं कराई जाती।

मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, एकल पीठ ने पाया कि ये आरोप बहुत ही तुच्छ हैं और किसी भी ससुराल में ऐसी घटना घट सकती है।

बेंच ने कहा कि शादियों में हमेशा कुछ न कुछ टकराव या अन्य घटनाएं हुआ करती हैं। एमएलसी रिपोर्ट के हवाले से, शिकायतकर्ता के शरीर पर जख्म का कोई निशान न होने का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता जेल जाता है तो निश्चित ही विवाह करीब-करीब टूट जाएगा और उसके बाद सुलह का कोई मौका शायद ही बचे।

एकल पीठ ने अग्रिम ज़मानत मंज़ूर करते हुए कहा,

"हालांकि, जैसा कि आरोपों से खुलासा होता है कि ये मामूली प्रकृति के आरोप हैं, इसलिए सुलह-समझौते की गुंजाइश हमेशा बरकरार रहती है।"

याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि उनके मुवक्किल के खिलाफ प्राथमिकी उनकी उस शिकायत के बाद दर्ज करायी गयी है, जिसमें उन्होंने ससुराल वालों द्वारा अपनी पत्नी को अपने साथ ले जाने और वापस उनके परिवार-समाज में न आने देने की शिकायत की है।

याचिकाकर्ता ने आठ जून 2020 को यह शिकायत दर्ज करायी थी, बाद में उसकी पत्नी ने प्राथमिकी दर्ज करायी है। यह भी दलील दी गयी थी कि याचिकाकर्ता ने पत्नी द्वारा प्राथमिकी दायर किये जाने के बाद हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा नौ के तहत तलाक लेने की अर्जी दी है, क्योंकि COVID-19 के मद्देनजर लॉकडाउन के कारण यह अर्जी पहले नहीं दी जा सकी थी।

शिकायतकर्ता की ओर से पेश वकील ने याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर में लगाये गये आरोपों की गम्भीरता के मद्देनजर उन्हें अग्रिम ज़मानत मंज़ूर किये जाने का पुरजोर विरोध किया। शिकायतकर्ता के वकील की दलील थी कि याचिकाकर्ता के खिलाफ प्राथमिकी में गम्भीर और संगीन आरोप हैं।

याचिकाकर्ता की ओर से वकील सुरेन्द्र पटेल पेश हुए जबकि प्रतिवादी राज्य सरकार की ओर से पैनल वकील उत्कर्ष अग्रवाल तथा आक्षेपकर्त्ता की ओर से श्री परितोष त्रिवेदी ने पैरवी की।

आदेश की प्रति डाउनलोड करें


Tags:    

Similar News