'शादी में पति व पत्नी की बराबर की भागीदारी', बेहोशी की स्थिति में पति की संरक्षक बनने के लिए पत्नी ही सबसे उपयुक्त : बाॅम्बे हाईकोर्ट

Update: 2020-08-29 10:58 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना है कि एक शादी में पति और पत्नी समान भागीदार होते हैं। इसलिए बेहोशी ( वेजिटेटिव स्टेज ) में लेटे पति की संरक्षक (गार्जियन) बनने के लिए पत्नी ही सबसे उपयुक्त इंसान होती है। कोर्ट ने सभी संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वह महिला को उसके पति के संरक्षक के तौर पर स्वीकार करें। महिला ने इस मामले में कोर्ट को बताया था कि उसके पति के इलाज पर होने वाला खर्च काफी बढ़ गया है। इसलिए वह अपने पति का पैसा निकालना चाहती थी,परंतु बैंक ने ऐसा करने से इनकार कर दिया।

न्यायमूर्ति उज्जल भुयान और न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की खंडपीठ इस मामले में एक रजनी शर्मा की तरफ से दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी। रजनी का पति हरिओम शर्मा बेहोशी की स्थिति में है, जिसके ठीक होने के कोई संकेत या संभावना नहीं है। नवंबर 2018 में जॉगिंग करते समय हरिओम शर्मा को कार्डियक अरेस्ट हुआ था और तब से वह उक्त अवस्था में हैं।

पति के अलावा, याचिकाकर्ता के दो बेटे हैं, जिनमें से एक नाबालिग है और उसकी सास भी देखभाल के लिए उस पर आश्रित है। बढ़ते मेडिकल बिल और अन्य घरेलू खर्चों के कारण असहाय अवस्था में याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया है क्योंकि उसकी खुद की भी कोई आय नहीं है।

हरिओम शर्मा एक व्यापारी हैं जिसके अपने कई व्यवसाय हैं। वह कई कंपनियों में निदेशक हैं, जिनमें मैसर्स सोलस सॉफ्टवेयर एंड सिस्टम्स एलएलपी, मैसर्स सोलस सिक्योरिटी सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड और मैसर्स पीएसआईएम कम्यूनिटी एलएलपी आदि शामिल हैं। इसके अलावा, वह फर्म मैसर्स आमपा एंटरप्राइजेज में भी साझेदार है।

15 नवम्बर 2018 को हरिओम शर्मा को कार्डियक अरेस्ट हुआ था और उसे तुरंत कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हाॅस्पिटल एंड मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट में भर्ती कराया गया था। जिसके बाद लगभग तीन महीने तक उक्त अस्पताल में उसका इलाज किया गया था। डॉक्टरों के एक पैनल ने सर्जरी करने सहित काफी व्यापक उपचार किया,परंतु उसके बावजूद भी उसकी स्वास्थ्य स्थिति में कुछ खास सुधार नहीं हुआ। उसके बाद से वह वेजिटेटिव या बेहोशी की स्थिति में है। उसे 6 फरवरी, 2019 को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी, हालांकि वह लकवाग्रस्त बेहोशी की स्थिति में था। चिकित्सीय सलाह के अनुसार, उसे फिजियोथेरेपी और स्पीच थेरेपी के साथ-साथ प्रशिक्षित पैरामेडिक कर्मियों की देखभाल की हर समय आवश्यकता थी।

सभी देखभाल और निगरानी के बावजूद, हरिओम शर्मा आज तक एक बेहोशी की स्थिति में बना हुआ है। याचिकाकर्ता के अनुसार, उसके पति की देखभाल में किया गया चिकित्सा व्यय काफी ज्यादा है। उसे अपने पति के लिए एक अच्छी तरह से सुसज्जित वातानुकूलित नर्सिंग रूम बनाना पड़ा है,जिसमें रिक्लाइनर बेड, एयर मैट्रस और जीवन रक्षक प्रणाली आदि जैसी सुविधाएं शामिल हैं।

इसके अलावा, उसने एक फुल टाइम नर्स और पार्ट टाइम फिजियो व स्पीच थेरेपिस्ट को अपने पति के इलाज के लिए भी नियुक्त किया है। पति के अलावा, याचिकाकर्ता को अपनी सास की देखभाल भी करनी होती है, जो खुद भी उम्र संबंधी बीमारियाँ से ग्रसित है। इसके अलावा उसे बच्चों की देखभाल भी करनी होती है, जो सभी उसी पर आश्रित हैं। वहीं उसे अपने व परिवार के लिए अन्य घरेलू खर्च भी करने पड़ते हैं।

इसलिए याचिकाकर्ता ने संबंधित बैंकों से संपर्क किया, ताकि वह अपने पति के स्थान पर अपने हस्ताक्षर कर सकें। परंतु बैंकों ने उसका अनुरोध ठुकरा दिया और याचिकाकर्ता को सलाह दी गई कि वे अपने पति के संरक्षक के रूप में नियुक्त होने के लिए सक्षम अदालत से संपर्क करें।

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता केनी ठक्कर पेश हुए और कहा कि मरीज की पत्नी होने के नाते, याचिकाकर्ता उसकी संरक्षक के रूप में कार्य करने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में है। चूंकि मरीज पिछले दो साल से इसी स्थिति में है और उसके ठीक होने की संभावना नजर नहीं आ रही है। उन्होंने हाईकोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया,जिसमें फिलोमेना लियो लोबो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अदर्स मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा दिया फैसला भी शामिल है। साथ ही दलील दी कि वर्तमान मामला उक्त मामले से काफी मिलता-जुलता है।

इस मामले में केंद्र और राज्य ,दोनों ने याचिकाकर्ता के तथ्यात्मक मामले पर कोई दलील नहीं दी परंतु यह कहते हुए रिट याचिका की अनुरक्षणीयता पर सवाल उठाया था कि इस मामले में मूल रूप से मांगी गई राहत एक निजी राहत है। इसलिए लोक विधि उपाय को लागू करना उचित नहीं हो सकता है।

सभी पक्षों की प्रस्तुतियाँ सुनने के बाद, कोर्ट ने अरुणा रामचंद्र शानबाग बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि-

''जब हम कहते हैं कि कोई व्यक्ति कोमा में है या किसी सम्मूर्छित स्थिति में है या बेहोशी अवस्था में है, तो यह नहीं माना जा सकता है कि ऐसा व्यक्ति शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति या मानसिक रूप से विकलांग व्यक्ति है,जैसा की संबंधित कानूनों के तहत समझा जाता है। न ही गार्जियन की नियुक्ति के लिए ऐसे व्यक्ति को नाबालिग माना जा सकता है। इस प्रकार, यह काफी स्पष्ट है कि संरक्षक की नियुक्ति से संबंधित प्रासंगिक कानून कॉमटोज की स्थिति में या वेजिटेटिव या बेहोशी की अवस्था में पड़े व्यक्तियों पर लागू नहीं होंगे। वास्तव में, इस बात पर सर्वसम्मति है कि वर्तमान में भारत में कोई ऐसा कानून नहीं है जो कॉमटोज या वेजिटेटिव अवस्था में पड़े रोगियों के लिए संरक्षक की नियुक्ति से संबंधित हो।''

इसके अलावा, पीठ ने कहा-

''हिंदू वैदिक दर्शन के अनुसार, विवाह एक संस्कार है। जिसे अनिवार्य रूप से दो आत्माओं का मिलन माना जाता है। जो शाश्वत दो हिस्सों अर्थात पुरुष और महिला से बना है। दोनों पड़ाव एक समान हैं और एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। जब तक पत्नी जीवित रहती है, जब तक पति का आधा हिस्सा जीवित रहता है।

ऐसी परिस्थितियों में, इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता है कि वैचारिक रूप से पत्नी को उसके पति की संरक्षक होने के लिए सबसे उपयुक्त कहा जा सके। खासतौर पर जब पति सम्मूर्छित या बेहोशी की स्टेज में होने के कारण अक्षमता या विकलांगता की स्थिति हो।''

अंत में, यह सुनिश्चित करने के लिए कि संरक्षकता का उपयोग उस व्यक्ति के लाभ के लिए किया जाए जो बेहोशी की स्थिति में है,कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव को निर्देश दिया है कि वह हरिओम शर्मा के संरक्षक के रूप में याचिकाकर्ता के कामकाज की निगरानी करें और हर तीन महीने में कोर्ट के समक्ष अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करें। महाराष्ट्र राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को इस मामले में इस तरह की रिपोर्ट दो वर्षों तक दायर करनी होगी।

आदेश की काॅपी डाउनलोड करें।



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