"आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत कैसे दर्ज की गई एफआईआर ?" इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस की खिंचाई करते हुए मथुरा एसएसपी से मांगा स्पष्टीकरण
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह पारित एक आदेश में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, मथुरा को निर्देश दिया है कि वह अपना व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करके बताएं कि सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 66 ए के तहत कैसे एफआईआर दर्ज की गई है?
कोर्ट एफआईआर को खारिज करने की मांग करते हुए दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी। इस मामले में सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 66 ए और 67 बी व आईपीसी की धारा 294, 500, 504, 506 और 509 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।
जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस राज बीर सिंह की डिवीजन बेंच ने कहा कि
''श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ 2015 (5) एससीसी 1 के मामले में शीर्ष अदालत के फैसले के अनुसार, सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 66 ए के तहत एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है क्योंकि इसे अल्ट्रावायर घोषित किया जा चुका है। इसलिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, मथुरा को निर्देशित किया जाता है कि वह अपना व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करें कि कैसे सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 66 ए के तहत एफआईआर दर्ज की गई है।''
इस मामले में अब 26 अगस्त 2020 को अगली सुनवाई होगी।
हाईकोर्ट ने पिछले महीने धारा 66ए के आरोपों को खारिज करने से इंकार कर दिया था
पिछले महीने, लाइव लॉ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के दो आदेश रिपोर्ट किए थे। जिनमें धारा 66 ए के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था। एक मामले में, एक पत्रकार शिव कुमार (अमर उजाला) ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उसने उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 188 और 505 रिड विद महामारी अधिनियम की धारा 3 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की थी।
उसकी याचिका का निपटारा करते हुए, अदालत ने कहा था कि
'यह स्पष्ट है कि संज्ञेय अपराध है जिसके लिए जांच प्रक्रिया चल रही है। इसलिए प्राथमिकी रद्द करने का कोई आधार नहीं बनता है।'
न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की अध्यक्षता वाली पीठ ने रोहित सिंघल नाम के एक व्यक्ति के खिलाफ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया था। जबकि उसके वकील ने श्रेया सिंघल मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले का हवाला दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में दिए गए एक निर्णय (श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ) में संपूर्ण रूप से सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए को रद्द कर दिया था। पिछले साल, शीर्ष अदालत ने आईटी अधिनियम की इस 'असंवैधानिक' धारा 66 ए के निरंतर उपयोग के बारे में अपनी चिंता और नाराजगी भी व्यक्त की थी।
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए को रद्द कर दिया गया था क्योंकि यह अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन करती है और अनुच्छेद 19 (2) के तहत इसे सेव नहीं किया गया है। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम में धारा 66 ए को संशोधन अधिनियम 2009 के तहत जोड़ा गया था।
उक्त प्रावधान के तहत कंप्यूटर संसाधन या संचार उपकरण के माध्यम से निम्न संदेश भेजने वाले किसी भी व्यक्ति को दंडित किया जा सकता है - (ए) कोई भी ऐसी जानकारी जो पूरी तरह आपत्तिजनक है या धमकी भरी हो या, (बी) ऐसी कोई भी ऐसी जानकारी जिसे वह झूठी मानता है, लेकिन इस तरह के कंप्यूटर या संचार उपकरण का उपयोग करके लगातार झुंझलाहट, असुविधा, खतरा, बाधा, अपमान, चोट, आपराधिक धमकी, दुश्मनी, घृणा या बीमार इच्छाशक्ति के उद्देश्य से फैलाता है या, (सी) किसी भी इलेक्ट्रॉनिक मेल या इलेक्ट्रॉनिक मेल संदेश के जरिए इस तरह के संदेशों के प्राप्तकर्ता को धोखा देने या असुविधा या धोखा देने या भ्रमित करने के उद्देश्य से सूचना भेजना।
इस तरह के अपराध करने वाले को तीन साल तक के कारावास व जुर्माने की सजा दी जा सकती थी।