गवाहों का पक्षद्रोही हो जाना आरोपी को जमानत देने का नया आधार नहीं हो सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2022-12-28 08:23 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जमानत के मामले में अदालत का यह अधिकार नहीं कि वह पक्षद्रोही गवाहों (Hostile Witnesses) द्वारा दिए गए सबूतों के आधार पर कोई राय बनाए, क्योंकि यह सबूतों का मूल्यांकन करने जैसा होगा।

जस्टिस शेखर कुमार यादव की पीठ ने हत्या के आरोपी (कृष्णकांत) द्वारा दायर की गई दूसरी जमानत याचिका को इस नए आधार पर खारिज कर दिया कि चूंकि अंतिम देखे गए साक्ष्यों में से 2 गवाहों ने अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया और पक्षद्रोही घोषित किया गया, इसलिए उसे जमानत दी जानी चाहिए।

यह कहते हुए कि गवाहों की पक्षद्रोही हो जाना आरोपी आवेदक को जमानत देने के लिए एक नया आधार नहीं हो सकती, अदालत ने इस प्रकार टिप्पणी की,

"यदि पक्षद्रोही गवाहों द्वारा दिए गए साक्ष्य के आधार पर कोई राय ली जाती है तो यह इस न्यायालय द्वारा साक्ष्य का मूल्यांकन करने के बराबर है, जो सीआरपीसी की धारा 439 के तहत जमानत अर्जी पर फैसला करते समय अस्वीकार्य है। यह अच्छी तरह से स्थापित सिद्धांत है कि ट्रायल कोर्ट जांच अधिकारी के साक्ष्य के आधार पर भी सजा दर्ज कर सकता है। इसलिए आरोपी आवेदक को जमानत देने के लिए अब जिस आधार पर आग्रह किया गया है, उस पर विचार नहीं किया जा सकता।"

मामला संक्षेप में

आवेदक पर 1 जून, 2018 को सह-आरोपी की सहायता से मृतक (गोविंद) की हत्या का आरोप लगाया गया। शव 2 जून, 2018 की सुबह पाया गया और तभी शिकायतकर्ता (पिता) मृतक) ने एफआईआर दर्ज कराई।

अभियोजन का मामला शिकायतकर्ता और अन्य गवाहों के अंतिम देखे गए साक्ष्य पर टिका है, जिन्होंने सीआरपीसी की धारा 161 के तहत अपने बयानों में कहा कि उन्होंने 1 जून, 2018 को मृतक को आरोपी व्यक्तियों के साथ देखा।

मामले में आरोपी/आवेदक के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत चार्जशीट दायर की जा चुकी है और इससे पहले नवंबर, 2019 में हाईकोर्ट ने आवेदक की जमानत याचिका खारिज कर दी थी।

हालांकि, उसने इस आधार पर तत्काल दूसरी जमानत याचिका दायर की कि अंतिम बार देखे गए दो गवाह मुकर गए हऔर आवेदक तीन साल से अधिक समय से जेल में है। इसलिए भले ही सभी गवाहों की जांच की गई हो, मामले के समाप्त होने की संभावना आवेदक की सजा में बहुत दूर है, इसलिए आवेदक को जमानत पर रिहा किया जा सकता है।

दूसरी ओर, एजीए ने कहा कि हालांकि अंतिम बार देखे गए साक्ष्यों में से दो गवाह मुकर गए हैं और शिकायतकर्ता (अ. सा.-3) ने भी अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया तो ट्रायल कोर्ट इस पर विचार करने के लिए स्वतंत्र होगा कि मुकदमे के दौरान अन्य गवाहों द्वारा दिए गए अन्य सबूतों के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराया जाना चाहिए या नहीं।

इस सबमिशन को ध्यान में रखते हुए और यह देखते हुए कि गवाहों के पक्षद्रोही होने जाने से आरोपी-आवेदक को जमानत देने के लिए नया आधार नहीं हो सकती है, कोर्ट ने जमानत के लिए नए आधार को खारिज कर दिया। हालांकि, ट्रायल कोर्ट को मामले में मुकदमे में तेजी लाने का निर्देश दिया गया।

केस टाइटल- कृष्ण कांत बनाम यूपी राज्य [CRIMINAL MISC. जमानत आवेदन नंबर- 33329/2020]

केस साइटेशन: लाइवलॉ (एबी) 542/2022

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