जामिया हिंसा मामले में शरजील इमाम, अन्य को आरोपमुक्त करने के आदेश के खिलाफ दिल्ली पुलिस की याचिका पर हाईकोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा
दिल्ली हाईकोर्ट ने 2019 जामिया हिंसा मामले में शारजील इमाम, सफूरा जरगर, आसिफ इकबाल तन्हा और आठ अन्य को आरोप मुक्त करने के निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दिल्ली पुलिस की ओर से दायर पुनरीक्षण याचिका पर गुरवार को आदेश सुरक्षित रख लिया।
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन और आरोपमुक्त हुए उत्तरदाताओं की ओर से पेश वकीलों की सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया।
एएसजी जैन ने प्रस्तुत किया कि ट्रायल कोर्ट ने "अधिकार क्षेत्र से परे जाकर" जांच एजेंसी और जांच के खिलाफ"अपमानजनक और गंभीर पूर्वाग्रहपूर्ण टिप्पणियां" की हैं, जिन्हें रिकॉर्ड से बाहर किया जाना चाहिए।
दलील दी गई कि ट्रायल कोर्ट आरोप तय करने के चरण में साक्ष्य की विश्वसनीयता का निर्धारण करने के लिए मिनी-ट्रायल नहीं कर सकता।
अदालत ने जैन से पूछा,
"ट्रायल जज ने मूल रूप से पूछा है कि आप रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं ला सके, जिससे अदालत को यह भरोसा हो कि ये व्यक्ति उस भीड़ का हिस्सा थे, जिसने अपराध किया था। उन्होंने यह भी सवाल उठाया हे कि जब इतने सारे लोग थे, तो आपने कुछ को ही क्यों उठाया?"
जवाब में जैन ने कहा कि अभियोजन पक्ष के पास दस वीडियो क्लिप मौजूदा हैं, जिन्हें ट्रायल कोर्ट में पेश किया गया था। इनमें "यह खुलासा किय गया है कि डिस्चार्ज किए गए आरोपियों में से छह को चार्जशीट में उल्लिखित कृत्यों में शामिल देखा गया है।"
जैन ने यह भी कहा कि वीडियो क्लिप दूसरी पूरक चार्जशीट के साथ दायर की गई थी, जो निचली अदालत के रिकॉर्ड का हिस्सा थी।
दूसरी ओर, सफूरा जरगर की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट रेबेका जॉन ने पुलिस की ओर से अपनाए गए पहचान के तरीके पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि जिस महिला को एक वीडियो क्लिप से जरगर के रूप में पहचाना गया था, उसके पास "फेस कवर" था। उन्होंनें कहा कि अभियोजन पक्ष ने अपने निष्कर्ष की वह महिला जरगर ही थी, के समर्थन में कोई कारण नहीं दिया था।
उन्होंने कहा, "जब तक पहचान की पुष्टि नहीं हो जाती, तब तक मेरी भूमिका को डिस्कनेक्ट करना होगा।"
यह कहते हुए कि एफआईआर और उसके बाद की चार्जशीट में विसंगति है, जॉन ने कहा कि जरगर का नाम न तो पहली चार्जशीट में नाम था, न ही उसकी भूमिका के बारे में कुछ कहा गया था।
उन्होंने कहा,
“पहली बार, मुझे सितंबर 2021 में आरोपी के रूप में नामित किया गया है, जो कि 2019 में हुई एक घटना के लिए था… उन्होंने यह नहीं बताया है कि वे किस आधार पर एक ऐसे व्यक्ति की पहचान कर सके, जिसका चेहरा कपड़े से ढका हुआ था। आपको यह बताना है कि आपने इस व्यक्ति की पहचान कैसे की? आप नहीं बता सकते कि वह व्यक्ति कौन है?”
जॉन ने कहा, "दिल्ली पुलिस जैसी जांच एजेंसी को अदालत के सामने अस्वीकार्य सबूत पेश करना शोभा नहीं देता है।"
एक एएसआई सहित कुछ पुलिस अधिकारियों के बयानों का जिक्र करते हुए जॉन ने कहा कि उनमें से किसी ने भी जरगर की पहचान नहीं की।
उन्होंने कहा, "जहां तक सह-आरोपियों के बयानों का सवाल है... उन्हें क्लिप 1 और 3 दिखाया गया। उनमें से कुछ का कहना है कि मैं या तो एक बजे में हूं या तीन बजे में हूं। न तो मैं एक मे ंबजे और न ही तीन बजे में हूं।" उसने कहा।
जॉन ने अपनी दलीलें पूरी करते हुए कहा कि यह "गंभीर संदेह" का मामला नहीं है, बल्कि "जहां दो विचार संभव हैं।"
मोहम्मद कासिम, महमूद अनवर, शहज़र रज़ा खान और उमैर अहमद की ओर से पेश एडवोकेट एमआर शमशाद ने कहा कि अभियुक्त केवल तमाशबीन थे और इस मामले में उन्हें आरोप मुक्त करने का निचली अदालत का फैसला सही था।
उन्होंने यह भी कहा कि उनका कॉल डेटा रिकॉर्ड (सीडीआर) घटनास्थल पर उनकी स्थिति को दर्शाता है, यह कोई प्रासंगिकता नहीं है क्योंकि वे प्रासंगिक समय पर विश्वविद्यालय के छात्र थे।
“मैं अतिरिक्त चार्जशीट से नहीं कतरा रहा हूं। यह जांच का विषय है... मैं यह नहीं कह सकता कि यह अवैध है क्योंकि इसमें कोई रोक नहीं है। लेकिन अंतत: आरोपी की स्थिति देखी जानी चाहिए।'
शरजील इमाम की ओर से पेश एडवोकेट तालिब मुस्तफा ने कहा कि किसी भी चार्जशीट में इमाम के खिलाफ कोई वीडियो क्लिप या गवाह का एक भी बयान नहीं है।
उन्होंने कहा, मेरे खिलाफ खुलासा बयान बाकी है जो आरोप तय करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता। इमाम का प्रतिनिधित्व एडवोकेट अहमद इब्राहिम ने भी किया।
अदालत ने वकील सौजन्या शंकरन को भी सुना, जो आसिफ इकबाल तन्हा की ओर से पेश हुईं।
ट्रायल कोर्ट ने 4 फरवरी को शरजील इमाम, आसिफ इकबाल तन्हा, सफूरा जरगर, मोहम्मद अबुजर, उमैर अहमद, मोहम्मद शोएब, महमूद अनवर, मोहम्मद कासिम, मोहम्मद बिलाल नदीम, शहजर रजा खान और चंदा यादव को आरोपमुक्त कर दिया था। हालांकि, उसे मोहम्मद इलियास के खिलाफ आरोप तय करने के लिए पर्याप्त सबूत मिले थे।
इसके कुछ दिनों बाद, पुलिस ने डिस्चार्ज के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिका पर नोटिस जारी करते हुए जस्टिस शर्मा ने कहा था कि जांच एजेंसी के खिलाफ ट्रायल कोर्ट की टिप्पणियों से न तो आगे की जांच प्रभावित होगी और न ही किसी आरोपी व्यक्ति की सुनवाई प्रभावित होगी।