''पहली नजर में उसका व्यवहार सामान्य नहीं दिख रहा'': दिल्ली हाईकोर्ट ने 498ए के मामले में पिता को महिला की अंतरिम कस्टडी सौंपी
एक हैबियस कार्पस याचिका पर विचार करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने उस महिला की अंतरिम कस्टडी उसके पिता को सौंप दी है, जिसे कथित तौर पर उसके पति और ससुराल वालों ने मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया है। आरोप है कि इस प्रताड़ना के कारण महिला की आंशिक याददाश्त चली गई है और वह पूरी तरह से बोल भी नहीं पा रही है। कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में उसका व्यवहार सामान्य नहीं लगता है।
न्यायमूर्ति अनूप जे भंभानी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की खंडपीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से महिला से बातचीत करने के बाद कहा कि,
''सुश्री श्वेता (बेटी) भी वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मौजूद है, लेकिन अदालत को यह स्पष्ट है कि वह बोलकर बातचीत करने में सक्षम नहीं है और न ही उसका व्यवहार पहली नजर में सामान्य प्रतीत होता है।''
इसे देखते हुए, न्यायालय ने निर्देश दिया है कि मामले पर अंतिम विचार करने से पहले एसएचओ,पीएस सागरपुर द्वारा महिला की मानव व्यवहार और संबद्ध विज्ञान संस्थान (आईएचबीएएस), नई दिल्ली में मानसिक आघात और बीमारियों में विशेषज्ञता प्राप्त डॉक्टर से जांच करवानी चाहिए और यह जांच याचिकाकर्ता पिता की उपस्थिति व देखरेख में करवाई जाए।
इस मामले में महिला के पिता ने एक याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि उसकी बेटी को कुछ वैवाहिक कलह के कारण उसके पति, ससुर और सास ने अवैध हिरासत में रखा हुआ है। जिसके बाद कोर्ट ने यह निर्देश दिया है।
प्रतिवादियों के खिलाफ पिछले साल 2 मार्च को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए, 313 और 34 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। याचिकाकर्ता पिता का आरोप है कि उनकी बेटी को गंभीर मानसिक आघात पहुंचा है, जिसके परिणामस्वरूप उसकी आंशिक याददाश्त चली गई है और वह बोल पाने में सक्षम नहीं है।
सुनवाई के दौरान वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए पति-पत्नी दोनों कोर्ट के समक्ष मौजूद रहे।
पति ने प्रस्तुत किया कि उसकी पत्नी को कुछ मानसिक समस्याएं हो गई हैं, लेकिन ऐसा उसकी या उसके माता-पिता की ओर से की गई किसी गलती के कारण नहीं हुआ है। वह अपनी पत्नी का इलाज एक विशेषज्ञ चिकित्सक से करवा रहा है, जिसने बताया है कि उसकी पत्नी की मानसिक बीमारी को ठीक होने में कुछ समय लगेगा।
हालांकि, कोर्ट ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि महिला '' न तो बोलकर बातचीत करने में सक्षम है और न ही उसका व्यवहार पहली नजर में सामान्य प्रतीत होता है।''
इसे देखते हुए, न्यायालय ने कहा कि,
''उपरोक्त स्थिति को ध्यान में रखते हुए, सबसे पहले यह अदालत याचिकाकर्ता की बेटी के मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक भलाई के बारे में चिंतित है।''
कोर्ट ने निर्देश दिया है कि मामले के तथ्यों को देखते हुए सुनवाई की अगली तारीख तक महिला की और उसकी साढ़े तीन साल की बच्ची की कस्टडी उसके पिता को दे दी जाए, जिनके साथ वे फिलहाल रहेंगी और वह उनकी सुरक्षा और भलाई के लिए जिम्मेदार होंगे।
कोर्ट ने यह भी कहा कि,
''उपरोक्त निर्देशानुसार चिकित्सा जांच आज से 10 दिनों के भीतर पूरी कर ली जाए और डॉक्टरों की राय और उनके द्वारा सुझाए गए उपचार के तरीके का विवरण देने वाली एक स्थिति रिपोर्ट राज्य द्वारा इस अदालत के समक्ष अगली तारीख को या उससे पहले दायर की जाए। इस रिपोर्ट की काॅपी निजी उत्तरदाताओं के साथ साझा न की जाए।''
अब इस मामले पर 5 जुलाई को विचार किया जाएगा।
केस का शीर्षकः सुशील गुप्ता बनाम एनसीटी ऑफ दिल्ली व अन्य
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