''वह विकृत प्रतीत होता है, उसने अपनी महिला मित्र के जीवन को तकलीफदेह बना दिया'': हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने नाबालिग से बलात्कार के आरोपी को जमानत देने से इनकार किया

Update: 2021-05-07 08:15 GMT

आरोपी का आचरण इतना ''घृणित था कि उसने अपनी महिला मित्र के जीवन को तकलीफदेह बना दिया'' हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने गुरुवार (6 मई) को उस आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया,जिस पर कथित तौर पर एक नाबालिग लड़की को बहलाने और उससे बलात्कार करने का आरोप लगा है।

न्यायमूर्ति अनूप चितकारा की खंडपीठ ने आगे कहा कि,

''अभियुक्त विकृत प्रतीत होता है और इसलिए अभियुक्त को जमानत देने का कोई सवाल ही नहीं है।''

आरोपी के खिलाफ आरोप

नाबालिग पीड़ित लड़की के बयान के अनुसार, 4 जुलाई, 2020 को, जब वह और उसका दोस्त संदीप बातचीत करते हुए सड़क से 20-30 मीटर नीचे टहल रहे थे,तभी 6 लड़के वहाँ आए और उनमें से एक (ए -2), जो पीड़ित को जानता था, ने उन दोनों को थप्पड़ मार दिया। उसके बाद उन्होंने पीड़िता को निर्वस्त्र होने के लिए मजबूर किया और जब वह पीड़िता से उसके कपड़े निकलवा रहे थे,तभी ए-1 ने उसका नग्न वीडियो बनाना शुरू कर दिया। इस बीच, दूसरे लड़के लगातार संदीप कुमार की पिटाई कर रहे थे और ए-1 ने पीड़िता को उसकी बांह से पकड़ लिया और उसे झाड़ियों में ले गया, जहाँ उसके कपड़े उतारकर उसके साथ बलात्कार किया।

कथित तौर पर, जब उसने विरोध किया, तो उसने उसे थप्पड़ मार दिया, इस बीच,अन्य लड़कों ने संदीप को पकड़ लिया था, ताकि वह उसे बचा न सके। घटना के बाद जाते समय उन्होंने पीड़िता को धमकी दी कि वह इस घटना के बारे में किसी को भी न बताए, अन्यथा उसका वीडियो वायरल कर देंगे।

हालांकि, कुछ दिनों बाद, उसे पता चला कि उन्होंने वीडियो अपलोड कर दिया था और फिर उसने पुलिस को सूचित किया, जिसके बाद तत्काल प्राथमिकी दर्ज की गई।

न्यायालय के समक्ष प्रस्तुतियाँ

याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि अपराध साबित होने से पहले उसको जेल में रखने से याचिकाकर्ता और उसके परिवार के साथ घोर अन्याय होगा।

इसके विपरीत, राज्य ने तर्क दिया कि पुलिस ने जमानत मांगने वाले याचिकाकर्ता के खिलाफ पर्याप्त सबूत एकत्र किए हैं और यह अपराध जघन्य है, आरोपी कानून का पालन करने वाले लोगों के लिए एक खतरा है और जमानत समाज को एक गलत संदेश भेज सकती है।

कोर्ट का आदेश

यह रेखांकित करते हुए कि आरोपी ने पुरुष मित्र होने के नाते उसके फायदा उठाया और मुख्य आरोपी ने उसके साथ जबरदस्ती की। इतना ही नहीं उन्होंने एक वीडियो भी बनाई और इसे वायरल किया।

''अभियुक्त की आयु केवल 22 वर्ष है,इसे देखते हुए आरोपी/याचिकाकर्ता के पास बदली हुई परिस्थितियों में या मामले की सुनवाई में देरी होने पर फिर से जमानत की अर्जी दाखिल करने का विकल्प मौजूद रहेगा।''

अंत में, यह देखते हुए कि इस मामले के तथ्य और परिस्थितियाँ अजीब हैं,कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता जमानत पाने का हकदार नहीं है। हालांकि कोर्ट ने नई जमानत अर्जी दाखिल करने की स्वतंत्रता देते हुए इस याचिका को खारिज कर दिया।

एक संबंधित मामले में ''नहीं मतलब,नहीं-कुछ पुरुषों के लिए इस सरल वाक्य को समझना सबसे मुश्किल हो गया है'' यह कहते हुए हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने बुधवार को उस आरोपी व्यक्ति की तरफ से दायर जमानत याचिका को खारिज कर दिया था,जिस पर एक 17 साल की नाबालिग से बलात्कार करने का आरोप है।

न्यायमूर्ति अनूप चितकारा की एकल पीठ ने कहा था किः

''नो का मतलब यस नहीं होता है,इसका मतलब यह भी नहीं है कि लड़की शर्मीली है। इसका मतलब यह भी नहीं है कि लड़की किसी आदमी को उसे समझाने के लिए कह रही है, इसका मतलब यह भी नहीं है कि वह उसका पीछा करता रहे। नो शब्द को किसी और स्पष्टीकरण या औचित्य की आवश्यकता नहीं है। यह वही समाप्त होता है और आदमी को रूकना पड़ता है। जैसा कि हो सकता है, पीड़िता ने इस मामले में, आरोपी से उस समय नो कहा, जब उसने उसे छूना शुरू कर दिया था, लेकिन उसने ऐसा करना जारी रखा। इसमें कहीं भी सहमति या उत्साह और रोमांटिक प्यार में एक-दूसरे को महसूस करने की इच्छा नहीं थी।''

मामले के तथ्यों को देखते हुए, अदालत ने तर्क दिया था कि तथ्य यह है कि पीड़िता ने अपनी मां के समक्ष दुर्भाग्यपूर्ण घटना का खुलासा किया,जो प्रथम दृष्टया ''घटना की वास्तविकता की ओर इंगित करता है।''

कोर्ट ने इस मामले की शुरूआत में ही कहा था कि,

''वह विवेकपूर्ण तरीके से गोपनीय रखती, क्योंकि उसके बयान के अनुसार, किसी ने भी उन पर ध्यान नहीं दिया था। यदि यौन क्रिया उसकी इच्छा से हुई थी, तो वह इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताती और उसे छिपाने की कोशिश करती। पीड़ित ने स्वेच्छा से अपनी मां को सारी घटना बताई,जो प्रथम दृष्टया घटना की वास्तविकता की ओर इशारा करता है। यह कहना सही होगा कि पीड़ित लड़की के लिए अपनी माँ के समक्ष इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बारे में बात करना और बाद में पुलिस के जाकर प्राथमिकी दर्ज करवाना एक साहसी कार्य था।''

केस का शीर्षक - रोहित कुमार बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य

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