पॉक्सो अपराधों के लिए आधा आजीवन कारावास 10 साल: बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2022-09-26 13:17 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत दोषी को उम्र कैद की आधी सजा सुनाई, जिसे 10 साल की सजा भुगतनी होगी।

अदालत से कोल्हापुर जेल अधीक्षक ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) मामले में दोषी को "आधा आजीवन कारावास" की सजा सुनाने वाले हाईकोर्ट के 2018 के आदेश की व्याख्या की मांग की थी।

जस्टिस सारंग कोतवाल ने कहा कि चूंकि पॉक्सो एक्ट के तहत आजीवन कारावास को परिभाषित नहीं किया गया, इसलिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 57 के तहत आजीवन कारावास की परिभाषा लागू होगी।

उक्त धारा में प्रावधान है कि एक अंश या पूरी सजा के हिस्से की गणना के लिए आजीवन कारावास बीस साल के कारावास के बराबर होगा।

जस्टिस कोतवाल ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा,

"इस प्रकार, ऐसे मामलों में आधा आजीवन कारावास का मतलब दस साल के लिए कारावास होगा।"

जस्टिस कोतवाल को प्रशासनिक आदेश के तहत मामला सौंपा गया था। 2018 में जस्टिस एएम बदर ने दोषी की सजा में बदलाव किया था। आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत उनकी सजा को रद्द कर दिया गया।

उसे पॉक्सो एक्ट की धारा 18 सपठित धारा 6 के साथ-साथ आईपीसी की धारा 511 के सपठित धारा 376 (2) के तहत दंडनीय अपराध के लिए डेढ़ आजीवन कारावास की सजा भुगतने का निर्देश दिया गया।

अधीक्षक ने कहा कि उसे ठीक से समझ नहीं आ रहा है कि आरोपी को कितने साल कैद की सजा भुगतनी पड़ी।

जस्टिस कोतवाल ने एडवोकेट द्रुपद पाटिल को एमिक्स क्यूरी नियुक्त किया। पाटिल ने प्रस्तुत किया कि पॉक्सो एक्ट की धारा 2(2) और आईपीसी की धारा 57 इस मुद्दे को पूरी तरह से कवर करती है। पॉक्सो एक्ट की धारा 2(2) के अनुसार, इस्तेमाल किए गए लेकिन परिभाषित नहीं किए गए शब्दों और अभिव्यक्तियों को आईपीसी, किशोर न्याय अधिनियम, सीआरपीसी आदि से लिया जा सकता है।

साथ ही, मामले को चंद्रकांत विट्ठल पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले के माध्यम से सुलझाया गया।

उन्होंने प्रस्तुत किया कि अधीक्षक को अदालत का दरवाजा खटखटाने के बजाय कानून और न्यायपालिका विभाग से संपर्क करना चाहिए।

जस्टिस कोतवाल ने अपने आदेश में कहा,

"पॉक्सो एक्ट के तहत परिभाषित नहीं किए गए शब्दों और अभिव्यक्तियों के लिए उन्हें आईपीसी में उनके अर्थ के अनुरूप अर्थ देना होगा। शब्द 'आजीवन कारावास' को पॉक्सो एक्ट के तहत परिभाषित नहीं किया गया। हालांकि, उन शब्दों का उपयोग आईपीसी के तहत किया जाता है। इसलिए, आईपीसी के प्रावधानों को संदर्भित करना होगा और उन पर भरोसा करना होगा। इस विशेष प्रश्न में सजा की मात्रा को देखा जाना है।"

अदालत ने कहा कि यह स्पष्टीकरण हाईकोर्ट के आदेश की व्याख्या करने के लिए पर्याप्त उचित है।

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