सुशील अंसल ने उपहार ट्रेजेडी पर आधारित नेटफ्लिक्स पर आने वाली सीरीज 'ट्रायल बाय फायर' की रिलीज पर रोक लगाने की मांग की, हाईकोर्ट में याचिका दायर
रियल एस्टेट टाइकून सुशील अंसल ने उपहार फायर ट्रेजेडी (Uphaar Fire Tragedy) पर आधारित नेटफ्लिक्स पर आने वाली वेब सीरीज 'ट्रायल बाय फायर' की रिलीज के खिलाफ स्थायी और अनिवार्य निषेधाज्ञा की मांग के साथ दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) का दरवाजा खटखटाया है।
उन्होंने नीलम कृष्णमूर्ति और शेखर कृष्णमूर्ति द्वारा लिखी गई 'ट्रायल बाय फायर- द ट्रेजिक टेल ऑफ द उपहार ट्रेजेडी' नामक पुस्तक के आगे प्रकाशन और प्रसार पर भी रोक लगाने की मांग की है, जिन्होंने 1997 की घटना में अपने दो नाबालिग बच्चों को खो दिया था।
नीलम उपहार त्रासदी के पीड़ितों के एसोसिएशन की अध्यक्ष भी हैं, जिसने सुशील अंसल और उनके भाई गोपाल अंसल के खिलाफ मामले में लंबा संघर्ष किया है।
यह मुकदमा आज सुनवाई के लिए जस्टिस यशवंत वर्मा की एकल पीठ के समक्ष सूचीबद्ध है।
सुशील को ट्रेजेडी से संबंधित आपराधिक मामलों में दोषी ठहराया गया था। उनका कहना है कि हाल ही में जारी ट्रेलर में उनके चित्रण ने "उनकी प्रतिष्ठा और भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 के तहत उनके जीवन के अधिकार को अपूरणीय क्षति पहुंचाई है।“
उन्होंने तर्क दिया है कि विवादित सीरीज को रिलीज करने से उन्हें और अधिक पूर्वाग्रह और नुकसान होगा और यह निजता के अधिकार सहित उनके मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन होगा।
उन्होंने कोर्ट में कहा,
"वादी अब 83 साल का है और उसे उपहार त्रासदी मामले में कानूनी और सामाजिक रूप से दोनों तरह से दंडित किया गया है। वादी के परिवार को भी वादी के क़ैद के कारण बड़े पैमाने पर नुकसान उठाना पड़ा है। इसके अलावा, वादी ने उपहार त्रासदी के व्यापक प्रभावों, दोषसिद्धि और उसके सामाजिक प्रभाव के प्रकाश में अपने परिवार के सदस्यों के जीवन के साथ-साथ अपने जीवन में सामान्य स्थिति प्राप्त करने के लिए संघर्ष किया है।"
वाद में अंसल ने आगे कहा है कि उन्होंने पीड़ितों के परिवारों से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष माफी मांगी थी और दुर्भाग्यपूर्ण घटना के प्रति गहरा खेद व्यक्त किया था।
आगे कहा,
"वादी प्रतिवादी संख्या 4 और 5 [कृष्णमूर्ति] के साथ-साथ अपने प्रियजनों को खोने वाले कई अन्य लोगों के दर्द और शोक के प्रति सहानुभूति रखता है। विशेष रूप से सजा पूरी करने और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करने के बाद प्रतिवादी को वादी को सार्वजनिक रूप से फटकार लगाने के लिए सदा के लिए उत्तरदायी नहीं बनाना चाहिए।“
उन्होंने आगे कहा कि यह जानकारी मिलने पर कि विवादित सीरीज विवादित पुस्तक पर आधारित है, उन्होंने इसकी एक प्रति खरीदी और यह जानकर चौंक गए कि पुस्तक में दुर्भाग्यपूर्ण घटना का एकतरफा वर्णन है।
अंसल ने आरोप लगाया,
"पुस्तक का लहजा अत्यधिक भावनात्मक और आवेशपूर्ण तरीके का है और इसमें वादी के रूप में अतिरंजित, पूर्वाग्रही और अतिशयोक्तिपूर्ण बयानों के उदाहरण हैं। पुस्तक में कुछ उदाहरण भी वादी की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए बनाए गए हैं।"
अंसल ने तर्क दिया है कि सीरीज पुस्तक पर आधारित है जो इस हद तक प्रतिकूल है कि यह अदालत की टिप्पणियों, निर्णय और यहां तक कि आरोपों को भी झुठलाती है। आगे कहा है कि उसे आईपीसी की धारा 304A के तहत दोषी ठहराया गया था यानी लापरवाही से मौत न कि हत्या।
उपहार कांड क्या था?
13 जून, 1997 को उपहार सिनेमा में हिंदी फिल्म 'बॉर्डर' की स्क्रीनिंग के दौरान भीषण आग लग गई थी। जिसमें 59 लोगों की मौत हो गई थी। जांच में उपहार प्रबंधन की अनेक लापरवाहियां और ज्यादा टिकटें बेच कर ज्यादा पैसे कमाने के चक्कर में की गई अवैध काम की भी पोल खुली थी।