कोर्ट की अवमानना का मामला-गुजरात हाईकोर्ट ने वकील यतिन ओझा पर 2000 रुपये जुर्माना लगाया, कोर्ट की कार्यवाही खत्म होने तक खड़े रहने की सजा दी

Update: 2020-10-07 10:54 GMT

गुजरात हाईकोर्ट ने बुधवार आपराधिक अवमानना के मामले में वकील यतिन ओझा पर 2000 रुपये का जुर्माना लगाया और कोर्ट की कार्यवाही खत्म होने तक खड़े रहने की सजा दी(punishment till rising of the Court)।

ओझा के खिलाफ हाईकोर्ट ने स्वत संज्ञान लेते हुए आपराधिक अवमानना की कार्रवाई शुरू की थी। ओझा ने फेसबुक पर एक लाइव प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान हाईकोर्ट और उसकी रजिस्ट्री के खिलाफ ''अपमानजनक टिप्पणी'' की थी।

जस्टिस सोनिया गोकानी और जस्टिस एनवी अंजारिया की डिवीजन बेंच ने उन्हें कल यानी मंगलवार को अवमानना का दोषी ठहराया था और आज मामले में सजा का आदेश पारित किया गया है। न्यायालय ने यह भी कहा है कि सजा का अनुपालन न करने पर ओझा को दो महीने कारावास में रहना होगा।

हालांकि वरिष्ठ अधिवक्ता मिहिर जोशी द्वारा किए गए अनुरोध के आधार पर ओझा की सजा पर रोक लगा दी गई है ताकि वह सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील कर सकें।

डिवीजन बेंच ने ओझा के खिलाफ शुरू किए गए आपराधिक अवमानना के मामले में यह फैसला सुनाया है। गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष ओझा ने सार्वजनिक तौर पर हाईकोर्ट के अंदर कुप्रशासन फैलने के आरोप लगाए थे। जिसके बाद हाईकोर्ट ने इस मामले में स्वत संज्ञान लिया था।

18 जुलाई को, हाईकोर्ट ने वर्ष 1999 के पूर्ण न्यायालय के उस फैसले को वापिस ले लिया था,जिसके तहत ओझा को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था।

इस मामले में कार्रवाई का कारण जून में ओझा द्वारा आयोजित एक फेसबुक लाइव सम्मेलन था। इस लाइव सम्मेलन में ओझा ने आरोप लगाया था कि हाईकोर्ट रजिस्ट्री भ्रष्ट प्रथाओं का पालन कर रही है और हाई प्रोफाइल उद्योगपतियों व तस्करों के पक्ष में अनुचित उपकार दिखाया जा रहा है।

हाईकोर्ट ने ओझा के बयानों पर संज्ञान लिया और अवमानना की कार्यवाही शुरू करते हुए कहा था कि-

''बार का अध्यक्ष होने के नाते ओझा ने अपने निंदनीय, अविवेकी व बेबुनियादी बयानों के माध्यम से हाईकोर्ट की प्रतिष्ठा और महिमा को गंभीर नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया है और स्वतंत्र न्यायपालिका के रूप में भी पूरे प्रशासन की छवि को कम करने का प्रयास किया है और पूरी प्रशासनिक विंग के बीच भी हतोत्साहित करने वाला प्रभाव पैदा किया है।

इसलिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 215 के तहत प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए यह अदालत उसे प्रथम दृष्टया अदालत की अवमानना अधिनियम की धारा 2 (सी) के अर्थ के तहत इस न्यायालय की आपराधिक अवमानना के लिए जिम्मेदार मानती है और एक्ट की धारा 15 के तहत उसके खिलाफ ऐसे आपराधिक अवमानना पर संज्ञान लेती है।''

पीठ ने कहा था कि ओझा ने निराधार और असत्यापित तथ्यों के आधार पर हाईकोर्ट की रजिस्ट्री को निशाना बनाते हुए हाईकोर्ट प्रशासन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था।

हालांकि ओझा ने अवमानना नोटिस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसकी याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था। साथ ही उसे कहा था कि वह हाईकोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखें।

ओझा ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि वह हाईकोर्ट के खिलाफ की गई अपनी टिप्पणी के लिए ''बिना शर्त माफी'' मांगने को तैयार है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बार के लीडर के रूप में, ओझा के पास अधिक जिम्मेदारी थी। इसीलिए उनको वकीलों की शिकायतों को व्यक्त करने में संयम बरतना चाहिए था। शीर्ष अदालत ने मामले की मैरिट पर कुछ भी व्यक्त नहीं किया था और कहा था कि यह उचित होगा कि पहले हाईकोर्ट ओझा की माफी पर विचार करते हुए इस मुद्दे से निपटे।

बाद में, ओझा ने हाईकोर्ट के समक्ष बिना शर्त माफी मांगी थी,परंतु 26 अगस्त को पूर्ण न्यायालय ने इस माफी को खारिज कर दिया था। पूर्ण न्यायालय का विचार था कि ओझा ने यह माफी उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने और उनका वरिष्ठ पदनाम वापिस लेने के बाद मांगी है।

इसके बाद, इस मामले में डिवीजन बेंच ने भी ओझा के माफीनामे को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनकी माफी में ''ईमानदारी'' की कमी है।

विशेष रूप से, ओझा ने हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी,जिसके तहत उनका वरिष्ठ पदनाम वापिस ले लिया गया था। इस मामले को 29 सितंबर को निर्देश के लिए सूचीबद्ध किया गया था लेकिन वर्तमान कार्यवाही के चलते उस मामले को स्थगित कर दिया गया था।

पूर्व में ओझा ने जीएचसीएए के अध्यक्ष के रूप में जस्टिस अकिल कुरैशी को गुजरात हाईकोर्ट से बॉम्बे हाईकोर्ट में ट्रांसफर करने का भी जोरदार विरोध किया था। उन्होंन इस ट्रांसफर को ''अनुचित, अन्यायपूर्ण और न्यायविरूद्ध'' करार दिया था।

न्यायमूर्ति कुरैशी को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम की सिफारिश पर कार्रवाई करने में केंद्र सरकार द्वारा की गई देरी के खिलाफ भी,उनके नेतृत्व में एसोसिएशन ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।

जून में, उन्होंने जीएचसीएए के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था क्योंकि अदालतों को फिजिकल हियरिंग के लिए फिर से खोलने के संबंध में एसोसिएशन के पदाधिकारियों के बीच मतभेद हो गया था। ओझा ने मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ को एक पत्र भेजा था,जिसमें उन्होंने आग्रह किया था कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हाईकोर्ट के कार्य को ''पूर्ण रूप से'' चलाया जाए और सभी मामलों को सुनने की अनुमति दी जाए।

बाद में, उन्होंने कई सदस्यों के अनुरोध के बाद अपना इस्तीफा वापस ले लिया था।

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