स्कूल में गिटार की प्रैक्टिस करते समय करंट लगने से एक लड़के की मौत : गुवाहाटी हाईकोर्ट ने माता-पिता को तीस लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया

Update: 2020-07-05 12:01 GMT

Gauhati High Court

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक स्कूल को निर्देश दिया है कि वह उस छात्र के माता-पिता को मुआवजे के रूप में तीस लाख रुपये का भुगतान करे, जिसकी स्कूल में गिटार की प्रैक्टिस करते समय करंट लगने (इलेक्ट्रोक्यूशन) के कारण मौत हो गई थी।

देबजीत दास और शारदा दास का बेटा रणवीर दास विलियमसन मैगर एजुकेशन ट्रस्ट द्वारा प्रबंधित असम वैली स्कूल का छात्र था। वह अपने तीन दोस्तों के साथ स्कूल की म्यूजिक सेल में इलेक्ट्रिक गिटार की प्रैक्टिस कर रहा था और इसी दौरान उसको करंट लग गया। हालांकि उसे अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उसे अस्पताल पहुंचने के बाद 'मृत घोषित' कर दिया गया। रणवीर के माता-पिता ने आरोप लगाया कि उनके बेटे की मौत स्कूल के अधिकारियों की लापरवाही के कारण हुई है। इसलिए उन्होंने मुकदमा दायर कर विशेष और अनुकरणीय हर्जाने के तौर पर 5 करोड रुपये मांगे।

ट्रायल कोर्ट ने यह कहते हुए मुकदमा खारिज कर दिया था कि ट्रस्ट के ट्रस्टी इस सूट के लिए आवश्यक पक्षकार हैं। इस तरह उनकी अनुपस्थिति में अदालत एक निष्पादन योग्य डिक्री पारित नहीं कर सकती है और उसी के मद्देनजर सूट विचार करने योग्य नहीं है। लेकिन यह भी पाया गया कि मुकदमे के लिए कार्रवाई का कारण बनता है और छात्र को मरने से बचाया जा सकता था। प्रतिवादियों की ओर से बरती गई लापरवाही के कारण वह मर गया था।

अपील पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार डेका ने कहा कि ट्रस्ट के ट्रस्टी सूट के लिए आवश्यक पक्षकार नही हैं क्योंकि अदालत को ट्रस्ट संपत्ति के कानूनी स्वामित्व के बारे में किसी भी मुद्दे पर निर्णय लेने की आवश्यकता नहीं है।

पीठ ने कहा कि-

''निचली अदालत का यह मानना सही नहीं था कि ट्रस्टियों की अनुपस्थिति में कोई निष्पादन योग्य डिक्री पारित नहीं की जा सकती है। क्योंकि स्कूल प्राधिकरण द्वारा किए गए वादे का दायित्व ट्रस्ट संपत्ति के स्वामित्व के साथ नहीं जुड़ा है,जिसके लिए ट्रस्ट की संपत्ति के स्वामित्व की रक्षा के लिए ट्रस्ट के सभी ट्रस्टियों द्वारा बचाव की संयुक्त कार्रवाई की आवश्कता हो।

इसकी वजह स्कूल अधिकारियों को मिली मालिकाना हक की प्रकृति है, जिनके पास केवल लाभकारी स्वामित्व है, लेकिन कानूनी स्वामित्व नहीं है। उक्त दायित्व की घोषणा ट्रस्ट के ट्रस्टियों द्वारा नहीं बल्कि स्कूल प्राधिकरण द्वारा की गई थी।

जैसा कि इस मामले में दायित्व की प्रकृति संविदात्मक है इसलिए उसका उस कानूनी स्वामित्व से कोई लिंक नहीं हो सकता है जो ट्रस्टियों को ट्रस्ट संपत्ति में मिला हुआ है। अगर यह ट्रस्टियों के कानूनी स्वामित्व से जुड़ा होता तो सभी ट्रस्टी सूट के लिए आवश्यक पक्षकार होते। यह सूट नुकसान की भरपाई के लिए उन लोगों के खिलाफ दायर किया गया है,जो इस नुकसान या क्षति के लिए संयुक्त रूप से जिम्मेदार हैं। जिसके लिए स्कूल प्राधिकरण सहित अन्य को इस मामले में प्रतिवादी बनाया गया हैं।''

यह भी पाया गया है कि यह स्कूल प्राधिकरण की जिम्मेदारी थी कि वह छात्रों को शिक्षा प्रदान करते समय उनके आसपास के गंभीर जोखिम के स्रोत की पहचान करे।

पीठ ने कहा कि-

''यह स्कूल एक बोर्डिंग स्कूल है और प्रत्येक सत्र के लिए एक विशिष्ट समयावधि निर्धारित है। इस तरह के मामलों में गिटार का अभ्यास करने वाले नाबालिग छात्रों को जल्दबाजी रहती है क्योंकि उनको अपना सत्र खत्म होने का डर होता है। इसलिए यह स्कूल प्राधिकरण का दायित्व बनता है कि वह नाबालिग छात्रों को उपयोग के लिए सुरक्षित विद्युत उपकरण दे।

स्कूल प्राधिकरण इस विश्वास के आधार पर संतुष्ट नहीं रह सकता है कि पिछले इतने वर्षों से संगीत कक्ष में कुछ भी नहीं हुआ था,इसलिए वहां पर किसी वयस्क द्वारा निगरानी रखने की आवश्यकता नहीं थी। इस तथ्य को स्कूल प्राधिकारण द्वारा एक बच्चे को अपने छात्र के रूप में स्वीकार करते समय सुनिश्चित की गई देखभाल के कर्तव्य के खिलाफ माना जाएगा।

यह स्कूल प्राधिकरण की जिम्मेदारी है कि वह छात्रों को शिक्षा प्रदान करते हुए आसपास के गंभीर जोखिम के स्रोत का पूर्वानुमान लगाए और उनकी पहचान करे। स्कूल प्राधिकरण ने देखभाल के उक्त कर्तव्य को पूरा करने का आश्वासन दिया था। इसलिए स्कूल द्वारा दिया गया यह आवश्वासन उन कर्मचारियों के संबंध में भी लागू होता है जो उक्त देखभाल के कर्तव्य को निभाते हैं। ऐसे में किसी कर्मी द्वारा किया गया कोई भी उल्लंघन स्कूल प्राधिकारण को उत्तरदायी बनाता है।''

30 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश देते हुए अदालत ने कहा कि-

'' किसी व्यक्ति के दैनिक जीवन में बिजली की अनिवार्यता को ध्यान में रखते हुए विद्युत दुर्घटना अब गंभीर खतरों में से एक है। लेकिन स्कूल प्राधिकरण ने उक्त खतरे के जोखिम को गंभीर तत्व के रूप में नहीं माना था, जिस कारण अपीलकर्ताओं के बेटे की जान चली गई। स्कूल प्राधिकार की ओर से मृतक के प्रति गंभीर लापरवाही बरती गई थी क्योंकि स्कूल प्राधिकारिण ने एक बोर्डिंग स्कूल के रूप में छात्रों की जिम्मेदारी ली थी। ऐसे में उनके द्वारा ली गई जिम्मेदारी उन स्कूल की तुलना में ज्यादा थी,जिनमें बच्चे केवल दिन में पढ़ने आते हैं...''

केस का नाम- डॉ देबजीत व अन्य बनाम विलियमसन मैगर एजुकेशन ट्रस्ट

केस नंबर-आरएफए 47/2018

कोरम- न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार डेका

प्रतिनिधित्व-एडवोकेट डी बरुआ, सीनियर एडवोकेट के एन चैधरी, एडवोकेट पी सुंडी, के गोस्वामी

आदेश की प्रति डाउनलोड करें



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