पुलिस अधिकारियों को परेशान करने के लिए दायर की गई ओछी याचिकाएं पर विचार नहीं करना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2021-12-04 14:09 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि कोर्ट को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पुलिस अधिकारियों को परेशान करने के लिए दायर ओछी याचिकाओं पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।

जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा,

"देश के प्रत्येक नागरिक को सुरक्षा प्रदान करना राज्य का कर्तव्य है, लेकिन साथ ही इस न्यायालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ओछी याचिकाएं, जो केवल जांच में हस्तक्षेप करने और पुलिस अधिकारियों को परेशान करने के लिए दायर की जाती हैं, उन पर सुनवाई नहीं होनी चा‌‌हिए।"

अदालत एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पुलिस आयुक्त (दिल्ली) को एक महिला एसआई के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का निर्देश देने की मांग की गई थी, जिसने दो लापता नाबालिग लड़कियों के कथित तौर पर अपहरण और बलात्कार के मामले में निष्पक्ष जांच नहीं की थी। याचिका में आरोप लगाया गया है कि महिला एसआई ने नाबालिग लड़कियों और उसके परिवार के सदस्यों को धमकाया था।

मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अदालत ने पाया कि पीड़ितों के परिवार और आरोपी और उसके परिवार के बीच कई एफआईआर और क्रॉस-एफआईआर दर्ज की गई थी, और दोनों परिवार एक-दूसरे के विरोधी थे।

इसमें यह भी कहा गया है कि ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ताओं का परिवार अदालत की कार्यवाही का इस्तेमाल पुलिस पर एक विशेष तरीके से जांच करने और अन्य मामलों से निपटने के लिए "दबाव डालने के एक उपकरण " के रूप में कर रहा था।

कोर्ट ने कहा, "मौजूदा याचिका पुलिसकर्मी की हाथ मरोड़ने की चाल है।"

याचिकाकर्ताओं का मामला था कि जांच के प्रभारी उप-निरीक्षक पीड़िता के घर आए और उसे और उसके माता-पिता को यह कहते हुए धमकी दी कि उन्होंने आधारहीन मामला दर्ज किया है और उन्हें मामला वापस लेना चाहिए।

दूसरी ओर, राज्य ने प्रस्तुत किया कि वर्तमान मामला पीड़ितों के परिवार और कथित अभियुक्तों के बीच विवाद के अलावा और कुछ नहीं था और दोनों पक्षों द्वारा कई क्रॉस-केस के दर्ज किए गए थे।

राज्य ने यह भी प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ताओं को इलाके में स्थापित सीसीटीवी फुटेज में लगभग 9:00 बजे अपने घर से निकलते देखा गया था और उनके सीडीआर का विश्लेषण किया गया था, जिसमें यह पाया गया था कि वे संबंधित तिथियों पर अपने माता-पिता के साथ लगातार संपर्क में थे।

यह भी प्रस्तुत किया गया था कि याचिकाकर्ताओं का अपहरण नहीं किया गया था और वे अपने दो पुरुष मित्रों के साथ अपनी मर्जी से लुधियाना गए थे। राज्य के अनुसार, उक्त तर्क याचिकाकर्ताओं के सोशल मीडिया प्रोफाइल के आधार पर पुष्ट और सत्यापित थे।

अदालत ने कहा, "इसके अलावा, ऐसा प्रतीत होता है कि मिस जे और उसकी बहन ने अपने पुरुष मित्रों के साथ अपने सोशल मीडिया हैंडल पर तस्वीरें अपलोड कीं, जो अपहरण और बलात्कार के मामले को झुठलाती हैं।"

इसके अलावा, यह देखा गया कि याचिकाकर्ताओं ने न तो पुलिस आयुक्त (दिल्ली) को महिला एसआई पर एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने का मामला बनाया और न ही प्रतिवादी को पीड़ितों 10,00,000 रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया।

तद्नुसार याचिका का निस्तारण किया गया।

केस शीर्षक: मिस जे, मां के माध्यम से औ अन्य बनाम पुलिस आयुक्त और अन्य

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