सात साल से अधिक समय से लापता व्यक्ति के उत्तराधिकार प्रमाण पत्र जारी करने के लिए प्राथमिकी दर्ज कराना आवश्यक नहीं: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि यदि पक्षकारों में से एक सात साल से अधिक समय से लापता है तो सक्षम अधिकारी उत्तराधिकार प्रमाण पत्र देने के लिए प्रथम सूचना रिपोर्ट पर जोर नहीं दे सकते हैं।
न्यायमूर्ति पीबी सुरेश कुमार ने एक याचिका की अनुमति देते हुए कहा कि उत्तराधिकार प्रमाण पत्र देने की प्रक्रिया को सुसंगत रखने के प्रयासों के चलते पक्षकारों के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए।
न्यायालय के समक्ष यह प्रश्न था कि क्या याचिकाकर्ता के पिता के नाम को छोड़कर उक्त प्रमाण पत्र प्रदान करने के लिए सक्षम प्राधिकारी द्वारा याचिकाकर्ता के पिता की गुमशुदगी के संबंध में दर्ज प्राथमिकी की प्रति की मांग करना उचित है।
बेंच ने अवलोकन किया कि,
"यदि परिवार को प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं करने के लिए दोषी नहीं पाया जा सकता है, तो याचिकाकर्ता को उत्तराधिकार प्रमाण पत्र से इनकार करना निश्चित रूप से मनमाना होगा, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी यह पुष्टि नहीं करता कि याचिकाकर्ता के पिता जीवित हैं।"
पृष्ठभूमि
रिट याचिका के अनुसार याचिकाकर्ता की मां की मृत्यु 14 फरवरी 2013 को हो गई थी और उसके पिता लगभग 30 साल से लापता हैं। इसलिए, याचिकाकर्ता ने उत्तराधिकार प्रमाण पत्र के लिए एक आवेदन को प्राथमिकता दी।
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि चूंकि मृतक के पास याचिकाकर्ता के अलावा कोई रक्त संबंधी नहीं है और चूंकि उसके पिता का लापता हुए 30 से अधिक वर्षों से अधिक हो गया है, इसलिए सक्षम प्राधिकारी द्वारा यह प्रमाणित किया जाना चाहिए कि याचिकाकर्ता एकमात्र वारिस है।
इस आवेदन की प्राप्ति के अनुसरण में ग्राम अधिकारी द्वारा एक जांच की गई जहां यह पता चला कि याचिकाकर्ता और उसके पिता मृतक के एकमात्र वारिस हैं।
हालांकि, तहसीलदार ने संबंधित ग्राम अधिकारी को एक पत्र जारी किया कि याचिकाकर्ता के पिता के लापता होने के संबंध में दर्ज की गई प्रथम सूचना रिपोर्ट की एक प्रति के साथ याचिकाकर्ता को फिर से आवेदन जमा करने की आवश्यकता है।
उसने कहा कि केवल इसलिए कि उसकी मां ने पति के लापता होने के संबंध में कोई शिकायत दर्ज नहीं की है। वह अधिकारियों द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति के आग्रह के कारण उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्राप्त करने में असमर्थ है। इस आधार पर उसने तर्क दिया कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में उपरोक्त दस्तावेज का आग्रह अनुचित, मनमाना और अन्यायपूर्ण है।
आपत्तियां
याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता शिबी केपी ने तर्क दिया कि जब सक्षम प्राधिकारी के समक्ष उपलब्ध सामग्री इंगित करती है कि यदि किसी व्यक्ति को सात साल से अधिक समय तक देखा और सुना नहीं गया है, जिन्होंने स्वाभाविक रूप से उसके बारे में सुना होगा कि वह जीवित है, तो सक्षम प्राधिकारी भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 108 के आलोक में यह मानने के लिए बाध्य है कि वह मर चुका है और प्रमाण पत्र में नाम शामिल किए बिना उत्तराधिकार प्रमाण पत्र जारी किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि इस कारण से सभी मामलों में लापता व्यक्तियों के संबंध में दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति के लिए आग्रह करने का कोई कानूनी आधार नहीं है।
सरकार की ओर से पेश वकील ने प्रस्तुत किया कि उत्तराधिकार प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया में निरंतरता बनाए रखने के लिए उत्तराधिकार प्रमाण पत्र जारी करते समय व्यक्तियों के लापता होने के संबंध में दर्ज की गई प्रथम सूचना रिपोर्ट की एक प्रति पर जोर दिया जाता है और इसलिए उक्त दस्तावेज का आग्रह को अनुचित, मनमाना या अन्यायपूर्ण नहीं कहा जा सकता है।
कोर्ट का निर्णय
सिंगल बेंच ने कहा कि धारा 108 के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति के बारे में सात साल से अधिक समय तक उन लोगों द्वारा नहीं सुना गया है, जिन्होंने स्वाभाविक रूप से उसके बारे में सुना होता है कि वह जीवित होता, तो यह दिखाने के लिए कि वह जीवित है, किसी भी सामग्री के अभाव में उसे मरा हुआ माना जा सकता है।
यह भी देखा गया कि तहसीलदार के पास यह मामला नहीं है कि याचिकाकर्ता के पिता जीवित हैं या याचिकाकर्ता द्वारा पिछले 30 वर्षों के दौरान उसके बारे में सुना गया है।
बेंच ने कहा कि,
"बेशक, उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्रदान करने की प्रक्रिया सुसंगत होगी, लेकिन इसके लिए पक्षकार के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए।"
अदालत ने यह भी पाया कि याचिकाकर्ता द्वारा अपने पिता के लापता होने के संबंध में प्राथमिकी दर्ज नहीं करने के लिए दिया गया स्पष्टीकरण यह है कि उसके पिता के पिछले आचरण के संबंध में परिवार को उम्मीद थी कि वह कुछ समय बाद वापस आ जाएगा। इसलिए याचिकाकर्ता के परिवार को इस तरह के मामले में पुलिस में प्राथमिकी दर्ज नहीं कराने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
बेंच ने कहा कि,
"अगर परिवार को प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं करने के लिए दोषी नहीं पाया जा सकता है, तो याचिकाकर्ता को उत्तराधिकार प्रमाण पत्र से इनकार करना निश्चित रूप से मनमाना होगा, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी यह पुष्टि नहीं करता कि याचिकाकर्ता के पिता जीवित हैं।"
इस प्रकार याचिका को प्रतिवादियों को निर्देश के साथ अनुमति दी गई कि याचिकाकर्ता द्वारा मांगे गए उत्तराधिकार प्रमाण पत्र को उसके पिता के लापता होने के संबंध में दर्ज प्राथमिकी की प्रति पर जोर दिए बिना तुरंत जारी किया जाए।
केस का शीर्षक: रोहिणी एस.टी. बनाम तहसीलदार