कानून की छात्रा ने COVID-19 महामारी को देखते हुए सेमेस्टर परीक्षा रद्द कराने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट को पत्र लिखा

Update: 2020-07-11 04:30 GMT

क़ानून के अंतिम वर्ष के एक छात्रा ने बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को COVID-19 महामारी को देखते हुए पत्र लिखकर छात्रों और परीक्षा से जुड़े अन्य संबंधित लोगों की सुरक्षा का सवाल उठाया है।

आईएलएस लॉ कॉलेज, पुणे की छात्रा अंश्रिता ने यह याचिका दायर की है और उसने देश और महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमण की बढ़ती संख्या को देखते हुए पत्र में लिखा है,

"एम्स के आंकड़ों के अनुसार भारत में नवंबर के मध्य में COVID-19 संक्रमण अपने चरम पर होगा और इसको ध्यान में रखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने अंतिम वर्ष की सभी परीक्षाओं को रद्द कर दिया है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसके बाद विश्वविद्यालयों और संस्थानों को परीक्षा लेने की अनुमति दे दी। इसके अनुरूप विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने अंतिम वर्ष की परीक्षा लेने के बारे में 06.07.2020 को संशोधित निर्देश जारी कर दिया।"

इससे पहले यूजीसी ने अप्रैल में कहा था कि परीक्षा मई के अंत में आयोजित होगी। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए अब परीक्षा सितम्बर के अंत में कराने का फ़ैसला लिया गया है।

पत्र में कहा गया है,

"इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि तीन महीने में स्थिति सुधर जाएगी। अगर एक बार फिर परीक्षा की तिथि बदलनी पड़ी तो छात्रों का एक पूरा अकादमिक वर्ष बर्बाद हो जाएगा। परीक्षा पर जोर देने से छात्रों को नौकरियों के ऑफ़र से हाथ धोना पड़ेगा, पीजी प्रवेश को टालना होगा, लोगों में बेरोज़गारी बढ़ेगी छात्रों के एक बड़े वर्ग में अफ़रातफ़री का माहौल होगा।"

छात्रा ने लिखा है कि यूजीसी ने विश्वविद्यालयों और संस्थानों को ऑनलाइन/ऑफ़लाइन या दोनों को मिला-जुलाकर परीक्षा लेने को कहा है, लेकिन ऑनलाइन परीक्षा आर्थिक-सामाजिक विविधताओं और इंटरनेट की उपलब्धता को नज़रंदाज़ करता है।

पत्र में कहा गया है कि भारी संख्या में छात्र देश के विभिन्न हिस्सों में रहते हैं और यहां तक कि दूसरे देशों में भी। अगर सेमेस्टर परीक्षा ली जाती है तो छात्रों को अपने गृह राज्य से महामारी के ख़तरे के बीच यात्रा करनी होगी, दूसरे छात्रों के साथ कमरे में रहना होगा और खाने-पीने की व्यवस्था करनी होगी। फिर, छात्र हो सकता है कि संक्रमित हों और उस स्थिति में दूसरों के लिए वे ख़तरा होंगे।

यह भी कहा गया कि बहुत सारे परीक्षा केंद्रों, कॉलेजों और हॉस्टल को क्वारंटीन सेंटर में बदल दिया गया है। छात्रा ने इस बारे में कर्नाटक एसएसएलसी परीक्षा का उदाहरण दिया है जहां 32 छात्र संक्रमित पाए गए।

पत्र में कहा गया है,

"आईआईटी जैसे संस्थानों ने सभी परीक्षाओं को रद्द कर दिया है। अभी तक सीबीएसई, आईसीएसई, आईजीएसई और कई राज्य बोर्डों ने परीक्षाएं रद्द कर दी हैं। यूजीसी ख़ुद ने भी इंटर्मीडीयट परीक्षाएं रद्द कर दी हैं। यूजीसी के जिस निर्देश में अंतिम वर्ष के छात्रों को सितम्बर के अंत में परीक्षा देने को कहा गया है वह मनमाना और छात्रों के मौलिक अधिकारों के ख़िलाफ़ है।"

पत्र में कहा गया है कि सिर्फ़ अंतिम वर्ष के छात्रों को परीक्षा देने के लिए कहना भेदभावपूर्ण है। यह काफ़ी अफ़सोसनाक है कि इंटरमीडिएट और अंतिम वर्ष के छात्रों के बीच अंतर किया जाए।

और अंत में मुख्य न्यायाधीश से इस बारे में स्पष्टता लाने का आग्रह करते हुए पत्र में कहा गया है कि कोरोना महामारी के बीच में देश भर में परीक्षा कराना छात्रों के हितों और उनकी चिंताओं को नज़रअन्दाज़ करना है।

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