एक ही आरोपी के खिलाफ कई मामलों में कॉमन चार्जशीट दाखिल करने की अनुमति नहींः कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि अलग-अलग पुलिस थानों में एक ही आरोपी के खिलाफ विभिन्न् निवेशकों द्वारा दायर शिकायतों के लिए एक कॉमन(सामूहिक) आरोप-पत्र दाखिल करना कानून के खिलाफ है और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत एकीकृत आरोप-पत्र दाखिल करने की अनुमति नहीं है।
न्यायमूर्ति के नटराजन की एकल पीठ ने कहाः
''राज्य-सीआईडीपुलिस के पास विभिन्न शिकायतों में एक कॉमन आरोप पत्र दायर करने का कोई अधिकार नहीं है। हालांकि, जांच अधिकारी को व्यक्तिगत शिकायत पर पुलिस द्वारा दर्ज किए गए प्रत्येक अपराध के खिलाफ अगल-अलग आरोप पत्र दाखिल करना होगा। इसके बाद, विशेष अदालत सीआरपीसी का पालन करके आईपीसी और विशेष अधिनियम दोनों के तहत दंडनीय अपराधों पर संज्ञान लेगी और कानून के अनुसार मामले का निपटारा करेगी।''
अदालत ने राज्य बनाम खिमजी भाई जडेजा (Crl. Ref. No.1 of 2014 dated 8-7-2019) के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें विभिन्न हाईकोर्ट के साथ-साथ सर्वोच्च के निर्णयों पर भी विचार किया गया था और कोर्ट ने माना था कि एक एकीकृत आरोप-पत्र दाखिल करने की अनुमति नहीं है।
इसमें कहा गया है, ''एक ही आरोपी द्वारा बारह महीने के भीतर किए गए समान प्रकृति के अपराधों के मामले में सीआरपीसी की धारा 219 के अनुसार कॉमन आरोप तय करके एक साथ मुकदमा चलाया जा सकता है, लेकिन कई अपराधों या शिकायतों में कॉमन चार्जशीट दाखिल की अनुमति नहीं है।''
सीआईडी ने प्रधान जिला और सत्र न्यायाधीश, मैसूर द्वारा 8-8-2016 को पारित आदेश को चुनौती देते हुए कोर्ट का रुख किया था। इस आदेश के तहत पुलिस निरीक्षक, वित्तीय और सतर्कता यूनिट, सी.आई.डी द्वारा दायर आरोप पत्र को खारिज कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति नटरंजन ने विशेष अदालत के उस आदेश को भी खारिज कर दिया है,जिसके तहत आरोपी ग्रीनबड्स एग्रो फार्म्स लिमिटेड कंपनी और आरोपी नंबर 2 से 5 (उक्त कंपनी के प्रबंध निदेशक और निदेशक) को आरोपमुक्त कर दिया गया था। इन सभी पर कथित तौर पर निवेशकों को ठगने का आरोप लगाया गया था।
अदालत ने कर्नाटक वित्तीय प्रतिष्ठानों में जमाकर्ताओं के हितों के संरक्षण अधिनियम, 2004 के तहत दायर आरोप-पत्र को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि पुलिस निरीक्षक रिपोर्ट दायर करने या कार्रवाई करने के लिए सक्षम अधिकारी नहीं है और इसलिए, अधिनियम की धारा 9 के तहत दंडनीय अपराध के लिए आरोपियों को आरोपमुक्त कर दिया गया था। हालांकि, जांच अधिकारी को भारतीय दंड संहिता के तहत दंडनीय अपराधों के लिए क्षेत्राधिकार मजिस्ट्रेट के समक्ष आरोप पत्र दायर करने की स्वतंत्रता दी गई थी।
हाईकोर्ट ने कहा, ''हालांकि ट्रायल कोर्ट ने चार्जशीट को स्वीकार करने से इनकार करके ठीक किया है,लेकिन आरोपियों को आरोपमुक्त करने और जांच अधिकारी को क्षेत्राधिकार मजिस्ट्रेट के समक्ष चार्जशीट दाखिल करने का निर्देश देकर गलती की है। एक बार विशेष न्यायालय की स्थापना हो जाने पर अक्षम जांच अधिकारी द्वारा आरोप पत्र दाखिल करने के आधार पर आरोपी को आरोपमुक्त करने का प्रश्न ही नहीं उठता है। ट्रायल कोर्ट ने विशेष अधिनियम के प्रावधानों को गलत तरीके से पढ़ा है और सीआरपीसी की धारा 4 पर भी विचार नहीं किया।''
यह भी कहा कि,''सीआरपीसी की धारा 4 (2) के अनुसार, किसी भी अन्य कानून के तहत सभी अपराधों की जांच,पूछताछ, सुनवाई और अन्यथा समान प्रावधानों के अनुसार की जाएगी, बशर्ते यह उस समय पर लागू उन अधिनियम के अधीन होगी जो ऐसे अपराधों की जांच करने, पूछताछ करने, सुनवाई करने या अन्यथा इनसे निपटने के तरीके या स्थान को विनियमित करने के लिए लागू किया गया हो। ऐसी स्थिति में, आईपीसी और विशेष कानून के तहत दंडनीय अपराधों को विभाजित करना सही नहीं है। अधिनियम के तहत स्थापित विशेष न्यायालय द्वारा दोनों अपराधों के लिए एक साथ मुकदमा चलाना या मामले की सुनवाई करना आवश्यक है।''
हाईकोर्ट ने विशेष अदालत के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि, ''इसके अलावा, प्रत्येक व्यक्तिगत शिकायत के संबंध में अलग चार्जशीट दाखिल करने के लिए विशेष अदालत को निर्देश दिया जाता है कि वह जांच अधिकारी को चार्जशीट वापस कर दे और उसके बाद ट्रायल कोर्ट को कानून के अनुसार आगे बढ़ें।''
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