किसान प्रदर्शन : हम कानून के खिलाफ विरोध करने के मौलिक अधिकार को मान्यता देते हैं; लेकिन यह दूसरों के अधिकारों को प्रभावित नहीं कर सकता, सीजेआई बोबड़े ने कहा

Update: 2020-12-17 13:13 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उस जनहित याचिका पर कोई भी मूलभूत दिशा-निर्देश पारित करने से अपने आप को रोक लिया,जो किसानों के विरोध प्रदर्शन को हटाने की मांग करते हुए दायर की गई थी क्योंकि मामले में प्रतिवादियों के रूप में जोड़ी गई किसान यूनियनों की तरफ से कोई पेश नहीं हुआ था।

भारत के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने हाल ही में पारित कृषि कानूनों को लेकर चल रहे विवाद का हल निकालने के लिए प्रदर्शनकारी किसानों और केंद्र सरकार के बीच बातचीत को सुविधाजनक बनाने के लिए एक समिति गठित करने के अपने सुझाव को दोहराया।

सीजेआई ने केंद्र सरकार को सुझाव दिया है कि वह चर्चाओं को सुविधाजनक बनाने के लिए कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगाए। भारत के अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि वह इस संबंध में केंद्र सरकार से निर्देश लेने के बाद अदालत को सूचित करेंगे।

सुनवाई के दौरान सीजेआई द्वारा किए गए कुछ महत्वपूर्ण अवलोकन यहां दिए गए हैं।

कानूनों की वैधता का सवाल इंतजार कर सकता है

कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को भी आज पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था,इन्हीं का हवाला देते हुए सीजेआई ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, ''हम आज कानूनों की वैधता तय नहीं करेंगे। आज सबसे पहली और एकमात्र चीज जो हम तय करेंगे, वह किसानों के प्रदर्शन और नागरिकों के मौलिक अधिकार के बारे में है।''

विरोध करने के मौलिक अधिकार को मान्यता प्राप्त है, लेकिन यह दूसरों के अधिकारों को प्रभावित नहीं कर सकता है

''एक बात हम स्पष्ट कर देंगे। हम एक कानून के खिलाफ विरोध करने के मौलिक अधिकार को मान्यता देते हैं। लेकिन यह अन्य मौलिक अधिकारों और दूसरों के जीवन के अधिकार को प्रभावित नहीं कर सकता है।''

''हम मानते हैं कि किसानों को विरोध करने का अधिकार है। लेकिन हम विरोध करने के तरीके की बात कर रहे हैं। हम यूनियन से पूछेंगे कि विरोध करने की प्रकृति को बदलने के लिए क्या किया जा सकता है ताकि यह सुनिश्चित हो सकें कि दूसरों के अधिकार प्रभावित न हो पाएं।''

पुलिस प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसक साधनों का उपयोग नहीं कर सकती है

''पुलिस भी हिंसक साधनों का उपयोग नहीं कर सकती है।''

''अहिंसक आचरण में विरोध जारी रह सकता है। आप (अटॉर्नी जनरल की ओर इशारा करते हुए) भी हिंसा नहीं भड़का सकते हैं।''

विरोध सिर्फ विरोध के लिए नहीं हो सकता

''विरोध का उद्देश्य तभी प्राप्त किया जा सकता है जब लोग एक-दूसरे से बात करते हैं। यदि विरोध प्रदर्शन के अलावा इस विरोध का एक उद्देश्य है, तो हम इसे सुविधाजनक बनाना चाहते हैं। इसके लिए, हम एक स्वतंत्र निष्पक्ष समिति का प्रस्ताव दे रहे हैं, जिसके समक्ष दोनों पक्ष अपनी स्थिति बता सकते हैं। इसके बाद समिति अपनी राय देगी, जिसके लिए हम उम्मीद करते हैं कि पक्षकार उसका पालन करेंगे।''

''प्रदर्शनों में, पीड़ित पक्ष को अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करने में सक्षम होना चाहिए और जो पक्षकार इस शिकायत/पीड़ा का कारण बना हुआ है,उसके पास जवाब देने का एक विकल्प होना चाहिए। हमें लगता है कि यह कृषि का ज्ञान रखने वाले स्वतंत्र सदस्यों से बनी एक स्वतंत्र समिति के समक्ष किया जा सकता है। हम पी साईनाथ जैसे नामों को प्रस्तावित करेंगे।''

''आपके पास विरोध करने का अधिकार है, जिसके साथ हम हस्तक्षेप नहीं करने जा रहे हैं। आप विरोध प्रदर्शन जारी रख सकते हैं। लेकिन किसी से बातचीत करके विरोध का उद्देश्य जरूर पूरा किया जाना चाहिए। आप वर्षों तक विरोध में नहीं बैठ सकते हैं।''

किसानों के प्रति सहानुभूति

''हम किसानों की दुर्दशा से परिचित हैं। हम भारतीय हैं। हम किसानों के साथ सहानुभूति रखते हैं। लेकिन हम विरोध के तरीके पर विचार कर रहे हैं।''

अन्य प्रमुख आदान-प्रदान/तर्क

दिल्ली की सीमाओं से प्रदर्शनकारी किसानों को हटाने की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक याचिकाकर्ता की तरफ सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे पेश हुए और तर्क दिया कि विरोध प्रदर्शन ने दिल्ली शहर को एक नाकाबंदी के तहत ला दिया है, इसके निवासियों को आवश्यक वस्तुओं तक पहुंचने के अधिकार से वंचित कर दिया है।

इस संदर्भ में, सीजेआई ने पूछा कि क्या दिल्ली की सभी सीमा सड़कों को अवरुद्ध कर दिया गया है।

सॉलिसिटर जनरल, तुषार मेहता ने स्पष्ट किया कि केवल टिकरी और सिंघू में सीमा सड़कें अवरुद्ध की गई हैं और किसानों द्वारा नोएडा के प्रवेश द्वार को भी अवरुद्ध करने की धमकी दी जा रही है।

सीजेआई ने टिप्पणी करते हुए कहा कि,''हम ब्लॉक करने की सीमा पर नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि दिल्ली बंद हो गई है। मुझे लगता है कि साल्वे ने इसे कुछ ज्यादा ही बढ़ाकर बता दिया है।''

साल्वे ने जवाब दिया कि मुख्य मार्गीय सड़कों को अवरुद्ध कर दिया गया है।

दिल्ली सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता राहुल मेहरा ने इन दलीलों का विरोध किया।

मेहरा ने कहा, ''सैकड़ों से अधिक मुख्य मार्गीय सड़कें हैं। मुझे नहीं पता कि ये आंकड़े कहां से आ रहे हैं। अदालत को इन मौखिक बयानों को स्वीकार नहीं करना चाहिए, यदि वे शपथ पत्र पर नहीं हैं।''

मेहरा ने यह भी कहा कि याचिका ''गलत'' थी क्योंकि दिल्ली सरकार को पार्टी नहीं बनाया गया है।

सॉलिसिटर जनरल ने यह कहकर इन दलीलों पर पलटवार किया कि यह राजनीति खेलने का मंच नहीं है।

विरोध प्रदर्शन आयोजित करने वाले लोगों को सरकार के समक्ष अपनी पहचान बतानी होगी

साल्वे ने एक सुझाव दिया कि सरकार के पास एक प्रोटोकॉल होना चाहिए कि विरोध प्रदर्शन करने वाले व्यक्ति को खुद की पहचान बतानी होगी ताकि उसे नुकसान के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सके है ''ताकि लोगों का एक अव्यवस्थित समूह गायब न हो जाए।''

साल्वे ने कहा, ''विरोध का कारण विरोध नहीं हो सकता है। विरोध का कारण एक विचार बनाना है। विरोध प्रदर्शन के लिए विरोध करना एक सार्वजनिक उपद्रव है।''

जब बड़े पैमाने पर लोग सोचते हैं कि एक कानून अन्यायपूर्ण है, तो बड़े पैमाने पर विरोध होगा - चिदंबरम

पंजाब राज्य की तरफ से पेश हुए पी चिदंबरम ने मध्यस्थता करने के लिए एक समिति बनाने के लिए पीठ के सुझाव का स्वागत करते हुए अदालत से आग्रह किया कि विरोध प्रदर्शनों की वैधता से संबंधित मुद्दों पर विचार न किया जाए।

चिदंबरम ने वियतनाम युद्ध के खिलाफ अमेरिका में हुई घटनाओं,पेरिस में विरोध प्रदर्शन, वियना आदि के उदाहरणों का उल्लेख करते हुए कहा, ''जब बड़े पैमाने पर लोगों को लगता है कि एक कानून अन्यायपूर्ण है, तो बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन होगा।''

''किसानों ने सड़कों को अवरुद्ध नहीं किया है। किसान दिल्ली तक मार्च करना चाहते थे। किसने उन्हें रोका है और उन्हें अवरुद्ध किया है? पुलिस ने उनको रोका है। हम बैरिकेड, कंटेनर, कांटेदार तारों आदि की तस्वीरें देख रहे हैं।

यह पुलिस है जिसने सड़कों को अवरुद्ध कर दिया है। पुलिस सड़कों को अवरुद्ध नहीं कर सकती और न ही किसानों को दोषी नहीं ठहरा सकती है।

हम चाहते हैं कि संसद बुलाई जाए और संसद सदस्य चर्चा करें "।

जब सीजेआई ने प्रदर्शनकारियों के संदर्भ में ''भीड़'' शब्द का इस्तेमाल किया, तो चिदंबरम ने जवाब दिया कि वे ''भीड़'' नहीं हैं, बल्कि वह ''किसानों का समूह'' हैं।

सीजेआई ने स्पष्ट किया कि इस शब्द का इस्तेमाल एक निंदापूर्ण भाव में नहीं किया गया था।

मामले की सुनवाई कर रही पीठ में सीजेआई के अलावा न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम और न्यायमूति ए एस बोपन्ना शामिल हैं। पीठ ने आज की कार्यवाही को खत्म करते हुए निर्देश दिया है कि कल तक किसान संघों (जो मामले में पक्षकार हैं) को नोटिस तामील करवा दिया जाए। पीठ ने संकेत दिया कि क्रिसमस की छुट्टी के दौरान किसी अन्य पीठ द्वारा इस मामले पर विचार किया जा सकता है।

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