फैमिली कोर्ट से पक्षकारों के बीच समझौता कराने की अपेक्षा की जाती है,लेकिन कोर्ट का प्रयास न्याय की कीमत पर केवल मामलों को निपटाने का नहीं हो सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2022-01-24 07:48 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट से यह अपेक्षा की जाती है कि यदि संभव हो तो पक्षों के बीच एक समझौता हो सके, लेकिन कोर्ट का प्रयास न्याय की कीमत पर केवल मामलों को निपटाने का नहीं हो सकता है।

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश को खारिज किया। इसमें कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia) के तहत अपीलकर्ता पति द्वारा दायर तलाक की याचिका को खारिज कर दिया था।

फैमिली कोर्ट ने आवेदन को यह देखने के बाद खारिज कर दिया कि अपीलकर्ता साक्ष्य का नेतृत्व करने में विफल रहा है, जिससे अपीलकर्ता के साक्ष्य का नेतृत्व करने का अधिकार बंद हो गया।

हाईकोर्ट को सूचित किया गया कि पक्षकार एक समझौते पर बातचीत कर रहे थे। इसके लिए न्यायालय से बार-बार समय मांगा गया था और इस आधार पर साक्ष्य के रूप में हलफनामे दाखिल नहीं किए गए।

इसके बावजूद, फैमिली कोर्ट ने विवादित आदेश पारित किया।

बेंच ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा,

"कोर्ट का प्रयास न्याय की कीमत पर किसी मामलों को निपटाने के लिए नहीं हो सकता है। फैमिली कोर्ट से अपेक्षा की जाती है कि यदि संभव हो तो पक्षकारों के बीच समझौता करें।"

बेंच ने कहा,

"पक्षकार स्वयं बातचीत में होने के कारण स्थगन की मांग कर रहे थे, इसलिए फैमिली कोर्ट के लिए उसके समक्ष किए गए स्थगन के अनुरोध को अस्वीकार करने, अपीलकर्ता के साक्ष्य का नेतृत्व करने के अधिकार को बंद करने और तलाक की याचिका को खारिज करने के फैसले का कोई औचित्य नहीं है।"

अदालत ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने जिस तरीके से खुद को संचालित किया है, उसमें बहुत खराब तरीके से आदेश दिया गया है।

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए कहा कि पक्षकारों को मध्यस्थता के लिए भेजा जा सकता है।

केस का शीर्षक: कमोडोर पवन चौहान बनाम अनुषा चौहान

प्रशस्ति पत्र: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 38

आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:




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