नागरिकता अधिकारों का गट्ठर है, जो व्यक्ति और राज्य के बीच संबंधों को परिभाषित करती है। भारत में मौलिक अधिकारों और कई वैधानिक अधिकारों का उपभोग भारतीय नागरिकता होने पर निर्भर हैं।
जन्म और वंश से नागरिकता
दुनिया भर के देश नागरिकता की दो अवधारणाओं का पालन करते हैं:
1-'jus soli' (मिट्टी का अधिकार) या जन्मसिद्ध नागरिकता
2-'jus sanguinis' (रक्त का अधिकार) या वंश द्वारा नागरिकता।
पहले मॉडल में, माता-पिता की राष्ट्रीयता की परवाह किए बिना उन सभी को नागरिकता दी जाती है] जो देश की सीमा के भीतर पैदा हुए हैं। दूसरे मॉडल में, जन्म की जगह की परवाह किए बिना, माता-पिता दोनों में से किसी एक या दोनों की राष्ट्रीयता के आधार पर नागरिकता दी जाती है। भारत अपने नागरिकता कानूनों में इन दोनों मॉडलों का उपयोग करता है।
संविधान के अनुच्छेद 5 के अनुसार, भारत में रह रहा व्यक्ति भारतीय नागरिक है, यदि:
1- वह भारतीय क्षेत्र में पैदा हुआ है, या
2- उनके माता-पिता में से किसी का जन्म भारतीय क्षेत्र में हुआ हो।
तो, जन्म या वंश के साथ जुड़ा अधिवास नागरिकता का मुख्य कारक है।
यह ध्यान रखना दिलचस्प होगा कि संविधान के निर्माण के दौरान, कुछ सदस्यों ने धर्म को नागरिकता प्रदान करने के कारक के रूप में शामिल करने का तर्क दिया, लेकिन इस प्रस्ताव को संविधान सभा ने खारिज कर दिया, जिसने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य के रूप में परिकल्पित किया था।
संविधान में पाकिस्तान से पलायन करने वालों को कुछ शर्तों (अनुच्छेद 6) के आधार पर नागरिकता देने का भी प्रावधान था।
संविधान ने यह भी कहा कि नागरिकता पर संसद द्वारा बनाए गए कानून का संविधान के प्रावधानों (अनुच्छेद 11) पर अधिभावी प्रभाव पड़ेगा। 1955 में संसद द्वारा पारित नागरिकता कानून ही वह कानून है। इस कानून में किए गए विभिन्न परिवर्तनों ने भारतीय नागरिकता के 'jus soli' के सिद्धांत को कमजोर कर दिया है।
भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के तरीके
नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत नागरिकता प्राप्त करने के चार तरीके हैं:
1-जन्म से नागरिकता
2-वंश द्वारा नागरिकता
3-पंजीकरण द्वारा नागरिकता
4-प्राकृतिकिकरण द्वारा नागरिकता।
जन्म से नागरिकता
(सेक्शन3) नागरिकता अधिनियम की धारा 3 जन्म से नागरिकता से संबंधित है।
जब पहली बार 1955 में कानून बनाया गया था, तब इस धारा में कहा गया था कि वे सभी जो 1 जनवरी 1950 को या उसके बाद भारत में पैदा हुए हैं, भारतीय नागरिक होंगे।1986 में इसमें संशोधन किया गया और जन्मजात नागरिकता को उन लोगों तक सीमित किया गयाजो 1 जनवरी, 1950 और 1 जनवरी, 1987 के बीच भारत में पैदा हुए थे।
कानून में एक शर्त ये जोड़ी गई कि 1 जनवरी, 1987 के बाद भारत में पैदा हुए लोगों को नागरिकता प्रदान करने के लिए, माता-पिता में से एक को भारतीय नागरिक होना चाहिए। इसने, उन लोगों को, भारत में जिनके दादा-दादी पैदा हुए थे,माता-पिता नहीं, उन्हें 'भारतीय मूल' के दायरे से बाहर रखकर, भी परिभाषा में बदलाव किया।
2003 के संशोधन के बाद जन्मसिद्ध नागरिकता की शर्त को और कठोर कर दिया गया, जिसमें कहा गया कि 3 दिसंबर, 2004 के बाद पैदा हुए वो लोग, जिनके माता-पिता में से एक भारतीय हो और दूसरा अवैध प्रवासी न हो, वे भारतीय नागरिकता के पात्र होंगे।
वंश द्वारा नागरिकता (धारा 4)
भारत के बाहर पैदा हुआ ऐसा व्यक्ति, जिसके माता-पिता उसके जन्म के समय भारत के नागरिक थे, वंश द्वारा भारत का नागरिक होगा। हालांकि ये एक शर्त के अधीन है कि जन्म के 1 वर्ष के भीतर भारतीय वाणिज्य दूतावास में उसके पंजीयन होना चाहिए, साथ ही एक घोषणा हो कि वह किसी अन्य देश का पासपोर्ट नहीं रखता है।
पंजीकरण द्वारा नागरिकता (धारा 5)
यह साधन उन विदेशी नागरिकों के लिए भारतीय नागरिकता का द्वार खोलता है, जो विवाह या कुल के माध्यम से भारतीय नागरिक के साथ संबंध रखते हैं। आवेदक को इसके लिए भारत में रहने की निर्धारित अवधि की शर्तों को पूरा करना होता है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसी तरीके से भारतीय नागरिकता प्राप्त की थी।
प्राकृतिकिकरण द्वारा नागरिकता (धारा 6)
यह उन व्यक्तियों के लिए भारतीय नागरिकता पान का रास्ता है, जिनका रक्त, मिट्टी या विवाह के माध्यम से भारत के साथ कोई संबंध नहीं है।
अधिनियम की तीसरी अनुसूची में प्राकृतिककरण की शर्तों का उल्लेख किया गया है। आवेदक को (अवैध प्रवासी नहीं) आवेदन करने से पहले 12 महीनों तक की अवधि के लिए भारत में अविराम निवास करना चाहिए। 12 महीनों के उक्त अवधि से पहले आवेदक को चौदह वर्ष की अवधि में, कुल 11 साल तक भारत में निवास करना चाहिए।
हाल ही में पारित नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम प्रवासियों के लिए, जिन्होंने 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में प्रवेश किया थ, यह अवधि 11 वर्ष से घटाकर 5 वर्ष की गई है।
पाकिस्तानी गायक अदनान सामी और दलाई लामा ऐसे उदाहरण हैं, जिन्हें धारा 6 के तहत भारत की नागरिकता दी गई है।
केंद्र के पास किसी व्यक्ति को, जिसने उसकी राय में विज्ञान, दर्शन, कला, साहित्य, विश्व शांति और मानव प्रगति के क्षेत्र में विशिष्ट सेवा प्रदान की है, नागरिकता प्रदान करने के लिए प्राकृतिककरण की सभी शर्तों को समाप्त करने की शक्ति है।
जो लोग पंजीकरण और प्राकृतिककरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करते हैं, उन्हें वफादारी की शपथ की घोषणा करनी होती है और उन्हें अपनी पिछली नागरिकता का त्याग करना होता है।
के कृष्णा बनाम भारत संघ और अन्य जेटी 2007 (7) एससी 258 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक व्यक्ति प्राकृतिककरण के माध्यम से नागरिकता का दावा नहीं कर सकता है। नागरिकता देना या न देना भारत सरकार की मरजी पर निर्भर है।
अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता का अधिकार नहीं
एक अवैध प्रवासी को प्राकृतिक तरीके से भारतीय नागरिकता प्राप्त करने का अधिकार नहीं है। अधिनियम की धारा 2 (1) (बी) के अनुसार, अवैध प्रवासी एक विदेशी है, जिसने वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया है, या भारत में दस्तावेजों में अनुमत समय अधिक अवधि तक रहा है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम प्रवासियों के लिए ये शर्त समाप्त कर दी है। 2019 के संशोधन ने धारा 2 (1) (बी) में कहा है कि 31 दिसंबर, 2014 से पहले इन देशों से भारत आए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई अवैध प्रवासी नहीं माने जाएंगे।
भारतीय नागरिकता खोना
एक भारतीय नागरिक तीन तरीकों से अपनी नागरिकता खो सकता है:
1-त्याग,
2-समाप्ति
3-अभाव।
त्याग ( सेक्शन 8)
निर्धारित प्राधिकरण के पास, एक व्यक्ति ये घोषणापत्र देकर कि वो अपनी भारतीय नागरिकता का त्याग कर रहा है, नागरिकता का त्याग कर सकता है। घोषणापत्र देने के बाद, व्यक्ति और उसकी नाबालिग संतान की नागरिकता समाप्त हो जाएगी। हालांकि संतान के पास बालिग होने पर, बालिग होने के एक वर्ष के भीतर संबंधित प्राधिकरण को आवेदन देकर अपनी भारतीय नागरिकता को फिर से शुरू करने का विकल्प होता है।
समाप्ति (धारा 9)
चूंकि भारतीय कानून दोहरी नागरिकता को मान्यता नहीं देता है, इसलिए एक व्यक्ति दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त करते ही भारतीय नागरिक नहीं रह जाता।
वंचन ( धारा10)
केवल पंजीकरण या प्राकृतिककरण के जरिए प्राप्त की गई है नागरिकता को ही रद्द किया जा सकता है।
निम्नलिखित परिस्थितियों में, सुनवाई का उचित अवसर देने के बाद, केंद्र सरकार किसी व्यक्ति को नागरिकता से वंचित करने का आदेश पारित कर सकती है:
1- पंजीकरण या प्राकृतिककरण का प्रमाण पत्र धोखाधड़ी, गलत बयानी या छिपाव के माध्यम से प्राप्त किया गया था।
2- उस व्यक्ति ने भारत के संविधान के प्रति अरुचि या अप्रसन्नता दिखाई है।
3- व्यक्ति ने युद्ध के दौरान दुश्मन के साथ संवाद किया है।
4- उस व्यक्ति को भारत की नागरिकता प्राप्त करने के पांच साल के भीतर किसी देश में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।
5- व्यक्ति 7 वर्षों की निरंतर अवधि के लिए भारत के बाहर एक साधारण निवासी रहा है (जब तक कि निवास का उद्देश्य अकादमिक या सरकारी सेवा नहीं था)।
भारत की विदेशी नागरिकता
जैसा कि ऊपर कहा गया है, भारतीय कानून दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं देता है। हालांकि, भारतीय मूल के व्यक्तियों, जिन्होंने विदेशी नागरिकता हासिल कर ली है, की लंबे समय से चली आ रही मांगों के मद्देनजर, भारत की विदेशी नागरिकता की अवधारणा को 2005 में नागरिकता अधिनियम में किए गए के संशोधन में पेश किया गया था।
भारतीय मूल के व्यक्तियों को ओसीआई कार्ड प्रदान करने के लिए अधिनियम में धारा 7 ए को डाला गया था।
ओसीआई भारत की वास्तविक नागरिकता नहीं है। यह एक स्थिति है, जो कुछ विशेषाधिकार प्रदान करती है, जैसे कि बहु-प्रवेश और बहुउद्देश्यीय दीर्घकालीन वीजा, फॉरेनर्स एक्ट के तहत पंजीकरण से छूट, नॉन रेजिडेंट इंडियन के साथ समानता। हालांकि इसकी कई सीमाएं हैं, जैसेकि ओसीआई धारकों को मतदान का अधिकार नहीं है, संवैधानिक कार्यालयों को रखने का अधिकार नहीं और कृषि संपत्तियों को खरीदने का अधिकार नहीं है।